राष्ट्रपति चुनाव: नीतीश का साहसिक फैसला
मुख्यमंत्री सह जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार ने एनडीए के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद को समर्थन देने का साहसिक फैसला किया है।
पटना [संपादकीय]। नीतीश की कार्यशैली का उज्ज्वल पक्ष कोविंद का समर्थन करने में भी प्रदर्शित हुआ। कोविंद के नाम पर जैसी राष्ट्रव्यापी सहमति दिख रही, उसका समर्थन करके नीतीश कुमार ने बिहार की सदेच्छा को उससे जोड़ दिया।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार यूं तो नोटबंदी सहित कई फैसलों पर केंद्र सरकार का खुला समर्थन कर चुके हैं लेकिन राष्ट्रपति चुनाव में राजग उम्मीदवार रामनाथ कोविंद का समर्थन करने में उन्होंने असाधारण साहस, राजनीतिक इच्छाशक्ति और व्यापक राष्ट्रहित में लीक तोड़ने की प्रवृत्ति का परिचय दिया। यह फैसला कतई आसान नहीं था।
प्रत्यक्ष तौर पर कोविंद के पक्ष में सिर्फ इतनी बात थी कि वह पिछले 22 महीने से बिहार के राज्यपाल थे। अपने कार्यकाल में कई नाजुक मौकों पर भी उन्होंने राज्य सरकार के साथ टकराव के बजाय गरिमापूर्ण समाधान का रास्ता निकाला। इन्हीं तर्को के आधार पर जदयू ने कोविंद का समर्थन करने का फैसला लिया। उनका विरोध करने के कई बहाने थे। वह आरएसएस और भाजपा पृष्ठभूमि रखते हैं।
यह समय विपक्षी एकुजटता दर्शाने का था। विपक्ष भी संभवत: दलित जाति का ही प्रत्याशी देगा, इसलिए इसे भी कोविंद की विशिष्टता नहीं माना जा सकता। ये तर्क गढ़कर विपक्षी उम्मीदवार का साथ देने के लिए नीतीश कुमार पर जबर्दस्त दबाव भी था। उनके लिए आसान था कि विपक्षी एकजुटता का झंडा उठाकर कोविंद के खिलाफ खड़े हो जाते। बहरहाल, उन्होंने अपेक्षाकृत कठिन रास्ता चुना।
दरअसल, अपने मौजूदा मुख्यमंत्रित्वकाल में नीतीश कुमार ने नकारात्मक विपक्षी राजनीति से खुद को दूर रखा। वह अधिसंख्य मुद्दों पर राजग और केंद्र सरकार की नीतियों का विरोध करते रहे लेकिन जब कोई बड़ा राष्ट्रीय सवाल आया तो वह देश का एकजुट चेहरा दिखाने के लिए केंद्र सरकार के साथ खड़े दिखे। इससे उनका भी कद अैार सम्मान बढ़ा।
राजनीतिक निहितार्थ अपनी जगह हैं। इसके बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को यह श्रेय दिया जाएगा कि उन्होंने राष्ट्रपति पद के लिए दलित जाति के व्यक्ति का चयन किया। मोदी के इस फैसले में शामिल होकर नीतीश कुमार ने अपनी बड़ी सोच का परिचय दिया।
यह भी पढ़ें: राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष से अलग JDU की राह, पर बिहार में चलता रहेगा महागठबंधन
लगभग तय है कि विपक्ष भी दलित जाति का ही उम्मीदवार देगा लेकिन अब इसे सियासी एवं प्रतिक्रियात्मक पैतरा माना जाएगा। कोविंद के नाम पर विरोध के चंद राजनीतिक स्वरों को अनसुना कर दें तो पूरे देश ने जैसी सहमति दिखाई, वह अद्भुत है। इस सहमति का साथ देकर नीतीश कुमार ने बिहार की इच्छा का भी सम्मान किया।
यह भी पढ़ें: जानिए क्या थी वजह कि नीतीश को इतना भा गये NDA के 'राम'