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जीएसटी बिल की तरह किन्नरों की मांगें पास करें पीएम

'किन्नर अखाड़ा उज्जैन' की संस्थापक लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने मांग की है कि जिस तरह पीएम ने जीएसटी बिल पास किया है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 24 Jun 2017 01:26 AM (IST)Updated: Sat, 24 Jun 2017 01:26 AM (IST)
जीएसटी बिल की तरह किन्नरों की मांगें पास करें पीएम
जीएसटी बिल की तरह किन्नरों की मांगें पास करें पीएम

पटना। 'किन्नर अखाड़ा उज्जैन' की संस्थापक लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने मांग की है कि जिस तरह पीएम ने जीएसटी बिल पास किया है, उसी तरह किन्नर समुदाय की मांगें भी पास करें। राजधानी के रविन्द्र भवन में कला संस्कृति एवं युवा विभाग की ओर से आयोजित 'द्वितीय किन्नर महोत्सव' में ये बातें उन्होंने अपने संबोधन में कहीं। कार्यक्रम का उद्घाटन कला संस्कृति मंत्री शिवचंद्र राम, कला संस्कृति विभाग के निदेशक सत्यप्रकाश मिश्र, कला संस्कृति के प्रधान सचिव चैतन्य प्रसाद, 'किन्नर अखाड़ा उज्जैन' के संस्थापक लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी, प्रभारी जिलाधिकारी अजय कुमार, ममता मेहरोत्रा, आइपीएस आशुतोष वर्मा आदि ने किया। इस अवसरपर पश्चिम बंगाल के रूद्र पलास, केरल के ओएसिरा नृत्य, दिल्ली के राधा-कृष्ण नृत्य, मणिपुर के सानामाचा और बिहार के लोकगीत 'बधाई' आदि की प्रस्तुति हुई। श्रुति मेहरोत्रा लिखित एवं आशुतोष मेहरोत्रा निर्देशित शॉर्ट फिल्म 'वीरा : एक अनकही कहानी' की सीडी का विमोचन भी इस अवसर पर हुआ।

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बिहार में दूसरी बार किन्नर महोत्सव : लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने कहा कि बिहार ऐसा राज्य है जहां दूसरी बार किन्नर महोत्सव आयोजित हुआ है। यह बिहार की कला-संस्कृति के लिए गौरव की बात है। त्रिपाठी ने किन्नरों के अधिकार पर प्रकाश डालते हुए कहा कि 'मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि किन्नरों के अधिकार के लिए कोर्ट के दरवाजे खटखटाने पड़ेंगे। हमारी जीत हुई और कोर्ट ने हमारे पक्ष में फैसला दिया। हमारी संस्कृति रामायण काल से चली आ रही है। मुगलकाल के बाद से हमारा पतन हो गया। कल तक घरों में बच्चे के जन्म पर बधाई देने के लिए बुलाया जाता रहा है लेकिन आज की स्थिति काफी भयावह है। हम भी औरों की तरह इंसान हैं। हमें भी जीने की आजादी है, लेकिन समाज और सरकार हमें उपेक्षित करती आ रही है। औरों की तरह हमें भी अपने अधिकार चाहिए। इसके लिए हम सभी को काफी संघर्ष करना पड़ा रहा है। किन्नर अखाड़ा स्थापित करने में मुझे काफी संघर्ष करना पड़ा। धर्म का पतन न हो इस कारण मुझे अखाड़ा स्थापित करना पड़ा।'

त्रिपाठी ने बिहार सरकार से कहा कि यहां पर रहने वाले किन्नर समुदाय के उत्थान, नौकरी, आवास, शिक्षा और स्वास्थ्य आदि सुविधाएं मुहैया कराएं जिससे इनके जीवन में फिर से उजाला हो सके।

संस्कृति को जिंदा रखने में किन्नरों का सहयोग : कला मंत्री शिवचंद्र राम ने कहा कि लोक संस्कृति को जिंदा रखने में किन्नर समुदायों का हमेशा रोल रहा है। बिहार सरकार हमेशा से प्रयासरत रही है कि किन्नरों को वाजिब हक मिले। इसके लिए सरकार प्रयास कर रही है।

सत्यप्रकाश मिश्र ने कहा कि किन्नर महोत्सव का दूसरा आयोजन राज्य में हो रहा है। शायद ही ऐसा कोई राज्य होगा जिसने ऐसा कार्यक्रम आयोजित करवाया हो।

: विभिन्न राज्यों की एक से बढ़कर लोकनृत्यों की प्रस्तुति :

नीली रोशनी से सराबोर परिसर और विभिन्न राज्यों की एक से बढ़कर एक लोकनृत्यों की प्रस्तुति देखने लायक थीं। सभागार में मौजूद आम से लेकर खास कलाकारों की प्रस्तुतियों की एक झलक देखने को बेताब थे। कभी 'राधा-कृष्ण की रास लीला' तो कभी 'शिव-पार्वती का अनूठा प्रेम' मंच पर जीवंत हो रहा था। बेहतर रूप-सज्जा और कलाकारों की अदुभुत प्रस्तुतियां कार्यक्रम में चार-चांद लगा रही थीं। कुछ ऐसा ही नजारा रवीन्द्र भवन के प्रेक्षागृह में शुक्रवार को देखने को मिला।

'वीरा' एक अनकही कहानी में दिखा किन्नरों का संघर्ष : किन्नर महोत्सव के मौके पर शॉर्ट फिल्म 'वीरा' एक अनकही कहानी की प्रस्तुति हुई। 17 मिनट की इस फिल्म में वीरा नामक एक किन्नर की कहानी दिखाई गई। यह उसके संघर्ष की कहानी है। श्रुति मेहरोत्रा द्वारा लिखित एवं आशुतोष मेहरोत्रा के निर्देशन में बनी फिल्म को देख दर्शक भावुक हो गए। कहानीकार श्रुति मेहरोत्रा ने कहा कि यह पटना की एक किन्नर की कहानी है जिसे पढ़ाई की फीस के लिए सड़क पर भीख मांगना पड़ता है और पैसे जमा होने के बाद असामाजिक तत्व उससे पैसे छीन लेता है। फिर भी वीरा की वीरता कमजोर नहीं होती और अच्छे कॉलेज में नामांकन कराती है।


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