सफाई में कम वाहनों की खरीद में निगम की अधिक है दिलचस्पी
पूर्णिया। वाहनों की खरीद पर करोड़ों खर्च करने वाले निगम के पास कूड़ा निस्तारण के लिए दो गज जमीन उपलब्ध
पूर्णिया। वाहनों की खरीद पर करोड़ों खर्च करने वाले निगम के पास कूड़ा निस्तारण के लिए दो गज जमीन उपलब्ध नहीं है। परिणामस्वरूप पूरा शहर कचरा-कचरा है। पता ही नहीं चलता यह शहर है या कचरा डं¨पग सेंटर। शहर का मुख्य चौराहा हो या मुहल्ला। जिधर देखो उधर ही कचरा। वह भी तब जबकि हर शहरी शहर को साफ रखने के लिए अपनी गाढ़ी कमाई से कटौती कर टैक्स के रूप में निगम को रकम अदा करते हैं। लेकिन नगर निगम के पास कचरा निस्तारण के लिए जगह ही नहीं है। सो पूरा नगर क्षेत्र कचरा निस्तारण प्लेस बना हुआ है। एक चौराहे पर ज्यादा कचरा जमा हो गया तो दूसरा चौराहा बन जाता है कचरा डं¨पग का ठिकाना। कचरों से उठती दुर्गंध के बीच भिनभिनाती सी मक्खियां यहां की पहचान सी बन गई है।
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अनुपयोगी वाहनों की हुई खरीद
हाल के वर्षो में निगम में कई वाहन खरीदे गए हैं। उनमें कई अनुपयोगी है। लाखों की लागत से निगम ने 2 ट्रक माउंटेड सक्शन मशीन खरीदा। सक्शन मशीन लोगों के शौचालय की सफाई के काम आता है। यह पेड सर्विस है जिससे निगम को आय भी मिलता है। लेकिन दो में एक खरीद के कुछ समय बाद से ही निगम के गराज में पड़ा है। वहीं निगम की ओर से दो चलंत शौचालय भी खरीदे गए पर आज भी एक चलंत शौचालय महापौर के दरवाजे की शोभा बढ़ा रहा है। कुछ दिनों पहले तीन ट्रक माउंटेड वाटर टैंक की खरीददारी हुई। प्रति टैंक की 12000 गैलन से अधिक है। जबकि ट्रैक्टर माउंटेड वाटर टैंक पहले से ही यहां मौजूद हैं। एक तो यहां हर जगह 10 फीट पर पानी की उपलब्धता है। इसलिए टैंक की आवश्यकता समारोहों के अवसर पर ही पड़ता है। वह भी यहां अधिकांश मोहल्लों की गलियां 10 से 12 फीट की है जिसमें ट्रक माउंटेड टैंक का घुसना मुश्किल है।
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वही हाल डस्टबीन का भी है
184 बड़े-बड़े डस्टबीन खरीदी गई जिसे ट्रक माउंटेड कंपेक्टर के जरिये ही डिस्पोजल किया जा सकता है। ये कंपेक्टर छोटी गलियों में घुस ही नहीं पाते। वहीं एक कंपेक्टर एक दिन में सभी डस्टबीन खाली नहीं कर पाते हैं। यहां मोहल्लों में छोटे डस्टबीन की जरूरत है लेकिन उसकी खरीद नहीं हो रही है तथा मोहल्लों में कूड़ों का ढेर लगा है। मोहल्ले का कूड़ा उठाने के लिए सिर्फ 28 ट्रक्टर ट्रेलर उपलब्ध हैं जबिक कम से कम हर वार्ड में एक ट्रैक्टर ट्रैलर की आवश्यकता है। आवश्यक सफाई उपकरणों के अभाव में शहर की पर्याप्त सफाई नहीं हो पाती है और जगह-जगह कूड़ा-कचरा जमा रहता है।
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कचरा से पटा है शहर
शहर एवं शहरवासियों की सभ्यता का आकलन वहां की स्वच्छता के आधार पर किया जाता है। जो शहर जितना साफ-सुथरा होता है वहां के लोग उतने ही सुसंस्कृत माने जाते हैं। लेकिन यहां तो जिधर देखो उधर ही कचरा नजर आ जाता है। यह सच्चाई है लाखों रूपए हर माह पैक्स के रूप में नगरवासियों से उगाही करने वाले नगर निगम के पास कचरा निस्तारण के लिए भूमि उपलब्ध नहीं है। कचरा उठाने के लिए करोड़ों के वाहन, लाखों के उपकरण और अन्य सामान खरीद में काफी दिलचस्पी दिखाने वाले निगम कर्मियों के पास कूड़ा निस्तारण के लिए भूमि का प्रबंध नहीं किया जाना अपने आप में सवाल खड़ा करता है। जबकि यहां सरकारी भूमि की भी कमी नहीं है।
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बेकार पड़ा है गार्बेज प्लांट
हालांकि विभाग ने 10 वर्ष पहले काफी तेजी दिखाते हुए पूर्णिया सिटी क्षेत्र में 17 लाख की लागत से गारवेज प्लांट लगाया था। डं¨पग सेँटर के लिए भूमि के अलावा 27 चेंबर भी बनाए गए थे जिसमें जैविक खाद बनाया जाना था। साथ ही उससे बिजली भी तैयार किए जाने की योजना था। पटना की शिवम जन स्वास्थ्य संस्था से इसके लिए करार भी हुआ था। फिर न जाने कौन सा करार हुआ कि दस वर्षों बाद भी इस प्लांट का उद्घाटन नहीं हुआ और लाखों कचरा में ही दब गए। कचरा निस्तारण के नाम पर आजतक करोड़ों की राशि का कबारा कर दिया लेकिन निस्तारण के लिए जमीन से जुगाड़ नहीं कर सका। जिस कारण शहर के मुख्य चौराहों टैक्सी स्टेंड, गिरिजा चौक के समीप, पॉलिटेक्निक चौक, बायपास रोड जैसे सघन इलाकों में कचरों का निस्तारण हो रहा है। जिससे पूरा शहर कचरों से पटा प्रतीत होता है। कचरे से पटे होने के कारण शहरवासी विष्शाणु, कीटाणु जनित रोग फैलने की आशंका से ग्रसित रहते हैं। लेकिन इससे ना तो निगम के हाथों में और ना चुने हुए प्रतिनिधियों को कोई मतलब रह गया है। हालांकि नगर आयुक्त सुरेश चौधरी ने कहा है कि कचरा डं¨पग के लिए 15 एकड़ जमीन का चयन कर लिया गया है। जमीन अधिग्रहण की कागजी कार्रवाई पूरी होने के बाद वहां का निस्तारण किया जाएगा।
कहते हैं शहरवासी
सफाई व्यवस्था पर निगम का ध्यान नहीं है। हर जगह कूड़ा-कचरा जमा रहता है। नियमित सफाई नहीं हो पाती है जिससे बीमारी फैलने की आश्का बनी रहती है। सोनू कुमार कहते हैं कि चलंत शौचालय की उन लोगों को जानकारी तक नहीं है। यदि चलंत शौचालय की व्यवस्था है तो उसका उपयोग नहीं हो पा रहा है जो निगम की कार्यशैली पर प्रश्न चिन्ह लगाता है।
अजय कुमार शाह, शहरवासी
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हमलोग सफाई के लिए निगम को टैक्स देते हैं लेकिन उस अनुरूप सेवा नहीं दी जाती है। न तो मोहल्ले की सड़कों पर रोजाना झाड़ू लगाया जाता है और न नाले की सफाई कराई जाती है। जिससे जहां-तहां फेंका गया कचरा दुर्गंध पैदा करता है तथा मोहल्ले वाले परेशान होते हैं।
जितेंद्र कुमार, शहरवासी
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निगम आयुक्तों को लैपटॉप उपलब्ध करा रही है लेकिन जो जनता टैक्स देती है उसकी सुविधा का उसे खयाल नहीं है। मोहल्ले में गंदगी पटा रहता है लेकिन उसे देखने वाला कोई नहीं है। न तो वार्ड आयुक्तों को इसकी ¨चता रहती है और न ही निगम कर्मियों को।
प्रमोद कुमार, शहरवासी
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निगम बड़े-बड़े वाहनों की खरीद में काफी दिलचस्पी दिखाता है लेकिन कूड़ा निस्तारण के लिए जमीन नहीं खरीद रही है। वे लोग डस्टबीन की मांग वर्षों से कर रहे हैं लेकिन आज तक मोहल्ले में डस्टबीन नहीं लगाया जा सका है। जिस कारण लोग जहां-तहां कूड़ा फेंक देते हैं।
कुंदन कुमार, शहरवासी