ठंड बढ़ने के साथ ही विदेशी पक्षियों की जान पर खतरा
पूर्णिया। ठंड बढ़ने के साथ ही प्रवासी पक्षियों की जान को खतरा बढ़ गया है। विलुप्ति के कगार पर पहुंच
पूर्णिया। ठंड बढ़ने के साथ ही प्रवासी पक्षियों की जान को खतरा बढ़ गया है। विलुप्ति के कगार पर पहुंच चुके कई पक्षियों को लोग अपने भोजन के लिए मार रहे हैं। बगेड़ी, कैंप, शिल्ली तथा चाहा पक्षियों की आजकल जान पर बन आई है। ठंड का मौसम इन पक्षियों के लिए मौत का पैगाम लेकर आता हैं। सर्द भरे मौसम में जिले के बड़े से लेकर छोटे होटलों में इन पक्षियों की मांग बढ़ जाती है। ऐसे में मांग की पूर्ति के लिए इन पक्षियों का शिकार होना प्रारंभ हो जाता है। जानकारों की मानें तो नवंबर से लेकर मार्च तक सिर्फ पूर्णिया जिले में तकरीबन पांच हजार से अधिक देशी एवं प्रवासी पक्षियों की सप्लाई होटलों में की जाती है। रविवार को कसबा बाजार में इन पक्षियों को होटल में बिक्री कर रहे अररिया जिले के मो. मोजीब ने बताया कि उनके पास देशी पक्षियों से लेकर प्रवासी पक्षियों तक मांस उपलब्ध हैं। जो ग्राहक मांस की मांग करते हैं उन्हें मांस या फिर ¨जदा पक्षी की मांग करने पर उन्हें पक्षी दी जाती है। उन्होंने बताया कि प्रवासी पक्षी कैंप की कीमत 500 से 600 रूपए, अ¨धगा 300 से 400, बगेरी 35 से 60 रूपए, चाहा 60 से 90 तक तथा बटेर की कीमत 100-150 तक प्रति पीस है। उन्होंने बताया कि पक्षियों का शिकार करना उनका खानदानी धंधा है जो अंग्रेजों के समय से उनके पूर्वज करते आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि पक्षियों के शिकार के लिए अररिया, कटिहार जिले के मनिहारी, काढ़ागोला, नवगछिया में गंगा नदी के तटीय क्षेत्रों में महीनों चक्कर काटना पड़ता है। वहीं उन्होंने बताया कि पक्षियों का शिकार करना गैर कानूनी है इसका पता उन्हें नहीं है। यद्यपि इन पक्षियों को बेचने के क्रम में अगर पुलिस हस्तक्षेप करती है तो उन्हें भी पक्षी थमा दिया जाता है। मामला चाहे जो भी ¨कतु इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि मनुष्य के बढ़ते स्वार्थ के शिकार निर्दोष पक्षी हो रहे हैं। वहीं इन पक्षियों को बेचने वाले होटल संचालक दिनों-दिन मालामाल होते जा रहे हैं। जिन्हें देखने वाला कोई नहीं है।