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नए मोबाइल नंबर के लिए अब करना पड़ सकता है लंबा इंतजार

अब मोबाइल खरीदकर तुरंत बातें करना आसान नहीं होगा। सिम खरीदने के बाद लंबी प्रतीक्षा करनी पड़ सकती है। आपका मोबाईल तब तक एक्टिवेट नहीं होगा जब तक आपकी पूरी तरह से पहचान नहीं कर ली जाएगी।

By pradeep Kumar TiwariEdited By: Published: Sat, 23 May 2015 10:18 AM (IST)Updated: Sat, 23 May 2015 10:31 AM (IST)
नए मोबाइल नंबर के लिए अब करना पड़ सकता है लंबा इंतजार

पटना [निर्भय सिंह]। अब मोबाइल खरीदकर तुरंत बातें करना आसान नहीं होगा। सिम खरीदने के बाद लंबी प्रतीक्षा करनी पड़ सकती है। आपका मोबाईल तब तक एक्टिवेट नहीं होगा जब तक आपकी पूरी तरह से पहचान नहीं कर ली जाएगी।

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आपके बताए नाम-पता की सही-सही जांच होगी इसके उपरांत ही सर्विस प्रोवाइडर आपका सिम एक्टिवेट करेगा। इसके लिए आपको लंबी प्रतीक्षा करनी पड़ सकती है। पटना हाईकोर्ट ने शुक्रवार को राष्ट्र की सुरक्षा एवं अपराध की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए मोबाइल के सर्विस प्रोवाइडर पर शिकंजा कस दिया। न्यायाधीश वीएन सिन्हा एवं न्यायाधीश अहसुनुद्दीन अमानुल्लाह की खंडपीठ ने आपराधिक रिट याचिका नर 48 पेज का फैसला सुनाया।

खंडपीठ ने दूरसंचार निगम को निर्देश जारी कर कहा कि मोबाइल तब तक चालू नहीं किया जाए जब तब ग्राहकों की सही -सही पहचान नहीं कर ली जाए। अदालत ने दूरसंचार निगम को जल्दी गाइडलाइन में परिवर्तन लाने को कहा है, लेकिन किसी भी कीमत पर तीन महीने से ज्यादा समय नहीं लगना चाहिए।

अदालत ने कहा कि सिम खरीदने के बाद सर्विस प्रोवाइडर को यह देखना होगा कि जिसे आइकार्ड दिया गया है, वह सही है कि नहीं?

इसके लिए परिचय पत्र की मूल प्रति तो दिखानी ही पड़ेगी, बल्कि जहां से परिचय पत्र जारी किया गया है उस कार्यालय को पुष्टि करना पड़ेगा कि उनके कार्यालय से कार्ड जारी किया गया है। यदि ड्राइविंग लाइसेंस दिया गया तो संबंधित परिवहन ऑफिस से जानकारी लेनी होगी कि लाइसेंस वहीं से लिया गया है। इसी प्रकार से आधार कार्ड, पासपोर्ट, पेन कार्ड आदि की सत्यता की जांच होगी तभी सिम कार्ड एक्टिवेट हो सकेगा।

इस फैसले के पीछे की कहानी यह है कि बलिन्द्र सिंह ने अपने पुत्र विवेक कुमार को अपहरणकर्ता से मुक्त करने के लिए के लिए पटना हाइकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ता औरंगाबाद जिले के मदनपुर पुलिस स्टेशन के अनजान गांव का रहने वाला है। उनका पुत्र बेंगलुरु में केन्द्रीय पुलिस सुरक्षा बल में कार्यरत था। विवेक 14 मार्च 2011 को अपना गांव आ रहा था।

15 मार्च को उससे उसके परिवार वालों से फोन पर बात हुई। उसने बताया कि वह हावड़ा में है और बुद्ध पूर्णिमा एक्सप्रेस से आ रहा है, लेकिन वह निर्धारित तिथि को घर वापस नहीं आया। दो तीन दिन बाद किसी ने फोन किया कि विवेक उसके कब्ज में हैं। इस घटना को लेकर प्राथमिकी दर्ज कराई । फोन करने वाले का पता लगाया गया था। वह किसी अर्जुन कुमार सिंह नाम के व्यक्ति द्वारा लिया गया था।

फोन करने वाले का पता लगाया गया तो पता सही नहीं पाया गया। तब अदालत ने मामले को गंभीरता से लिया। इस मामले पर लंबी सुनवाई करने के बाद खंडपीठ ने जनवरी महीने में ही अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था। खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा कि भारत सरकार का काम केवल किसी के व्यवसाय को ही नहीं चलाना है, बल्कि यह भी देखना है कि लोगों को सुरक्षा भी मिलती रहे। सर्विस प्रोवाइडर को भी देखना होगा कि आम लोगोंं की सुरक्षा पहली प्राथमिकता हो। इसके साथ ही अदालत ने याचिकाकर्ता के उस मांग को ठुकरा दिया जिसमें पूरे प्रकरण की सीबीआइ जांच की मांग की गई थी।


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