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खेतों से दूर हो रहा किसानों का सोना

पूर्णिया। सीमांचल के किसानों का कभी सोना कहलाने वाला जूट अब यहां के खेतों से दूर होता जा रहा है। कोस

By JagranEdited By: Published: Mon, 26 Jun 2017 09:56 PM (IST)Updated: Mon, 26 Jun 2017 09:56 PM (IST)
खेतों से दूर हो रहा किसानों का सोना
खेतों से दूर हो रहा किसानों का सोना

पूर्णिया। सीमांचल के किसानों का कभी सोना कहलाने वाला जूट अब यहां के खेतों से दूर होता जा रहा है। कोसी और पूर्णिया के जिलों में लगातार पाट फसल का रकबा घटता जा रहा है। सरकार के उदासीन रवैये के कारण लगातार इस खेती में नुकसान झेल रहे किसानों ने अंतत: इससे मुख मोड़ना शुरू कर दिया है। हाल यह है कि 90 के दशक में जहां कोसी और पूर्णिया के जिलों में सात-आठ हजार हेक्टेयर में पाट की खेती होती थी वहां आज यह सिमट कर हजार हेक्टेयर से भी नीचे आ गई है। अब सरकार की तंद्रा टूटी है तथा बीज अनुदान से लेकर उपकरण खरीद और पाट सड़नताल आदि पर लाखों खर्च कर रही है बावजूद किसान इस खेती की ओर रुख नहीं कर रहे।

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80-90 के दशक में थी मुख्य व्यावसायिक फसल

नेपाल की सीमा से सटे अररिया, सहरसा, सुपौल, पूर्णिया, मधेपुरा से लेकर बंगाल की सीमा से सटे किशनगंज, कटिहार आदि जिलों में पाट किसानों की प्रमुख व्यवसायिक फसल थी। जूट से किसानों को अच्छी आमदनी होती थी। शादी-श्राद्ध से लेकर बच्चों की पढ़ाई और जरूरत के अन्य सामानों की पूर्ति के लिए किसान जूट की फसल पर ही निर्भर थे। क्षेत्र के लाखों एकड़ में किसान पाट की खेती करते थे लेकिन सरकार की अनदेखी के कारण पाट की खेती का यह रकबा पूरे सीमांचल में लगातार घटता जा रहा है। पूर्णिया जिले में वित्तीय वर्ष 13-14 में 550, 14-15 में 520, 15-16 में 473 और 16-17 में मात्र 400 हेक्टेयर में जूट की खेती की गई। चालू वित्तीय वर्ष में इसका रकबा और घटने की उम्मीद है।

व्यापारी करने लगे किसानों का शोषण-

यहां के पाट की मांग बंगाल में सबसे अधिक थी जहां से इसे देश के अन्य राज्यों सहित विदेशों में भेजे जाते थे। इससे किसानों को अच्छी आय प्राप्त हो जाती थी लेकिन धीरे-धीरे व्यापारी किसानों का शोषण करने लगे और उन्हें लागत मूल्य भी नहीं मिलने लगा जिससे किसान इस खेती से मुंह मोड़ने लगे। जूट व्यापारी किसानों से कम दाम में माल खरीदते तथा समय पर उसे भुगतान भी नहीं किया जाता था। जबकि पाट के बीज से लेकर खाद का मूल्य और मजदूरी लगातार बढ़ने से लागत बढ़ रही थी ¨कतु उस अनुरूप उसे कीमत व्यापारियों से नहीं मिलती। बाजार पर सरकार का नियंत्रण नहीं रहने से किसानों का शोषण बढ़ने लगा जिससे वे इस फसल से मुख मोड़ने लगे।

बंद हो गई जूट मिल

पूर्णिया प्रमंडल स्थित कटिहार जिले में जूट मिल स्थापित किया गया था जहां बड़े पैमाने पर जूट की खपत होती थी। लेकिन सरकारी उदासीनता और राजनीतिक दखलअंदाजी के कारण मिल लगातार घाटे में जाने लगा जिस कारण उसका संचालन बंद हो गया। कोलकाता में भी जूट के कई मिल बंद हो गये जिस कारण जूट की मांग वहां घट गई। वहीं अररिया में भी सहारा समूह की ओर से जूट से बनने वाले सामानों के निर्माण का बड़ा प्लांट स्थापित किया गया था। लेकिन कई कारणों से वह भी प्रभावित हो गया। जिस कारण यहां के किसानों के पाट की मांग कम होने लगी और खेती घटने लगी। आलम यह है कि किसानों का मुख्य व्यवसायिक फसल आज यहां विलुप्त होने के कगार पर है।

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कोट के लिए-

पाट फसल की खेती का रकबा घट रहा है। हालांकि इसकी खेती के प्रोत्साहन के लिए योजनाएं चलाई जा रही है बावजूद किसान इसकी जगह दूसरी नकदी फसल को अपना रहे हैं। इस वित्तीय वर्ष में पूर्णिया में मात्र करीब 400 हेक्टेयर में इसकी खेती की गई है।

सुरेंद्र प्रसाद, जिला कृषि पदाधिकारी, पूर्णिया।


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