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शिवानंद तिवारी बोले- सत्ता में बने रहें, इसलिए कायम रहेगा महागठबंधन

राजद नेता शिवानंद तिवारी ने कहा कि महागठंधन की सरकार पर कोई खतरा नहीं है। सरकार चलती रहेगी। यदि महगठबंधन टूटता है तो सीएम नीतीश की छवी धूमिल होगी।

By Ravi RanjanEdited By: Published: Tue, 27 Jun 2017 02:18 PM (IST)Updated: Tue, 27 Jun 2017 09:30 PM (IST)
शिवानंद तिवारी बोले- सत्ता में बने रहें, इसलिए कायम रहेगा महागठबंधन
शिवानंद तिवारी बोले- सत्ता में बने रहें, इसलिए कायम रहेगा महागठबंधन

पटना [जेएनएन]। राजद नेता शिवानंद तिवारी ने कहा कि बिहार में महागठबंधन वाली नीतीश सरकार पर कोई ख़तरा नहीं है। यह गठबंधन अगले लोकसभा और विधान सभा चुनाव तक जारी रहेगा। सत्ता में ज़बरदस्त चुंबकीय शक्ति होती है। यही चुंबकीय शक्ति इस गठबंधन को क़ायम रखेगी। लेकिन यदि किसी कारणवश महागठबंधन टूटता है तो सीएम नीतीश की छवि धूमिल हो जायेगी।

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उन्होंने आगे कहा कि नीतीश इतने मूर्ख नहीं हैं कि इस गठबंधन से अलग होकर पुनः भाजपा के साथ रिश्ता जोड़ें। अगर ऐसा हुआ तो बिहार भाजपा के नेता वहां इनका इलाज कर देंगे। आज ही अश्वनी चौबे ने सुशील मोदी के सामने नीतीश को बड़े मोदी की पीठ में छुरा घोंपने वाला बताया।

भाजपा के अधिकांश बिहारी नेता नीतीश के बारे में यही राय रखते हैं। नीतीश इससे अनजान नहीं हैं।वे समझते हैं कि भाजपा में पुनः लौटने का मतलब है अपनी दुर्दशा कराना। नीतीश की पार्टी के नेता कहते हैं कि उनके लोगों को आरजेडी वालों ने चुनौती दी है। कैसे लोग? गठबंधन में मनमाना करने की छूट किसी को नहीं मिलती है।

गठबंधन ने आपको नेता बनाया है। आपका दायित्व बनता है कि आप सबको भरोसा में लेकर चलें। नीतीश की पार्टी वाले कहते हैं की हमारी वजह से यह सरकार बनी है। इसको क्या कहिएगा ! 2014 के लोकसभा चुनाव का नतीजा सबकी हैसियत बता रहा है। लोकसभा सभा चुनाव के बाद राज्य सभा का चुनाव हो रहा था।नीतीश के विधायकों ने ही उनकी पार्टी को गंभीर चुनौती दे दिया था।

उन विधायकों की संख्या इतनी थी कि नीतीश का कम से कम दो नहीं तो एक उम्मीदवार पक्का हार रहा था।लोकसभा चुनाव में तीसरे स्थान पर रहने वाले नीतीश कुमार का उम्मीदवार राज्य सभा चुनाव में अगर हार जाता तो उनके लिए अपनी पार्टी को बचाना मुश्किल हो जाता। उस समय लालू ही उनके खेवनहार बने थे।

यह स्पष्ट हो गया था कि विधान सभा चुनाव में बग़ैर गठबंधन बनाए बिहार को भाजपा से बचाना नामुमकिन है। इस दबाव में महागठबँधन बना था। मौजूदा संकट राष्ट्रपति चुनाव की वजह से पैदा हुआ है।नीतीश ने स्वयं सार्वजनिक रूप से बताया है कि सोनिया जी ने उनको फ़ोन किया और मुलाक़ात की ईक्षा ज़ाहिर की थी।राष्ट्रपति चुनाव को लेकर उनसे मसविरा करना चाहती थीं।

ध्यान रहे सोनिया जी ने लालू को नहीं नीतीश को फ़ोन किया। अगले दिन नीतीश दिल्ली होकर कोच्चि जा रहे थे। दिल्ली में सोनिया जी से मिलकर उनको विपक्षी पार्टियों के नेताओं की बैठक बुलाने के लिए पहल करने की सलाह दी। उन्होंने यह भी कहा की आम राय से राष्ट्रपति बनाने की जवाबदेही शासक दल की होती है। उनकी पहल का हम इंतज़ार कर सकते हैं। आम राय नहीं बनने की हालत में हमें अपना उम्मीदवार खड़ा करना चाहिए।

यह सब नीतीश स्वयं सार्वजनिक रूप से बता चुके हैं। जैसा अनुमान था एन डी ए को इस चुनाव में अपने बल पर भरोसा था।उन्होंने अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया।पीछे-पीछे उसी दिन नीतीश कुमार ने रामनाथ कोविंद जी को अपने समर्थन की लगभग घोषणा कर दी। विपक्षी एकता के प्रयास को नीतीश के इस क़दम से भारी झटका लग है।

अभी तीन-चार महीना पहले दिल्ली में चिदंबरम की किताब का लोकार्पण हुआ था। उस आयोजन में वाम दल के नेता भी मौजूद थे।उस कार्यक्रम में लोकसभा के अगले चुनाव में मोदी सरकार के विरुद्ध व्यापक गठबंधन बनाने की ज़ोरदार वकालत नीतीश ने की थी और आज उन्हीं को मोदी जी के उम्मीदवार का समर्थन करने में उन्हें कोई संकोच नहीं हो रहा है।

एन डी ए में रहते हुए इनको नरेंद्र मोदी से इतना परहेज़ था कि भोज का न्योता देकर वापस ले लिया था। आज उन्हीं मोदी का राष्ट्रपति उम्मीदवार इनको रुचने लगा है।

हालाँकि अभी भी मुझे लगता है कि नीतीश गठबंधन से अलग नहीं होंगे। अगर ऐसा हुआ तो नीतीश भले ही मुख्यमंत्री बने रह जायें। लेकिन लोगों की चित्त से उतर जाएंगे। एक छोटी पार्टी के नेता होने के बावजूद उनकी जो राष्ट्रीय छवि बनी हुई है वह धूल में मिल जाएगी। 


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