खटारा बसों को 'कामधेनु' बना रहे निजी स्कूल
स्कूलों की वसूली 1200 से अधिक स्कूली बसें चलती हैं राजधानी में 500 से ज्यादा स्कूली बसें हैं 10-20 साल पुरानी 1000-1200 रुपये मासिक किराया है सामान्य बसों का 3000-5000 रुपये किराया है एसी स्कूल बसों का जागरण संवाददाता, पटना
पटना : स्कूलों की मनमानी सिर्फ पढ़ाई व ड्रेस तक ही नहीं है, बल्कि बसों के किराये में भी हैं। राजधानी के ज्यादातर निजी स्कूल जर्जर व खटारा बसों से बच्चों को ढो रहे हैं, वो भी मनमाने किराये पर। एक महीने के लिए 1200 से लेकर 5,000 रुपये तक वसूले जा रहे हैं। अभिभावक भी मजबूर हैं। स्कूल से दूरी और सुरक्षा के कारण वे स्कूलों की मनमानी सह रहे हैं।
बस संचालक एसडी शर्मा ने बताया कि राजधानी में 1200 स्कूली बसों का संचालन होता है, इनमें 500 से अधिक बसें 10-20 साल पुरानी हैं। स्कूल प्रशासन प्रत्येक बच्चे से हर माह 1000 से 1200 रुपये बस किराया लेता है। वहीं एसी बसों के लिए तीन से पांच हजार रुपये मासिक किराया लिया जाता है।
सुविधा नहीं, बढ़ जाता है किराया
सीबीएसई बोर्ड या परिवहन विभाग द्वारा किसी भी तरह के निर्देश जारी होने के बाद किराया तो बढ़ जाता है, लेकिन सुविधाएं जस की तस ही रहती है। अभिभावक संजय कुमार सिंह ने बताया कि दो साल पहले ऑटो के अगले सीट पर बच्चों के न बैठने का फरमान जारी किया गया। इसके बाद एकाएक 30-40 फीसद किराया बढ़ा दिया गया। एक-दो माह तक इसका असर दिखा। इसके बाद स्थिति जस की तस हो गई, लेकिन किराया नहीं घटा।
बच्चे स्कूल के, बस एजेंसी की
पहले बसें भी स्कूलों की होती थी लेकिन अब स्कूल प्रशासन ने नई तकनीक अपनाई है। एजेंसी से मासिक किराये पर स्कूल बसें हायर की जा रही हैं। इससे दो फायदे हैं, पहला गाड़ियों के मेंटेनेंस से लेकर फिटनेस तक का चक्कर नहीं। दूसरा ड्राइवर, खलासी और पेट्रोल की किचकिच से छुटकारा। एकमुश्त राशि पेमेंट कर बसें स्कूल के नाम पर चलवाई जा रही हैं। बच्चों से फीस स्कूल प्रशासन लेता है, और अपना मुनाफा रखकर एजेंसी को भुगतान कर देता है। अगर कभी अभिभावक कोई शिकायत भी करते हैं, तो स्कूल प्रशासन अपना पल्ला ये कहकर झाड़ देता है कि इसकी जिम्मेवारी एजेंसी की है।
पेमेंट कम इसलिए बसें खटारा
वाहन उपलब्ध कराने वाली एजेंसियों के संचालकों का कहना है कि बच्चों से जो भी पेमेंट लिया जाता हो, लेकिन बस मालिकों को कम राशि दी जाती है। इस कारण ज्यादातर पुरानी व खटारा बसों को ही स्कूलों में भेजा जाता है। एक कारण यह भी है कि दिनभर में स्कूल बसों को बमुश्किल 40-60 किलोमीटर का ही फेरा लगाना होता है। सामान्य तौर पर एजेंसी वाले बड़ी बसों के लिए स्कूलों से 30-40 हजार रुपये प्रतिमाह लेते हैं। इन बसों में 50 से 70 बच्चे ढोए जाते हैं। यदि एक छात्र से 1200 रुपये भी लिए जाते हैं तो स्कूल प्रबंधन 60 से 80 हजार रुपये वसूल करता है। इस तरह बिना जतन स्कूल वालों को हर बस पर 20-30 हजार रुपये की बचत होती है।
काम स्कूल का, टेंशन बस मालिकों का
स्कूलों में बस सप्लार्इ्र करने वाली एजेंसियों के अनुसार बस संचालन में किसी भी तरह की परेशानी आने पर स्कूल प्रबंधन पल्ला झाड़ लेता है। सारा टेंशन एजेंसी संचालकों का होता है। वहीं, स्कूल संचालकों का कहना है कि निजी वाहनों की सेवा लेने के पहले कागजात की जांच कराई जाती है। मानक नहीं पूरा करने वाली एजेंसियों पर कार्रवाई भी होती है।
स्कूल के नाम से रजिस्टर्ड वाहनों की स्थिति बेहतर
निजी स्कूल संचालकों का कहना है कि प्रबंधन के पास अपनी इतनी गाड़ियां नहीं होती हैं कि सभी बच्चों को सेवा उपलब्ध कराई जा सके। स्कूल के नाम से रजिस्टर्ड वाहनों की स्थिति बेहतर होती है, लेकिन इनकी संख्या कम है। ऐसे में बसों के लिए एजेंसियों का सहारा लेना पड़ता है। बेहतर सुविधा के लिए निर्धारित किराया देने में अधिसंख्य अभिभावक खुद को असमर्थ बताते हैं, इस कारण कुछ मानक पूरी नहीं करने वाली गाड़ियों की भी सेवा लेनी पड़ती है।
छोटे वाहन ज्यादा बदहाल
अभिभावकों का कहना है कि बसों का फेरा लंबा होने के कारण समय बचाने के लिए छोटे वाहन ही विकल्प हैं, लेकिन यह मानकों को तोड़ने में सबसे आगे हैं। परिवहन विभाग के अधिकारी भी इससे सहमति जताते हैं। ऑटो, वैन व अन्य छोटे वाहनों पर क्षमता से दोगुने तक विद्यार्थी बिठाए जाते हैं।
अप्रैल से शुरू होगी जांच
जिला परिवहन कार्यालय के अनुसार जर्जर स्कूली वाहनों के संचालन की शिकायत विभाग को मिली है। इसके खिलाफ अप्रैल के प्रथम सप्ताह से अभियान चलाया जाएगा। मानकों के अनुरूप वाहन नहीं होने पर जब्त कर संबंधित स्कूल प्रबंधन के खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी। स्कूलों से वाहनों की सूची भी उपलब्ध कराने को कहा गया है।
बयान :
स्कूली बच्चों को लाने और पहुंचाने वाले वाहनों के मानक तय किए गए हैं। इसका पालन सभी स्कूल प्रबंधन को करना है। अप्रैल से बड़े स्तर पर अभियान चलाया जाएगा।
अजय कुमार, जिला परिवहन पदाधिकारी
20 से 30 फीसद विद्यार्थी ही स्कूली वाहनों का उपयोग करते हैं। बच्चे व अभिभावकों पर किसी तरह का दवाब नहीं होता है। फिर भी अगर बस संचालक मनमानी करते हैं, तो अभिभावकों को इसकी शिकायत संबंधित स्कूल व सक्षम पदाधिकारी से करनी चाहिए।
डॉ. राजीव रंजन सिन्हा, अध्यक्ष, पाटलिपुत्र सहोदया
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स्कूली बसों में होनी चाहिए ये सुविधाएं
- स्कूल बसें जीपीएस या जीपीआरएस के सिस्टम से हो लैस
- वाहन में बच्चों के प्रवेश और निकास को रिकॉर्ड करने के लिए आरएफ आइडी रीडर जरूरी
- बच्चों को जरूरी निर्देश व जानकारी देने के लिए साउंड सिस्टम व माइक की व्यवस्था
- आपात समय में सहायता उपलब्ध कराने वाले केंद्र व अधिकारियों के महत्वपूर्ण नंबर
- चालक व सहचालक ड्रेस में रहेंगे और बैच पर उनका विवरण दर्ज होगा
- इमरजेंसी से निपटने के लिए फर्स्ट एड किट व आग बुझाने वाले यंत्र
- स्कूल के आगे व पीछे डिस्प्ले बोर्ड जिस पर संबंधित स्कूल का नाम दर्ज हो
- बच्चों को रूट की जानकारी देने के लिए एलईडी डिस्प्ले बोर्ड