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अंतरराष्‍ट्रीय योग दिवस: पूरी दुनिया में बिहार का बज रहा डंका, जानिए

बिहार के मुंगेर जिले में स्थित योग आश्रम की पूरी दुनिया में धूम मची है। यहां योग साधना के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं। योग के द्वारा असाध्य बिमारियों पर काबू पाया जा सकता है।

By Kajal KumariEdited By: Published: Wed, 21 Jun 2017 10:22 AM (IST)Updated: Wed, 21 Jun 2017 07:05 PM (IST)
अंतरराष्‍ट्रीय योग दिवस: पूरी दुनिया में बिहार का बज रहा डंका, जानिए
अंतरराष्‍ट्रीय योग दिवस: पूरी दुनिया में बिहार का बज रहा डंका, जानिए

पटना [जेएनएन]। बिहार योग या सत्यानंद योग का डंका न केवल बिहार और भारत के अन्य हिस्सों में, बल्कि दुनिया के अनेक देशों में बजने लगा है। इसके साथ ही बिहार का मुंगेर पूरे विश्व में निर्विवाद रूप से योग का केंद्र बन चुका है। एक सौ चालीस देशों में सात सौ से अधिक सत्यानंद योग केंद्र इस बात के गवाह हैं।

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सन् 1964 में मुंगेर के बिहार योग विद्यालय की ओर से आयोजित पहले योग सम्मेलन में इस विद्यालय के संस्थापक स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने कहा था, ‘मुंगेर पूरे विश्व के लिए योग का केंद्र बनेगा और इसे विश्व के नक्शे में स्थान प्राप्त होगा।’ आज वह बात पूरी तरह साबित हो चुकी है।

योग निद्रा के बेहतर नतीजे

आधुनिक शिक्षा पद्धति में भी योग निद्रा का प्रयोग किया जाने लगा है। वैज्ञानिकों के मुताबिक जहां कहीं भी इस विद्या का प्रयोग किया गया है, उसके बेहतर नतीजे देखने को मिले हैं। बल्गेरियन मनोवैज्ञानिक व इंस्टिट्यूट ऑफ सजेस्टोपेडी इन सोफिया के संस्थापक डॉ. जॉर्जी लोजानोव योग निद्रा का प्रयोग शिक्षा के क्षेत्र में एक नया वातावरण तैयार करने के लिए कर रहे हैं ताकि बिना प्रयास के ज्ञान अर्जन किया जा सके। उन्हें इसमें सफलता भी मिल रही है।

योग निद्रा से कैंसर पर भी पाया जा सकता है काबू

‘योग निद्रा’ योग परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती की ओर से दुनिया को दिया गया ऐसा अमूल्य उपहार है, जिसके चमत्कारिक प्रभाव से लोगों को अनेक असाध्य रोगों से छुटकारा मिल रहा है। कैंसर जैसी असाध्य बीमारी पर काबू रखने में सफलता मिल रही है।

उन्होंने अपने अध्ययनों और अनुसंधानों से साबित कर दिया कि ‘योग निद्रा’ के अभ्यास से संकल्प-शक्ति को जगाकर कर आचार-विचार, दृष्टिकोण, भावनाओं और सम्पूर्ण जीवन की दिशा को बदला जा सकता हैं।

अमेरिका के शोधकर्ताओं ने योग निद्रा को कैंसर की एक सफल चिकित्सा पद्धति के रूप में स्वीकार किया है। टेक्सस के रिडियोथेरपिस्ट डॉ. ओसी सीमोनटन ने एक प्रयोग में पाया कि रेडियोथेरपी से गुजर रहे कैंसर के रोगी को योग निद्रा के अभ्यास से उसका जीवन-काल काफी बढ़ गया था।

असाध्य रोगों का भी है योग में उपचार

मनोवैज्ञानिक रोग, अनिद्रा, तनाव, नशीली दवाओं के प्रभाव से मुक्ति, दर्द का निवारण, दमा, पेप्टिक अल्सर, कैंसर, हृदय रोग आदि बीमारियों पर किए गए अनुसंधानों से योग निद्रा के सकारात्मक प्रभावों का पता चल चुका है। अमेरिका के स्टैनफर्ड यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन में किए गए एक अध्ययन में देखा गया कि योग निद्रा के नियमित अभ्यास से रक्तचाप की समस्या का निवारण होता है।

स्वामी निरंजनानंद सरस्वती, मंगल मिशन से जुड़‍े योगगुरु

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बिहार योग का डंका कितना असरदार है, इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि स्वामी निरंजनानंद सरस्वती मंगल मिशन के पांच सौ वैज्ञानिकों के समूह में शामिल हैं, जो ऐसी तरकीब निकालने में जुटे हुए हैं कि मंगल ग्रह पर यदि मानव का वास होगा और वह बीमार पड़ेगा तो उसका इलाज धरती से ही कैसे किया जा सकेगा? वह इकलौते संत हैं जो मंगल मिशन से जुड़े पांच सौ वैज्ञानिकों के समूह में शामिल है।

दरअसल स्वामी सत्यानंद सरस्वती के गुरु ऋषिकेश के स्वामी शिवानंद सरस्वती ने योग को एक ऐसे जीवनोपयोगी विज्ञान के रूप में प्रस्तुत किया था कि उसे हर व्यक्ति सरलता से अपने जीवन में अपना सकता था। स्वामी शिवानंद जी चाहते थे कि योग विद्या पूरी दुनिया में फैले। इसके लिए उन्हें स्वामी सत्यानंद के रूप में सुपात्र शिष्य मिल चुका था।

लिहाजा उन्होंने स्वामी सत्यानंद को क्रिया योग की शिक्षा देकर 1956 में लक्ष्य दिया था कि बीस वर्षों में योग को द्वार-द्वार पहुंचाओ, विश्व के कोने-कोने में फैलाओ। नतीजतन कड़े तप के बाद बिहार में गंगा के तट पर अवस्थित मुंगेर के जिस स्थान से दानवीर कर्ण सोना दान किया करते थे, वहां से स्वामी सत्यानंद सरस्वती पूरी दुनिया में योग बांटने लगे।

वर्तमान की सर्वाधिक मूल्यवान विरासत है योग

आधुनिक यौगिक व तांत्रिक पुनर्जागरण के प्रेरणास्रोत तथा बिहार योग विद्यालय के संस्थापक  परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने साठ के दशक में ही कहा था – ‘योग अतीत के गर्भ में प्रसुप्त कोई कपोल-कथा नहीं है। यह वर्तमान की सर्वाधिक मूल्यवान विरासत है। यह वर्तमान युग की अनिवार्य आवश्यकता और आने वाले युग की संस्कृति है। योग विश्व की संस्कृति बनेगा।’

तब इस भविष्यवाणी को स्वीकार करना हर किसी के लिए कठिन था। पर अब जबकि भारत सरकार की पहल पर योग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थान पा चुका है और 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाने लगा है तो स्वामी सत्यानंद जी का योग-दर्शन ज्यादा प्रासंगिक हो गया है।

हालांकि सिक्के का दूसरा पहलू यह है कि भारत में जिस तेजी से योग का प्रचार-प्रसार हुआ था, उसी तेजी से उसका विकृत रूप भी सामने आने लगा है।

परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती को पारंपरिक योग को आधुनिक सांचे में ढालकर जनोपयोगी बनाने जितना समय लगा था, उससे कम ही समय में देश में कई स्तरों पर योग का व्यावसायीकरण करके उसका बेड़ा गर्क किया जा रहा है। इस वजह से आत्म-ज्ञान प्रदान कराने वाली यह महान विद्या कमर दर्द, वजन घटाने आदि तक में सीमित होती जा रही है।

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इस वर्ष पद्मभूषण से सम्मानित किया गया 

परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती के उत्तराधिकारी और बिहार योग विद्यालय तथा विश्व योगपीठ के परमाचार्य परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने, जिन्हें इस वर्ष पद्मभूषण से सम्मानित किया गया है, अपनी भारत यात्रा के क्रम में देश के विभिन्न हिस्सों में आयोजित योगोत्सवों के जरिए अपनी चिंता से जनमानस को अवगत कराया और योग की महत्ता पर प्रकाश डाला।

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