"मुन्ना" को नहीं पसंद कोई भी दाग, कोई और नहीं 'बिहार' है सबसे प्यारा
नीतीश कुमार बचपन से ही न्यायप्रिय और उसूलों के पक्के रहे हैं। आत्मविश्वास और साफ छवि उनकी पहचान है। बचपन में कबड्डी और चिक्का खेलने वाले नीतीश राजनीति के भी माहिर खिलाड़ी हैं।
पटना [काजल]। नीतीश कुमार की सधी हुई बातें व अात्मविश्वास उनकी पहचान है। इसका ताजा उदाहरण रहा आज का दिन, जब उन्होंने विधान सभा में एनडीए के साथ मिलकर नई सरकार का विश्वास मत हासिल किया।
बचपन में कबड्डी और चिक्का खेलने वाले नीतीश शुरू से ही लड़ाई-झगड़े से दूर रहते थे। बच्चों में झगड़ा होने पर वही झगड़ा निपटाते थे, उनकी यही आदत और सच के साथ हमेशा खड़े रहना उनकी बेदाग छवि को झलकाता है। एक बार उन्होंने अपनी छवि को फिर से साबित किया है।
बचपन से काम के प्रति रहा जिम्मेदारी का भाव
नीतीश कुमार के अंदर अपने काम के प्रति जिम्मेदारी का भाव शुरुआत से ही देखने को मिलता रहा है। 1999 में नीतीश को केंद्रीय रेल मंत्री का दायित्व सौंपा गया था तो उन्होंने अपनी जिम्मेदारी अच्छी तरह निभाई थी और रेलमंत्री रहते हुए उनपर आरोप लगे तो उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था।
बिहार की जनता के लिए हैं सुशासन बाबू
बिहार में 10 साल पहले लालू की सरकार को हटाकर सत्ता पर काबिज होना आसान नहीं था, लेकिन नीतीश ने अपनी सधी राजनीति से यह कर दिखाया था। उनके चाहने वालों ने उन्हें 'सुशासन बाबू' का नाम दिया। उसी सुशासन बाबू को जब लालू ने खुद पर और पूरे परिवार पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपो के बाद अपनी राजनीति जारी रखने की कोशिश की तो उन्होंने लालू कोे सबक सिखा दिया।
राजनीति की बेहतर समझ
बीस महीने तक राजद और कांग्रेस के साथ मिलकर महागठबंधन की सरकार चलाने वाले नीतीश ने एक बार फिर सबसे ज्यादा दिन तक भाजपा के सहयोग से सत्ता चलाने वाले नीतीश ने अंतरात्मा की आवाज सुनकर फिर से बीजेपी के साथ गठबंधन कर लिया और छठी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है।
गठबंधन की राजनीति के माहिर नीतीश कुमार ने अपनी चाल से कभी मोदी को चित किया था, अब लालू को ऐसी पटखनी दी है कि वो अपने जख्म को सहला भी नहीं पा रहे हैं।
नहीं किया अपनी छवि से समझौता
गलबहियां करने वाले बड़े भाई लालू को लगा था कि नीतीश पर दबाव की राजनीति कर उन्हें अपने हिसाब से चला लेंगे। लेकिन उनकी सोच और नीतीश कुमार की छवि दोनों के द्वन्द्व में आखिरकार जीत बेदाग छवि की हुई। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कभी नहीं झुकने वाले नीतीश ने बता दिया कि वो अपने उसूलों से कतई समझौता नहीं कर सकते।
नीतीश के इस्तीफे की खबर सुन मच गया था हड़कंप
महागठबंधन का साथ छोड़कर एक बार फिर से एनडीए का हाथ थामने वाले नीतीश कुमार ने जब अपने इस्तीफे का एलान किया तो तहलका मच गया। एक ओर राजद समझ नहीं सकी कि अचानक नीतीश ने इतना बड़ा फैसला कैसे ले लिया? विरोध भी हुआ, लेकिन जनता के बड़े भाग ने इसका स्वागत किया।
बिहार का विकास प्राथमिकता
राजद के साथ मिलकर बीस महीने सरकार चलाने वाले नीतीश को जब लगने लगा कि अब सिर से पानी ऊपर जाने लगा है और बिहार में विकास के नाम पर अब केवल घटिया राजनीति की जा रही और अहंकार की पराकाष्ठा हो गई है, जिससे नुकसान केवल बिहार की जनता का हो रहा तो उन्होंने बड़ा एलान किया और अपना इस्तीफा दे दिया।
इस्तीफा देेने के बाद उनकी सहयोगी रही भाजपा ने तुरंत उनकी ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया। नीतीश ने उस हाथ को थाम लिया, जिसके बाद बिहार की राजनीति में भूचाल आ गया। दुश्मन बन गए दोस्तों ने उनपर तरह-तरह के आरोप लगा दिए।
महागठबंधन में रहते हुए लिए थे बड़े फैसले
नीतीश ने महागठबंधन के साथ रहते हुए राजनीतिक मुद्दों के साथ ही सामाजिक मुद्दों पर भी काम करना शुरू किया और कई बड़े फैसले लिए, जिसकी देश-विदेश में सराहना हुई। लेकिन उन्हें अपने ही गठबंधन में विरोध का सामना करना पड़ा। जहां नीतीश ने कई मुद्दों पर केंद्र की एनडीए सरकार की सराहना की तो वहीं इसके लिए उनपर आरोप भी लगे।
अपराध और भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस नीति रही कायम
शहाबुद्दीन का फैसला हो या राजवल्लभ यादव का, या मनोरमा देवी के बेटे रॉकी यादव का, नीतीश ने अपराध से कभी समझौता नहीं किया। भ्रष्टाचार का मामला हो या अपराध का, नीतीश ने इन मुद्दों पर कड़े फैसले लिए और हाइकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक इन मामलों को लेकर लड़ाई लड़ी। एेसे में कोई अगर उनके मंत्रिमंडल में भ्रष्टाचार का आरोपी हो तो वो कैसे बर्दाश्त कर सकते थे।
इसके लिए उन्होंने कई दिनों तक इंतजार किया कि किसी तरह यह मसला सुलझे। लेकिन राजद अपने फैसले पर अडिग रहा और तेजस्वी ने इस्तीफा देने से साफ इन्कार कर दिया। नीतीश को मजबूरीवश बड़े फैसले का एलान करना पड़ा, जो बिहार हित में था।
यह भी पढ़ें: बिहार में बहार हो, नीतीशे कुमार होl
बिहार के हित के लिए आए अपने पुराने सहयोगी के साथ
नीतीश-लालू के 18 सालों की दुश्मनी का असर बिहार के गठबंधन सरकार के बीते 20 महीने के सफर पर साफ दिख रहा था। आखिर 26 जुलाई को गठबंधन अपने स्वभाविक नतीजे पर पहुंच गई और 16 घंटे के भीतर ही नीतीश दोबारा सत्ता में हैं और बीते 17 साल के पुराने दोस्त चार साल बाद एक बार फिर साथ हैं।’
यह भी पढ़ें: राबड़ी का फूटा गुस्सा, कहा- मेरे बेटे से डर गए थे नीतीश, धोखा देकर फंसाया