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हर साल कट रहा आशियाना, नेताओं का वादा बन रहा फसाना

पूर्णिया। नदियों में पानी की बढ़त होते ही यहां लोगों के दिल बैठने लगते है। ¨चता सताने लगती ह

By Edited By: Published: Wed, 29 Jun 2016 03:02 AM (IST)Updated: Wed, 29 Jun 2016 03:02 AM (IST)
हर साल कट रहा आशियाना, नेताओं का वादा बन रहा फसाना

पूर्णिया। नदियों में पानी की बढ़त होते ही यहां लोगों के दिल बैठने लगते है। ¨चता सताने लगती है कि न जाने इस बार कौन अपना बिछुड़ जाए। उन्हें अपने परिवार के उनलोगों की याद आने लगती है जो पूर्व में नदी कटान के कारण अपना घर-द्वार एवं अपना परिवार को छोड़ कर अन्यत्र बस गए। कई कटान प्रभावित ऐसे भी है जिनके घर नदी में विलीन होने के बाद जमीन नहीं रहने के कारण अपना गांव तो क्या अन्य पंचायत या अन्य जिला में जाकर बस गए। अब इनकी मुलाकात ईद, बकरीद या मुहर्रम के मौके पर ही संभव हो पाती है या विवाह या अन्य मौके पर ही वे जमा होते है। इस क्षेत्र के कई

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कब्रिस्तान भी नदी में कट गये। यहां बाढ़ से निजात के लिए मंत्रियों से लेकर सांसद व विधायकों ने कई बार घोषणाएं की लेकिन वे आज तक जमीन पर नहीं उतर पाए। आश्वासन के बाद तटबंधों का निर्माण व अन्य बचाव कार्य शुरू जरूर होते हैं, पैसे भी पूरे खर्च होते हैं पर उसका लाभ पीड़ितों से अधिक नेता-अधिकारी-ठेकेदार गठबंधन को होता है।

बाढ के समय सबसे अधिक प्रभावित होता है बायसी अनुमंडल। बायसी के बनगामा पंचायत के मड़वा गांव की यदि बात करें तो इस गांव की तकरीबन पूरी आबादी विस्थापित हो चुकी है। इस गांव की मुगलकालीन मस्जिद महानंदा में कट गई। सांसद एवं विधायकों ने आश्वासन भी दिया पर आज भी पीड़ितों की स्थिति में सुधार नहीं हो पाया है। वहां पूर्व में पीलर के बंडाल के माध्यम से कटान निरोधक काम किया गया। लेकिन करीब एक करोड़ की योजना साल भर में ही पानी में दह गया। बायसी के चोपड़ा पंचायत के चन्द्रगांव एवं चकला गांव की आधी से अधिक आबादी कनकई नदी कटान के कारण विस्थापित हो चुकी है। वहां सांसद के आश्वासन पर कुछ दूरी पर कटान निरोधक कार्य जीओ बैग के माध्यम से हुआ। फिर चकला गांव में 50 मीटर तक काम हुआ जो नदी में दह गया। यहां चकला से मोहम्मदपुर तक के तीन गांव को नदी कटान से बचाने

के लिए करीब 800 मीटर कटान निरोधक काम की अति आवश्यकता है। ग्रामीणों के अनुसार नेताओं का आश्वासन केवल सुनने भर के लिए है। इन गांव का कटान अरसे से हो रहा है। जब बायसी पूर्णिया लोक सभा क्षेत्र में था तब से सांसद कटान को रोकने के आश्वासन दे रहे हैं। मीनापुर के चहट, नया टोला फूलभाषा में नदी कटान अरसे से हो रहा है। परंतु इस गांव की आधी से अधिक आबादी आज विस्थापित हो चुकी है।

सांसद के आश्वासन बाद करीब एक वर्ष पूर्व चहट में कटान निरोधक काम कुछ दूरी तक हुआ जिसमें आधा से अधिक बोरा नदी में विलीन हो गया। अमौर के अधांग, मंगलपुर, बैलगच्छी, ¨सघिया हर बार नदी कटान से प्रभावित होता है। यहां के दर्जनों पर कटान को लेकर विस्थापित हो चुका है। अधांग गांव को बचाने के लिए चैनल का निर्माण किया गया है। मंगलपुर, ढरिया, गांव को कटान से बचाने के लिए बांस का बंडाल से काम किया गया जो साल भर में ही नदी में समा गया।

बैसा के काशीबाड़ी, पीपलटोला, अभयपुर गांव महानंदा नदी कटान से प्रभावित है। इस गांव के अधिकांश लोग जब कटाव के कारण विस्थापित हो गए तो यहां थोड़ा बहुत कटान निरोधक काम किया गया। उन गांव को बचाने के लिए जहां-जहां बास के बंडल से कटाव निरोधक काम किया गया सारा पानी में दह गया। ग्रामीणों के अनुसार सांसद एवं विधायक सिर्फ सपने दिखाते हैं वे आज तक हकीकत नहीं बन पाये।


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