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थकी और हारी हुई सेना लेकर क्या युद्ध जीत सकेंगे शरद यादव?

शरद यादव ने जो नीतीश कुमार और एनडीए के खिलाफ बिगुल फूंका है और जदयू से खिलाफत करने के बाद अब नये समीकरण की तलाश में हैं, लेकिन क्या एेसी कमजोर सेना के साथ युद्ध जीत सकेंगे।

By Kajal KumariEdited By: Published: Fri, 18 Aug 2017 09:11 AM (IST)Updated: Sat, 19 Aug 2017 10:06 AM (IST)
थकी और हारी हुई सेना लेकर क्या युद्ध जीत सकेंगे शरद यादव?
थकी और हारी हुई सेना लेकर क्या युद्ध जीत सकेंगे शरद यादव?

पटना [काजल]। बिहार में महागठबंधन के टूटने के बाद जेडीयू के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव ने बागी तेवर अपना लिए हैं। उन्होंने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष सह बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमारके खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। शरद यादव ने गुरुवार को अपनी सियासी राह तलाश करने के लिए विपक्षी दलों को एकजुट करके साझी विरासत बचाओ सम्मेलन किया।

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इस कार्यक्रम के जरिए शरद ने अपनी ताकत का भी प्रदर्शन किया, लेकिन शरद जिन नेताओं और दलों के सहारे शरद यादव अपनी सियासी ताकत नापने चले हैं, उनके पैरों तले से पहले ही सियासी जमीन खिसक चुकी है।

शरद के साझी विरासत बचाओ सम्मेलन में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी, पूर्व पीएम मनमोहन सिंह, सीताराम येचुरी, गुलाम नबी आजाद, फारुक अब्दुल्ला, रामगोपाल यादव, तारिक अनवर, प्रकाश अंबेडकर, टीएमसी सांसद सुखेंदु शेखर राय, जयंत चौधरी समेत विपक्ष के कई नेता शामिल हुए।

शरद के लिए कांग्रेस है बड़ा सहारा 

शरद यादव के सम्मेलन में सबसे ज्यादा कांग्रेसी नेता शामिल हुए। इससे साफ है कि उन्हें कांग्रेस से काफी उम्मीदें हैं। लेकिन कांग्रेस के पैरों तले से पहले ही सियासी जमीन खिसकती जा रही है। आज कांग्रेस के पास उत्तर भारत में पंजाब और हिमाचल प्रदेश के सिवा कोई राज्य नहीं बचा है, जहां वो सत्ता में हो। सवाल है कि जो कांग्रेस अपनी सियासी जमीन बचाने में खुद नाकाम है, वो शरद की सियासी जमीन मजबूत करने में कितनी सफल होगी।

शरद की दूसरी सबसे बड़ी उम्मीद है सपा

शरद यादव को दूसरी सबसे बड़ी उम्मीद है, तो वो है- समाजवादी पार्टी है। जिसके लिए शरद ने विधानसभा चुनाव में काफी मेहनत की थी। पार्टी के महासचिव रामगोपाल यादव भी शरद के सम्मेलन में शामिल हुए थे। लेकिन अभी तो समाजवादी पार्टी में खुद ही घमासान मचा हुआ है।

इसी वजह से 2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को अपनी सत्ता गवांनी पड़ी और पार्टी 232 विधायकों से घटकर पचास से भी नीचे आ गई। ऐसे में जहां सपा अपना वजूद बचाने के लिए संघर्ष कर रही है तो वो शरद के लिए उस तिनके से ज्यादा नहीं है जिसके डूबते का सहारा बनने की बात होती है।

कमजोर पड़े वामदलों के सहारे कैसे होंगे मजबूत

वामदल की पार्टियां दिन-ब-दिन कमजोर होती जा रही हैं। बंगाल से सत्ता गंवाने के बाद उनके वजूद पर ही खतरा मंडराने लगा है। ऐसे में वामदल शरद यादव की सियासी जमीन कितनी मजबूत करेंगे, ये अहम सवाल है। वैसे भी वामपंथी दलों का जिन राज्यों में आधार बचा भी है वहां शरद का अपना कोई आधार नहीं है।

मायावती के बसपा का खुद ही ठिकाना नहीं

शरद यादव अपनी सियासी जमीन मजबूत करने के लिए बीएसपी की तरफ उम्मीद भरी नजरों से देख रहे हैं।लेकिन मौजूदा दौर में बीएसपी खुद ही इतनी कमजोर हो चुकी है कि आज लोकसभा में उसका एक भी सांसद नहीं है। बीएसपी का आधार यूपी होता था, लेकिन  2012 के बाद से लगातार बीएसपी यहां से चुनाव हारती आ रही है और 2014 व 2017 में तो उसे बुरी तरह मात मिली है।  

लालू की राजद है बड़ा सहारा, लेकिन केवल बिहार ही

शरद की सियासी राह के लिए जो कुछ थोड़ी बहुत उम्मीद की रोशनी दिख रही है वह लालू यादव की पार्टी आरजेडी है। दरअसल शरद की सियासी जमीन का आधार बिहार है और लालू यादव का भी। इतना ही नहीं दोनों पार्टियों के दुश्मन भी अब एक ही हैं, ऐसे में एक दूसरे के लिए वे संजीवनी बन सकते हैं।

क्योंकि नीतीश का बीजेपी से हाथ मिलाने से मुस्लिम और यादव मतदाताओं में नाराजगी बढ़ी है। ऐसे में लालू और शरद अगर एक-दूसरे के साथ आते हैं तो दोनों की राजनीतिक जमीन मजबूत हो सकती है। लालू यादव भी एेसा ही चाहते हैं।

इसीलिए महागठबंधन के टूटने के बाद लालू शरद पर डोरे डाल रहे हैं और हो सकता है उन्हें कामयाबी भी मिले। लेकिन इसका आधार तो केवल बिहार ही है, एेसे में एनडीए से लड़ाई जीतने के लिए शरद के पास मजबूत आधार नहीं है।


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