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आइए, नई नजर से देखते हैं शहर

छुट्टियों का समय है। चलिए एक शहर घूमते हैं। पुराना शहर। जो कैलेंडर हम देखते हैं, उससे भी पुराना। जो हजारो साल पहले भी राजधानी थी, आज भी है। जहां की इमारतें दस-बीस नहीं, बल्कि सैकड़ों साल पुरानी हैं।

By pradeep Kumar TiwariEdited By: Published: Mon, 29 Dec 2014 10:10 AM (IST)Updated: Mon, 29 Dec 2014 10:17 AM (IST)
आइए, नई नजर से देखते हैं शहर

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पटना (कुमार रजत)। छुट्टियों का समय है। चलिए एक शहर घूमते हैं। पुराना शहर। जो कैलेंडर हम देखते हैं, उससे भी पुराना। जो हजारो साल पहले भी राजधानी थी, आज भी है। जहां की इमारतें दस-बीस नहीं, बल्कि सैकड़ों साल पुरानी हैं। ऐसा शहर जिसे विश्वविजेता सिकंदर भी नहीं जीत पाया। इस शहर में एक कुआं है, जिसकी गहराई अभी तक नहीं मापी जा सकी है। इतने पुराने पेड़ की लकड़ी है, जो अब पत्थर बन गई है। लाइब्रेरी इतनी पुरानी है, जिसमें सोने के अक्षरों से लिखा रामायण है। इस शहर में कई महल हैं। कोई नौलक्खा है, तो कोई किले की तरह। जानते हैं, ये शहर कौन सा है। ये शहर अपना पटना है। जानकर थोड़ा आश्चर्य हो सकता है। आश्चर्य करने के लिए अभी बहुत कुछ है। मगर इसके लिए अपने शहर को जानना होगा। समझना होगा। घूमना होगा। एक प्यास जगानी होगी। जो शायद मर गई है। हमने कभी इसकी $जहमत उठाई ही नहीं। दरअसल, पटना सिर्फ एक शहर नहीं है, इतिहास है। इसे घूमने की नहीं, महसूस करने की जरूरत है। जो हमने अबतक नहीं किया।

हम गंगा तट पर जाते तो हैं, मगर किनारों पर बनीं पुरानी भव्य इमारतों को नहीं देख पाते। हमें नौ लख्खा महल जिसे अब दरभंगा हाउस कहते हैं, नहीं दिखता। अगर दिखता भी है, तो पटना विश्वविद्यालय के एक इमारत के रूप में। जब वीरचंद पटेल मार्ग से गुजरते हैं, तो हमें परिवहन भवन तो दिखता है, मगर ऐतिहासिक इमारत सुल्तान पैलेस नहीं दिखता। जब हम पुरानी बाइपास से गुजरते हैं, तो कुम्हरार पार्क तो दिखता है, मगर उसके अंदर का इतिहास नहीं दिखता। अगमकुआं का शीतला माता का मंदिर तो आकर्षित करता है, मगर वह ऐतिहासिक कुआं नहीं जिसकी गहराई अब तक रहस्य है।

पूरी दुनिया जिस पाटलिपुत्र को किताबों में पढ़कर इतिहास को समझती हैं, हम उसकी गोद में है। मगर हमने कभी इसे समझा ही नहीं। कभी इसका भान नहीं किया। हम छुट्टियों में दिल्ली से जयपुर तक घूम आते हैं, मगर कभी पटना को घूमने की जहमत नहीं उठाई। शायद यह हमारे लिए 'लो-प्रोफाइलÓ भी हो जाता है। यही सोच बदलनी है। अपने विरासत से हम प्यार नहीं करेंगे तो कौन करेगा। अपने विरासत की हम बात नहीं करेंगे तो कौन करेगा। अपने शहर को हम महसूस नहीं करेंगे, तो कौन करेगा।

फेसबुक पर डालें पटना की तस्वीर

हम और आप दूसरे शहर घूमने जाते हैं, तो उसकी तस्वीर फेसबुक पर जरूर शेयर करते हैं। मगर भूले-भटके कभी शहर के किसी पर्यटन स्थल पर चले भी गए तो तस्वीरें नहीं लेते। अगर लेते भी हैं, तो उसे फेसबुक पर नहीं डालते। ये तस्वीरें ही हमारे विरासत के प्रति हमारा नजरिया बताती हैं। हम इन्हें खुद कम करके आंकते हैं। ऐसे में अगली बार जब भी आप गोलघर, पटना संग्रहालय, अगमकुआं, कुम्हरार या कहीं भी घूमने जाएं तो उसकी तस्वीर जरूर सोशल साइट्स पर डालें। उसके बारे में कुछ जानकारी भी दें ताकि आपके दोस्त-रिश्तेदार भी जान सकें कि आप भी एक ऐतिहासिक शहर के नागरिक हैं। हमारी भी विरासत है।


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