Calendar Boy के नाम से जाना जाता यह बच्चा, PM मोदी भी प्रतिभा के कायल
बिहार के जहानाबाद का 10 साल का एक बच्चा किसी भी तारीख का दिन कुछ पलों में ही बता देता है। पीएम मोदी भी उसकी प्रतिभा के कायल हैं।
पटना [जेएनएन]। महज 10 साल की उम्र में प्रत्यूष ने अपनी मेधा का लोहा बड़ों-बड़ों से मनवाया है। दो से तीन सेकेंड में वह किसी भी सदी के किसी वर्ष का कोई भी दिन बता सकता है। तारीख बताइए, जवाब हाजिर है। लोग उसे 'कैलेंडर ब्वॉय' के नाम से जानते हैं। बिहार के बेगूसराय का यह नेत्रहीन बच्चा आगे चलकर आइएएस बनना चाहता है।
जी हां, प्रत्यूष नेत्रहीन है। लेकिन, नेत्रहीनता उसके आत्मविश्वास में कभी आड़े नहीं आयी। उसकी प्रतिभा व आत्मविश्वास के कायल तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी रहे हैं। जहानाबाद जिले के टेहटा गांव के निवासी फेरी का सामान बेचने वाले पिता नन्दकिशोर गिरी ने बताया कि प्रत्यूष को पीएम मोदी से सराहना मिल चुकी है। पीएम ने उसे 50 हजार रुपये की आर्थिक मदद भी दी है।
चार भाई-बहनों में सबसे छोटे प्रत्यूष की आंखों की रोशनी चार साल की उम्र में ही चली गई थी। गरीब माता-पिता के लिए यह तोड़ देने वाला हादसा था। लेकिन, उन्होंने हार नहीं मानी। किसी तरह बच्चे का दाखिला दिल्ली के लाल बहादुर शास्त्री मार्ग स्थित के जेपीएम सीनियर सेकेंडरी स्कूल में कराया। वहां उसकी पढ़ाई की समुचित व्यवस्था है।
पिता के अनुसार उन्हें बेटे की प्रतिभा का इल्म नहीं था। एक दिन जब वे बेटे को स्कूल छोडऩे दिल्ली स्थित स्कूल गए तो उसने पूछा कि वे वापस लेने कब आएंगे। वापसी की तारीख बताने पर प्रत्यूष ने तारीख वाला दिन बता दिया। इससे पिता आश्चर्यचकित रह गए। फिर तो पिता ने कई और तारीखों के दिन पूछे और बेटे ने हर बार सही जवाब दिया।
आज प्रत्यूष महज 10 साल की उम्र में ही भूत से लेकर भविष्य तक की किसी भी तारीख का दिन तुरंत बता देता है। ऐसा वह कैसे करता है, यह पूछने पर कहता है कि उसने इसके कैलकुलेशन की इसकी प्रैक्टिस की है। इसमें उसे मजा आता है।
प्रत्यूष इस दिनों घर आया था। एक अप्रैल से छठी क्लास में जा रहा है। वह बड़ा हो कर आइएएस अधिकारी बनना चाहता है। कारण पूछने पर तपाक से कहता है, 'आइएएस बनूूंगा तभी तो अपने जैसे लोगों का दर्द और परेशानी समझ पाऊंगा और उनकी मदद कर पाऊंगा।' प्रत्यूष के उत्तर में व्यवस्था के नकारापन का दर्द साफ झलकता है। पिता भी कहते हैं कि उन्होंने बिहार सरकार से मदद की कई बार कोशिश की, लेकिन निराशा हाथ लगी।
आगे पिता नंदकिशोर चाहते हैं कि उनके नेत्रहीन बेटे की अनोखी काबिलियत पर रिसर्च हो। इसके लिए वे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, बनारस हिंदू विश्वविद्यालयतथा मगध विश्वविद्यालय के कुलपतियों से मिल चुके हैं।