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जीव को उसके लक्ष्य तक पहुंचाने का मार्ग है साधना : विश्वदेवानंद

पूर्णिया, जागरण प्रतिनिधि : आनंद मार्ग द्वारा इंदिरा गांधी स्टेडियम में आयोजित दो दिवसीय धर्म महासम्

By Edited By: Published: Sat, 18 Oct 2014 08:51 PM (IST)Updated: Sat, 18 Oct 2014 08:51 PM (IST)
जीव को उसके लक्ष्य तक पहुंचाने का मार्ग है साधना : विश्वदेवानंद

पूर्णिया, जागरण प्रतिनिधि : आनंद मार्ग द्वारा इंदिरा गांधी स्टेडियम में आयोजित दो दिवसीय धर्म महासम्मेलन का शुभारंभ शनिवार की सुबह पाग्धजन्य से हुआ। अपराह्न में आनंद मार्ग के श्रद्धेय पुरोधा प्रमुख आचार्य विश्वदेवानंद अवधूत ने आध्यात्मिक उद्बोधन किया। साधना और कीर्तन विषय की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि जीव को उसके लक्ष्य तक पहुंचाने का मार्ग है साधना। साधना का लक्ष्य है परम पुरूष को प्राप्त करना। इसे ही आध्यात्मिक साधना कहते हैं। उन्होंने कहा कि साधारणत: मनुष्य अपने इष्ट देवी-देवता को खुश करने के लिए प्रार्थना, अर्चना, उपासना, दुख कष्ट दूर करके सुख समृद्धि तथा कामनाओं की पूर्ति करने के लिए नाना प्रकार के उपक्रम करते हैं। अपने मन की अतृत्प या इच्छाओं को पूर्ति करने के लिए ही ऐसे लोग बाह्य उपाचार के माध्यम से संतुष्ट करने की चेष्टा करते हैं। खुश करने का प्रयास करते हैं। प्रचलित धर्मकांडों का उन्होंने पर्दाफाश किया। वहीं टाउन हॉल में अपरान्ह विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें डीआइजी आर एस सिंह, मेयर कनिज रजा एवं उप मेयर संतोष यादव सहित कई गणमान्य लोग उपस्थित हुए।

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उन्होंने आनंद मार्ग प्रार्थना, अर्चना का भ्रममूलक बताया है। भ्रमित लोग डर से ऐसे उपाचार में लिप्त होने के लिए बाध्य होते हैं। बाबा आनंद मूर्ति जी द्वारा प्रस्तुत प्रभात संगीत का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए उन्होंने कहा कि साधक अपनी सारी इच्छा परम पुरूष के उपर सौंप देता है। वह यह मानता है कि तुम्हारा प्रार्थना करना मेरे लिए एक प्रकार से आत्म वाग्चना है। मुझे वही दो जो तुम उचित समझते हो। दर्शन का दृष्टांत देते हुए उन्होंने कहा कि परम पुरूष की आज्ञा से परम प्रकृति ने सभी जीवों की आवश्यकता को पूरा करने की प्राकृतिक व्यवस्था की है। उन्होंने कहा कि एक व्यक्ति बाबा से धन मांगा, बाबा ने दे दिया किंतु वह उनसे बहुत दूर चला गया। इसलिए उनसे कुछ भी मांगना उचित नहीं है। अपने अल्पबुद्धि से मनुष्य उनसे क्या मांग सकता है। इसलिए प्रार्थना, अर्चना मनुष्य के लिए शोभनीय नहीं है। शास्त्र में कहा गया है कि सभी साधनाओं में उत्तम है ब्रह्मा साधना। योगश्चित्त वृति निरोध का खंडन करते हुए उन्होंने कहा कि यह योग की सही व्याख्या नहीं है। चित्त वृत्तियों का निरोध कुछ समय के लिए संभव है किंतु उसकी अभिव्यक्ति ठीक उसी प्रकार से खतरनाक होती है जैसे जलाशय के बांध टूटने पर बाढ़ की अवस्था में। इसके अलावा चिंता शून्य होना भी योग या ध्यान नहीं है। उन्होंने कहा कि योग साधना का मूल समर्पण है। ध्यान के विषय में बोलते हुए उन्होंने कहा कि सद्भाव या ईश्वर का भाव रखना ही ध्यान है। इसमें मन की गतिशीलता को बनाए रखना आवश्यक होता है। ध्यान मधु या तेल के धार के समान मन की गतिशील अवस्था का नाम है जो आपात दृष्टि में गतिशील नहीं दिखता किंतु वास्तव में धारा प्रवाहित होती रहती है। उन्होंने कहा कि ध्यान साधना में मन की गतिशीलता कीर्तन का बड़ा योगदान होता है। बाबा नाम केवलम कीर्तन मंत्र का कीर्तन करने से मन परमात्मा में केंद्रित हो जाता है।

वहीं दोपहर आनंद मार्ग साधकों द्वारा एक भव्य शोभा यात्रा भी निकाली गई। जो शहर की परिक्रमा करते हुए शहर के टाउन हाल पहुंची। टाउन हाल में एक विचार गोष्ठी का विधिवत वक्ताओं ने संक्रांति काल का दर्शन और आनंद मार्ग की देन विषय पर तथ्यपूर्ण बातें रखी। संध्या काल में सामूहिक ध्यान साधना के उपरांत सांस्कृतिक कार्यक्रम हुआ तथा रात्रि प्रवचन के साथ सद्गुरू श्री श्री आनंद मूर्ति जी का वीडियो प्रवचन दिखाया गया।


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