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मल्टीप्लेक्स व बड़े सिनेमा हॉल तक पहुंचने को तैयार हैं भोजपुरी फिल्में

भोजपुरी फिल्मों का भी अपना स्वर्णिम इतिहास रहा है, अपनी पहचान खो चुकीं भोजपुरी फिल्में जिनपर बी ग्रेड का ठप्पा लग चुका था एक बार फिर से अपनी चमक बिखेरने को तैया हैं।

By Kajal KumariEdited By: Published: Mon, 27 Feb 2017 09:39 AM (IST)Updated: Tue, 28 Feb 2017 11:22 PM (IST)
मल्टीप्लेक्स व बड़े सिनेमा हॉल तक पहुंचने को तैयार हैं भोजपुरी फिल्में
मल्टीप्लेक्स व बड़े सिनेमा हॉल तक पहुंचने को तैयार हैं भोजपुरी फिल्में

पटना [काजल]। मनोरंजन की दुनिया की शुरुआत से ही  बॉलीवुड, हॉलीवुड और अन्य क्षेत्रीय सिनेमा की अपेक्षा भोजपुरी जैसे क्षेत्रीय सिनेमा को नजरअंदाज कर दिया जाता रहा है। मल्टीप्लेक्सेस या बड़े सिनेमाघर अक्सर भोजपुरी फिल्मों को रिलीज करने से बचते रहते थे, लेकिन वक्त बदला है, अब धीरे-धीरे भोजपुरी सिनेमा ने भी दर्शकों के बीच अब अपनी पहचान बनाने की कोशिश में कुछ हद तक सफलता पाई है।

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भोजपुरी की फिल्मों को हमेशा बी-ग्रेड फिल्मों का कारखाना कहकर खारिज कर दिया जाता है, या ऐसे सितारों की कमी रहना जो बॉलीवुड में लीड में आ सकें। इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह यह बताई जाती है कि इसके दर्शक पान- खैनी खाकर आते हैं और हॉल को गंदा कर देते हैं। लेकिन यह तार्किक कतई नहीं हो सकता। 

वहीं इस बात को अब नहीं भुलाया जा सकता कि ईस्टर्न यूपी, बिहार और यहां तक कि पंजाब के लुधियाना में एक बड़ा तबका भोजपुरी फिल्मों को देखता है, और अब दिल्ली में भोजपुरी फिल्मों को देखने वाले दर्शकों की संख्या में भी काफी इजाफा हो रहा है।

रिस्क नहीं लेना चाहते हैं बड़े सिनेमाघर

भोजपुरी फिल्मों में द्विअर्थी संवाद, भावपूर्ण कथानक और आठ से बारह गीत-नृत्य सिक्वेंस (कव्वाली, मुजरा, नौटंकी) और समकालीन हिन्दी मसाला फिल्मों के लटके-झटके फिल्मों का मुख्य हिस्सा रही हैं। कुछ फिल्में स्लैप्स्टिक कॉमेडी और द्विअर्थी संवादों की राह पर भी चलती रही हैं, एेसे खास दर्शक वर्ग के लिए बनीं इन फिल्मों को रिलीज करने के लिए मल्टीप्लेसेज और बड़े सिनेमाघर एेसे रिस्क नहीं लेते। 

हालांकि अब वक्त बदला है, भोजपुरी फिल्में भी बेहतरीन बन रही हैं और मेट्रो सिटीज में भी अपनी खासी धमक बना रही हैं। लोग अब भोजपुरी फिल्में भी देखना चाहते हैं। मोनालिसा और आम्रपाली दुबे, काजल राघवानी  और गुंजन पंत, एेसी कई अभिनेत्रियां हैं जो अब सभी तबके के दर्शकों के दिलों पर राज कर रही हैं।

वहीं एक्टर खेसारीलाल यादव,  रविकिशन पवन सिंह सहित कई ऐेसे चेहरे हैं, साथ ही कई एेसी फिल्में हैं जो मल्टीप्लेक्सेज और बड़े पर्दे पर  अच्छी देखी जा रही हैं, दर्शक इन्हें पसंद कर रहे हैं।

इसलिए नहीं लगतीं दिल्ली में भोजपुरी फिल्में

 दिल्ली में उच्च मध्यवर्गीय लोगों में भी भोजपुरी फिल्मों की डिमांड अब बढ़ रही है। इसका इशारा इस बात से भी मिल जाता है कि अक्सर मल्टीप्लेक्सेस में फोन करके भोजपुरी फिल्मों की रिलीज के बारे में पूछा जाता है लेकिन निराशा ही हाथ लगाती है। एक फिल्म डिस्ट्रिब्यूटर बताते हैं कि अक्सर भोजपुरी फिल्मों को लेकर इन्कवायरी आती है।
लेकिन मल्टीप्लेक्सेस या बड़े सिनेमाघर भोजपुरी फिल्मों को रिलीज करने से बचते हैं। इसकी बहुत ही हैरान कर देने वाली वजह भी बताई जाती है, “अक्सर ये माना जाता है कि भोजपुरी फिल्म देखने आने वाले दर्शक पान खाकर पीक हॉल में ही मार देते हैं, और हॉल गंदा कर देते हैं। जिस वजह से अच्छे और बड़े सिनेमाघर भोजपुरी फिल्मों को लगाने से कन्नी काट जाते हैं।”
बेशक यह तर्क बहुत अच्छा नहीं है क्योंकि यही ऑडियंस हिंदी फिल्में देखने भी तो सिनेमाघरों में जाता है।ऐसे में सिनेमाघर मालिकों को यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि भोजपुरी फिल्मों का एक बड़ा दर्शक वर्ग एनसीआर में तैयार हो चुका है सो उन्हें भोजपुरी की अच्छी फिल्मों अनदेखी करने के बारे में एक बार फिर सोच लेना चाहिए।
भोजपुरी फिल्मों का भी रहा है स्वर्णिम इतिहास
 १९६२ में भोजपुरी की पहली फिल्म जब 'गंगा मइया तोहे पियरी चढ़ैबो` रिलीज हुई तो उसने लोगों को चौंकाया था कि हिन्दी इलाके में यह कौन-सा नया सिनेमा है? उसके गीत अभी भी लोगों की स्मृति में हैं।

१९७७ में 'दंगल` से भोजपुरी में रंगीन फिल्मों का दौर शुरू हुआ और ८० के दशक में सेंसर बोर्ड में 'हिन्दी फिल्म` के खाते में दर्ज 'नदिया के पार` के बाद अब 'ससुरा बड़ा पैसे वाला` नाम की फिल्म भोजपुरी और उसके सिनेमा के लिए चमत्कारिक घटना है।

फिर से राष्ट्रीय फलक पर कौंधने के लिए तैयार हैं भोजपुरी फिल्में

कई बार राष्ट्रीय फलक पर कौंधने और फिर दृश्य से लगभग गायब होने की कगार पर जा चुके भोजपुरी सिनेमा की बालियां एक बार फिर खनकने लगी हैं। 'भइया लोगों का सिनेमा` कहकर मुंह बिदकाने वाले मुुंबई के फिल्म निर्माताओं के मुंह में पानी भर आया है। गीतों के बाद अब फिल्मों के जरिये भोजपुरी अनुगूंज सुनायी दे रही है। 

ऐसे दौर में जबकि बड़े बजट और मेगा प्रचारवाली फिल्में दूसरे शो में ही लुढ़क रही हैं, महज दो-तीन सप्ताह चलने वाली कोई हिन्दी फिल्म सुपर हिट मान ली जाती है, 'ससुरा बड़ा पैसा वाला` ने भोजपुरी के शास्त्रीय गढ़ से बाहर एक साथ कानपुर, लखीमपुर और लखनऊ में गोल्डेन जुबली मनाई।

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इसी क्रम में 'कब होई गौना हमार`, 'उठाइले घूंघटा चांद देख ले,` 'बलमा बड़ा नादान,` 'बंधन टूटे ना,` 'गंगा के पार सैंया हमार,` 'दारोगा बाबू आई लव यू,` 'पंडित जी बताई ना बियाह कब होई,` और 'दामादजी` की बॉक्स आफिस पर सफलता और उनके अर्थशास्त्र ने बड़े निगमों को भी भोजपुरी फिल्मों में हाथ आजमाने के लिए ललचाया है।

निरहुआ का रहा 2015 में बोलबाला

ऐसे भी लोग हैं जिन्हें अपनी चहेती भाषा में अच्छी फिल्मों का इंतजार रहता है। अगर हम 2015 की हिट भोजपुरी फिल्मों की ओर नजर डालें तो फिल्म वितरक मुख्यतः दो फिल्मों का नाम लेते हैं और दोनों ही निरहुआ की है। राजा बाबू और पटना से पाकिस्तान, फिल्म डिस्ट्रिब्यूटर जोगिंदर महाजन बताते हैं, “राजा बाबू 2015 की बड़ी हिट फिल्म रही है, और इसने लगभग 4 करोड़ रु. का कारोबार किया है।”

बड़े-बड़े कलाकार भी शामिल हो रहे भोजपुरी जमात में 

गौर करनेे की बात है कि भोजपुरी सिनेमा को 'अछूत` मानने वाले हिन्दी के स्टार भी भोजपुरी आसमान में चमकने को उत्सुक दिख रहे हैं। फिल्म 'गंगा` में बागबान की सफल जोड़ी अमिताभ और हेमामालिनी ने भी मुख्य भूमिका निभाई थी।

'बाबुल प्यारे` में राज बब्बर दिखे तो 'मति भुलैह माई बाप के` में रति अग्निहोत्री नजर आयीं। अजय देवगन 'धरती कहे पुकार के` में अपनी झलक दे चुके हैं। बॉलीवुड की हृषिता भट्ट ,प्रीति झंगियानी जूही चावला, भाग्यश्री, नग्मा.. जैसी नायिकाओं ने भी भोजपुरी में हाथ अाजमाया है। 

धीरे-धीरे पूरे देश में छा जाएंगी भोजपुरी फिल्में

आलम यह है कि भोजपुरी फिल्में अपने बुनियादी इलाके यानी बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के अलावा दिल्ली, उत्तर प्रदेश के दूसरे इलाकों, जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, बंगाल तथा मुंबई में भी अपनी जगह बना रही हैं। हाल ही मे 'बंधन टूटे ना` ने मुंबई में १०० दिन पूरे किये हैं। यह आंकड़ा किसी भी हिन्दी सिनेमा के लिए सपना होता है।

भोजपुरी फिल्में अब मल्टीप्लेक्सेज में भी जमाएंगी कदम

जानकारों का कहना है कि भोजपुरी सिनेमा ने उत्तर प्रदेश और बिहार के एकल परदे वाले सिनेमा घरों को नया जीवन दिया है और महानगरों में मल्टीप्लेक्स संस्कृति से मुरझाये एकल परदेवाले सिनेमाघरों में रौनक लौट आई है। भोजपुरी फिल्मों की पगडंडी चौड़ी होती नजर आ रही है और वह चौतरफा चर्चे में है। नोट करने की बात है कि भोजपुरी सिनेमा ने किसी राज्याश्रय की बदौलत नहीं बल्कि अपने दम पर यह कद बनाया है। 


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