स्वाभिमान रैली का आंखो देखा हाल : उड़त चिरई के हरदी लगावे ला बिहार...
ई बिहार ह। उड़त चिरई के हरदी लगावे ला बिहार संकेत साफ है। लड़ाई आर-पार की होगी। मुहावरे की आड़ में सीधा हमला। रविवार को गांधी मैदान में आयोजित 'स्वाभिमान रैली' में 'चिडिय़ा की आंख' बने थे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और हमलावार कई।
पटना [सुनील राज]। ई बिहार ह। उड़त चिरई के हरदी लगावे ला बिहार (बिहार उड़ती चिडिय़ा को भी हल्दी लगाता है)। संकेत साफ है। लड़ाई आर-पार की होगी। मुहावरे की आड़ में सीधा हमला।
'लागल झुलनिया से धक्का, बलम पहुंचलन कलकत्ता।' रविवार को गांधी मैदान में आयोजित 'स्वाभिमान रैली' में 'चिडिय़ा की आंख' बने थे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और हमलावार कई। हर वक्ता के पास सवालों की फेहरिस्त थी लंबी-चौड़ी। काले धन से लेकर रोजगार तक और विशेष पैकेज से लेकर डीएनए तक। थोड़ी बात झूठे वादों की तो अवसरवादी गठबंधन की भी।
मंच पर बैठे तमाम हमलावर तर्कों के अस्त्र-शस्त्र से लैस होकर आए थे। उन्हें पता है कि बहती हवा का रुख बदलना है। सिंहासन बदलने की इस लड़ाई में प्रतिद्वंद्वी कमजोर नहीं। इसलिए तमाम नेताओं ने पूरी ताकत से हमला बोला। नीतीश कुमार सवाल उठा रहे थे, नौकरी मिली? रोजगार नहीं मिला तो बिहार से बोरिया-बिस्तर उठाओ। लालू प्रसाद की तो बात ही निराली। बताया कि यादवों में कितना दम है। बोले, यादव को भैंस नहीं पटक सकी तो ई मोदी क्या पटकेंगे! सोनिया गांधी भी जमकर बोलीं। छप्पन इंच का सीना दिखाकर कितने झूठे वादे किए। अब सत्ता का एक तिहाई साल बीत चुका है तो क्या जनता इन वादों पर भरोसा करेगी?
मंच गरज रहा था। गांधी मैदान में उमड़ी भीड़ मंच पर बैठे नेताओं के लिए सुकून थी। उनकी हर बात पर नीचे से आती जयकार गुदगुदा रही थी। जनता का प्यार छलका तो बात प्याज की निकल गई। तब लालू प्रसाद को अपना पुराना समय याद आ गया और वे कुछ-कुछ नरेंद्र मोदी के अंदाज में बोले : प्याज की कीमत 40 कर दूं? 50 कर दूं? चलो 80 रुपये कर दी।
बिहार में चुनावी माहौल का आगाज होते ही जिस प्रकार से आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हुआ, 'स्वाभिमान रैली' में उसी कड़ी में जनता के मुद्दों का सामने रखकर बिहार पर लगाए गए आरोपों का जवाब दिया जा रहा था। कुछ नए आरोप लगाए जा रहे थे। जनता उन्हें भी सुनती रही है और आज भी सुन रही थी। सहमति सारी बातों पर नहीं थी। उनकी बात मंच से जिसने भी की, आवाम ने उसका वैसा ही प्रति उत्तर दिया। कभी दोनों हाथ उठाए, तो कभी हुंकार भी भरी। रैली में स्वाभिमान की बातें भी हुईं। जंगलराज और मंगलराज के बीच का अंतर भी पब्लिक ने जाना।
नेताओं ने जनता के जख्मों को कुरेदा भी। सोनिया ने कहा कि कुछ लोगों को बिहार को नीचा दिखाने में मजा आता है। कभी कल्चर खराब बताया जाता है, कभी बीमारू बताते हैं तो अब डीएनए खराब बता रहे हैं। बिहार की बातों के दौरान ही सीमा पर मारे जा रहे जवानों की चिंता भी दिखाई पड़ी। इस बहाने प्रधानमंत्री से सीधा सवाल उठा दिया गया कि जवान शहीद हो रहे हैं, पाकिस्तान के प्रति उनकी नीति क्या है? नीतीश कुमार ने आंकड़ों का हवाला देकर बता दिया कि बिहार से काफी अधिक अपराध दिल्ली, जहां की पुलिस केंद्र सरकार के अधीन है, में हो रहा है। गुजरात में अपराध का आंकड़ा बताकर यह भी जता दिया कि बिहार में जंगलराज नहीं। जंगलराज को विरोधियों ने अपनी सोच में शुमार कर लिया है।
राजनीति के इस मंच से जब आरोप-प्रत्यारोप के मुहावरे गढ़े जा रहे थे तो मंच के नीचे कुछ आकलन भी जारी था। कितनी भीड़ होगी? लगता है कि कैमरे में एक ही तरफ की भीड़ दिखा रहा है! इस दौरान थोड़ी बहस भी। लगता है कि विरोधी खेमे से हैं? बहरहाल 'स्वाभिमान रैली' के बहाने आए कुछ मिथक टूट रहे तो कुछ नए बन रहे थे। जनता यह सब नहीं देखती, वह सिर्फ सुनती है। आज भी सुन रही है। जब भीड़ का मनचाहा नेता सामने आया तो उसने सुरक्षा के बंधन तोडऩे में भी कोई गुरेज नहीं की।
कुछ 'लागल-लागल झुलनिया में धक्का' के अंदाज में भीड़ ने धक्का मारा तो अंदाजा हो गया कि सिंहासन का संघर्ष आसान नहीं होगा। लोगों ने हाथ उठाए हैं, नेताओं ने मंच से पूछ भी लिया है : जो संकल्प लिया है उसे याद रखना। प्रलोभन तरह-तरह के दिए जाएंगे। पैसे भी देंगे। चाप लेना कॉरपोरेट के हैं। तुम्हारे ही हक के। पैसे तो चापना, मगर वोट ध्यान से देना। ऐसा नहीं कि फूल खिलाने के चक्कर मे पैरों में कीचड़ लग जाए। बातें हो चुकी थीं। फिर विदाई भी हो गई। समझा दिया गया कि शांति से आए हैं, शांति से जाइएगा; मगर फैसला सोच-समझकर करिएगा।