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मंच पर ताली बाकी फटेहाली

-समाज को जोड़ने और जागरूक करने का सशक्त माध्यम है नाटक -जीविकोपार्जन के लिए कलाकारों का टूट रहा रंग

By Edited By: Published: Sun, 29 Mar 2015 04:14 PM (IST)Updated: Sun, 29 Mar 2015 04:14 PM (IST)
मंच पर ताली बाकी फटेहाली

-समाज को जोड़ने और जागरूक करने का सशक्त माध्यम है नाटक

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-जीविकोपार्जन के लिए कलाकारों का टूट रहा रंगमंच से नाता

-राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर यहां के कलाकार मना चुके हैं अपनी प्रतिभा का लोहा

-विरासत को बचाने के लिए नई पीढ़ी आज भी है प्रयासरत

-कला को दिया जा रहा सरकारी स्तर पर बढ़ावा, कलाकार पड़ रहे पीछे

राजेश कुमार, पूर्णिया : रंगकर्म समाज के नव निर्माण का सशक्त माध्यम है। इसके माध्यम से कला का प्रदर्शन तो होता ही समाज को संदेश भी जाता है। भले ही रंगकर्मियों को रंगमंच पर ताली मिलती हो लेकिन बाकी तो फटेहाली ही रहती है। नाटक जो मनोरंजन ही नहीं समाज को जोड़ने का माध्यम भी होता था यही कारण है कि वह हाशिए पर जा रहा है।

कला के मामले में फणीश्वर नाथ रेणु की यह धरती काफी समृद्ध है। यहां कई संस्थाएं कला, साहित्य और रंगकर्म के माध्यम से जन चेतना जगा रही हैं। कला भवन नाट्य विभाग, कसबा सांस्कृतिक मंच (कसम), रेणु रंगमंच संस्थान, सृजन कला मंगलम, रेणु रंगमंच, भरत नाटय कला केंद्र, सुधांशु लोक कला मंच, सरगम सांस्कृतिक मंच आदि आज भी कला को समर्पित हैं। यहां के रंगकर्मी जिला स्तर से लेकर राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर अपनी कला का लोहा मनवाया है। नाट्य विभाग कला भवन की मृदंगिया, महिला कॉलेज की समूह लोक गायन मंडली, कसम की लोक नृत्य टीम ने राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर अपनी बेहतरीन प्रस्तुति दी है। यह सिलसिला पूर्व से जारी है लेकिन कुछ अपवादों को छोड़ दें तो जीविकोपार्जन के लिए अधिकांश कलाकारों को रंगमंच छोड़ना पड़ा। अपने समय के कई नामी कलाकार आज शहर में या दूसरे जगहों पर अन्य धंधा अपनाए हुए हैं। जबकि नई पीढ़ी विरासत को बचाए रखने के लिए आज भी रंगमंच से जुड़े हैं। कला संस्थानों से जुड़े लोगों की माने तो बाहर कार्यक्रम प्रस्तुत करने के लिए जाने पर सरकार द्वारा वाहन आदि की व्यवस्था तो की जाती है लेकिन पारिश्रमिक नहीं मिलती है। भले ही कला ताली की ही भूखी हो लेकिन पेट चलाने के लिए पैसे की आवश्यकता होती है।

कला भवन नाट्य विभाग के निर्देशक कुंदन कुमार कहते हैं कि विश्व रंगमंच दिवस पर भले ही रंगमंच के दुर्दशा पर कलाकार चर्चा करते हों लेकिन व्यवहारिक तौर कलाकारों की दशा भी ठीक नहीं है। सरकार द्वारा कला को बढ़ावा दिया जा रहा है जिसका परिणाम भी दिख रहा है। इसी तरह कलाकारों के जीविकोपार्जन के लिए भी उचित व्यवस्था की जानी चाहिए। खेलों की तरह कला के क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए नौकरी आदि में व्यवस्था होनी चाहिए।

वहीं कसम के संस्थापक एस कुमार रोहितस्व पप्पू कहते हैं कि कला के माध्यम से जिले का नाम रोशन करने वाले कलाकारों को सरकारी नौकरियों में वेटेज दिया जाना चाहिए। स्कूलों में एक्टिंग के लिए भी व्यवस्था होनी चाहिए।


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