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पटना क्या कोई भी शहर बन सकता है इस गांव सा....जानिए क्या है खासियत?

पटना स्मार्ट सिटी नहीं बन सका तो इसके लिए पटनावासियों को घोर निराशा हाथ लगी। कुछ आदतों में सुधार लाकर पटना को भी स्मार्ट बनाया जा सकता है। जैसे - मेघालय का ‘मावल्यान्नॉंग’ गांव।

By Kajal KumariEdited By: Published: Sat, 25 Jun 2016 07:53 PM (IST)Updated: Sun, 26 Jun 2016 07:37 AM (IST)
पटना क्या कोई भी शहर बन सकता है इस गांव सा....जानिए क्या है खासियत?

पटना [काजल]। स्मार्ट सिटी का नाम जेहन में आते ही साफ-सुथरा और हाइटेक सिटी की तस्वीर सामने आती है। पटना की बात करें तो स्मार्ट सिटी के लिए तैयार किये गये मानकों पर पटना नगर निगम खड़ा नहीं उतरा और स्मार्ट सिटी के लिस्ट से बाहर हो गया। यह जानकर पटनावासियों को घोर निराशा हाथ लगी।

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स्मार्ट सिटी अलग बात है लेकिन सबसे गंदे शहर की लिस्ट में पटना का नाम शामिल होना हम सबके लिए शर्मिंदगी की बात है। हमारा पटना ही नहीं गंदे शहरों की लिस्ट में देश के कई अन्य शहर भी हैं। गंदगी से छुटकारा पाना उतना मुश्किल भी नहीं, बस जरूरी है आदतों में बदलाव लाने की।

आइए बताते हैं एशिया के सबसे साफ गांव के बारे में, आखिर कैसे है सबसे अलग.....

एशिया का सबसे साफ गांव, जो है नजीर

क्या आप जानते हैं कि एशिया का सबसे साफ-सुथरा गांव भी हमारे देश में ही है और वह गांव है - मेघालय का ‘मावल्यान्नॉंग’ गांव जिसे सफाई की वजह से ‘भगवान का अपना बगीचा’ भी कहा जाता है।

हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस गांव को दौरा किया। यहां स्वच्छ भारत अभियान से जुड़े कई लोगों को उन्होंने सम्मानित भी किया। आपको बता दें कि सफाई के साथ-साथ यह गांव शिक्षा में भी अव्वल है। यहां की साक्षरता दर 100 फीसदी है।

2003 में एशिया का सबसे साफ गांव घोषित

यह गांव 2003 में एशिया का सबसे साफ और 2005 में भारत का सबसे साफ गांव बना। इस गांव की सबसे बड़ी खासियत यह है की यहां की सारी सफाई ग्रामवासी स्वयं करते है, सफाई व्यवस्था के लिए वो किसी भी तरह प्रशासन पर आश्रित नहीं है। और यही आदत इस गाँव को शेष भारत से अलग करती है जहाँ हम हर बात के लिए प्रशासन पर निर्भर रहते है, खुद कुछ पहल नहीं करते है।

यहां लोग खुद ही करते हैं सफाई

इस पूरे गांव में जगह-जगह बांस के बने डस्टबिन लगे हैं। किसी भी ग्रामवासी को फिर चाहें वो महिला हो, पुरुष हो या बच्चे हो जहां गन्दगी नज़र आती है तो वे सफाई पर लग जाते हैं। सफाई के प्रति जागरूकता का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि यदि सड़क पर चलते हुए किसी ग्रामवासी को कोई कचरा नज़र आता है तो वो रूककर पहले उसे उठाकर डस्टबिन में डालेगा फिर आगे जाएगा। यहां बेकार सामान को डस्टबिन में डाला जाता है और इसको एक गड्डे में डालकर उसकी खाद तैयार की जाती है।

मातृसत्तात्मक परंपरा का निर्वाह

यही नहीं यहां कि परंपरा भी हमारे देश की बाकी जगहों से बिलकुल अलग है। लोगों की परम्परा के अनुसार मावलेन्नॉन्ग में सम्पत्ति और धन दौलत मां अपनी सबसे बड़ी पुत्री को देती है और वह अपनी मां का उपनाम आगे बढ़ाती है।

130 साल पहले शुरू हुई थी सफाई की शुरुआत

सफाई के प्रति मावलिननॉन्ग की यह लगन दरअसल 130 साल पहले शुरू हुई जब इस गांव में हैजे की बीमारी का आतंक छा गया था। किसी भी तरह की मेडिकल सुविधा न होने की वजह से इस बीमारी से छुटकारा पाने के लिए सिर्फ सफाई ही एकमात्र तरीका बच गया था।

100 में से लगभग 95 घरों में शौचालय

खोंगथोहरेम का कहना है 'क्रिश्चियन मिशनरी ने हमारे पूर्वजों से कहा था कि तुम सफाई के जरिए ही हैजे से खुद को बचा सकते हो। फिर खाना हो, घर हो, ज़मीन हो, गांव हो या फिर आपका शरीर सफाई ज़रूरी है।' यही वजह है कि घर - घर में शौचालय के मामले में भी यह गांव सबसे आगे है और 100 में से लगभग 95 घरों में यहां शौचालय बना हुआ है।

हम भी सफाई का यही तरीका नहीं अपना सकते..

ये बात तो हो गई मावलिननॉन्ग की....क्या हम इस गांव के सफाई के नियम को अपनाकर अपने शहर को भी साफ सुथरा नहीं बना सकते? हम प्रशासन पर क्यों निर्भर रहें, हम क्यों ना खुद सफाई का जिम्मा उठाएं और अपने-अपने शहरों को साफ रखने का संकल्प लें।


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