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यूपी चुनाव : यह है यूपी-बिहार का नो मेंस लैंड, यहां आदमी हैं पर सरकारें नहीं

बिहार और यूपी की सीमा के कुछ क्षेत्र जो विकास की मुख्यधारा से दूर हैं, जहां आदमी तो हैं लेकिन सरकारें नहीं। चुनाव के समय लोगों को इस गांव की याद आती है।

By Kajal KumariEdited By: Published: Wed, 22 Feb 2017 09:24 AM (IST)Updated: Wed, 22 Feb 2017 10:34 PM (IST)
यूपी चुनाव : यह है यूपी-बिहार का नो मेंस लैंड, यहां आदमी हैं पर सरकारें नहीं
यूपी चुनाव : यह है यूपी-बिहार का नो मेंस लैंड, यहां आदमी हैं पर सरकारें नहीं

पटना [सुनील राज]। दो देशों की सीमा पर तो 'नो मेन्स लैंड' बनाए जाते हैं, लेकिन बिहार से यूपी की सीमा पर भी कमोबेश ऐसी ही स्थिति नजर आती है जहां आदमी तो हैं लेकिन सरकारें नहीं हैं।

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बिहार की बसें यूपी सीमा से पहले ही रुक जाती हैं तो यूपी की बिहार सीमा से पहले। सवाल बस एप्रोच रोड का है। कई मसले ऐसे भी हैं जो दोनों राज्यों के बीच में झूलते नजर आते हैं। बिहार चुनाव में ये मुद्दे उठे थे, यूपी के चुनाव में भी उठे हैं। लेकिन, लोगों का सवाल है कि समाधान कब होगा?

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एक तरफ बिहार, दूसरी तरफ यूपी

कुचायकोट के थोड़ा आगे जलालपुर समेकित जांच चौकी के पास से ही उत्तर प्रदेश का इलाका शुरू हो जाता है। राष्ट्रीय राजमार्ग 28 पर बनी इस जांच चौकी के एक ओर बिहार तो दूसरी ओर उत्तर प्रदेश की सीमा है। दोनों सीमा क्षेत्रों में बहुत कुछ साम्यता नजर आती है। बेहद निश्चिंतता लिए हुए दिन। लोग अपने कामों में हमेशा की तरह जुटे हुए।

लोगों के अंदर है ये मलाल

दोनों इलाके यूं तो संपन्न नजर आते हैं, लेकिन लोगों के अंदर कुछ मलाल और टीस भी है जो तीन-चार साल में एक बार उभर ही आती है। तब चर्चाएं होती हैं, और आर-पार की लड़ाई लडऩे के मंसूबे भी बांधे जाते हैं। इस बार भी कुछ ऐसा ही है। लोगों ने अपनी समस्याओं की गांठे खोलनी शुरू कर दी हैं। उन्हें उम्मीद हैं कि वर्षों से जिस पीड़ा को लेकर वे जी रहे हैं उनका निदान शायद अब हो जाएगा।

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पांच साल पर उगता उम्मीद का फल

उम्मीद का यह फल हर पांच साल पर पेड़ पर उगता है और फिर सूख भी जाता है। यह फल फिर पक रहा है क्योंकि चुनाव फिर आ गए हैं। इलाके में चार मार्च को वोट डाले जाने हैं, लेकिन, पिछले कई सालों की तरह इस बार भी लोग चुनाव की हार-जीत से च्यादा तवज्जो अपनी समस्याओं को दे रहे हैं।

यूपी में हुआ बहुत काम

यूपी की सीमा में प्रवेश करते ही सामने सरकारी स्कूल दिखता है। नाम है यूपीएस अफवा, बलराम कुशीनगर। अभी-अभी दोपहर के लंच के लिए घंटी बजी है। बच्चे हाथों में थाली लेकर मिड-डे मील किचेन की ओर निकल गए हैं। पीछे स्कूल के मास्टर साहब जयप्रकाशजी अपने कमरे में अकेले रह गए हैं। हमने दस्तक दी तो कमरे में बुला लिया।

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बताने लगे कि कई मायने में यूपी में काफी काम हुए हैं, लेकिन कुछ समस्याएं हैं जिनका निदान जल्द ही किया जाना आवश्यक है। कहने लगे यहां सबसे बड़ी समस्या एप्रोच रोड की है। बिहार की ओर से आई बसें सवारियों को बथनाकुटी के पास उतार देती हैं, इधर यूपी से गई बसें सलेमगढ़ के पास। इसके आगे कोई सवारी लेकर नहीं जाना चाहता। इसकी वजह सीमा विवाद नहीं, एप्रोच रोड का न होना है।

ये हैं अघोषित नो मेंस लैंड

दोनों राज्यों की सरकारें पांच छह सौ मीटर सड़कें इस वजह से से नहीं बनाती, क्योंकि उनका मानना है कि यह सड़क पड़ोसी राज्य की सीमा में है। यानी एक अघोषित 'नो मेन्स लैंड, जहां आदमी तो हैं लेकिन सरकारें नहीं हैं।

इसी इलाके के एक गांव रमयणा में अब्दुस समद और इमामुद्दीन अंसारी मिल गए। इमामुद्दीन विकलांग हैं। कहने लगे मैं बथनाकुटी से रमयणा में आकर बस गया। पिछले दो सालों से कोशिश में हूं कि किसी तरह एक ट्राईसाइकिल मिल जाए। पर समस्या आ रही है पहचान की। बिहार सरकार के अधिकारी कहते हैं- आप तो यूपी में बस गए हैं, वहीं ट्राई साइकिल के लिए आवेदन करें।

यूपी सरकार के अधिकारी कहते हैं जब तक यूपी सरकार की ओर से पहचान पत्र नहीं जारी होगा वे कुछ नहीं कर सकते। इन दोनों राज्यों के बीच मैं झूल रहा हूं। कुशीनगर में ही एक जगह जमसड़ा। यहां 40 बीघा खेत के किसान जगदीश मिश्र की अलग समस्या है।

इलाके के प्रधान उन्हें गाहे-बेगाहे धमका जाते हैं कि उनके मकान के ऊपर से बिजली का 11 हजार वोल्ट का तार गुजरेगा। मिश्राजी आग बबूला हो बताते हैं, 'पूरे इलाके में घूम-घूम कर देखिए क्या स्थिति है। टेढ़े मेढ़े बिजली के खंभे लगे हैं। जिनमें से ज्यादातर पर बिजली के तार नहीं। लोगों के घर तक बिजली का तार तो पहुंचा नहीं पा रहे मगर हमारे घर के ऊपर से हाई वोल्टेज का तार जरूर ले जाएंगे।

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सबके पास दर्द की दास्तां

दिन चढ़ रहा है मगर वातावरण में अब तक कोई खास चुनावी गर्मी नहीं दिखी। इस इलाके में चार मार्च को वोट पडऩे हैं। तब तक यहां लोग ऐसी ही चर्चा करते रहेंगे। सबके पास सुनाने के लिए दर्द की कोई न कोई दास्तां जरूर है, जिसके निदान के लिए यहां के लोग चुनाव में कमर भी कसते हैं। लेकिन, समाधान अब तक नहीं है। निदान कब होगा, इसका जवाब इनके पास नहीं।

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