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बिहार में खेल का हाल : घास पर हॉकी, सड़क पर फुटबॉल

खेल दिवस पर आज कई तरह के आयोजन किए जाएंगे, खिलाड़ियों को सम्मानित भी किया जाएगा, लेकिन बिहार में जो खेल की स्थिति है उसके लिए राज्य सरकार की नीतियां जिम्मेवार हैं।

By Kajal KumariEdited By: Published: Mon, 29 Aug 2016 11:18 AM (IST)Updated: Mon, 29 Aug 2016 11:14 PM (IST)
बिहार में खेल का हाल : घास पर हॉकी, सड़क पर फुटबॉल

पटना [अरुण सिंह]। आज खेल दिवस है। हर साल की तरह हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद फिर याद किए जाएंगे। राज्य का गौरव बढ़ाने वाले खिलाडिय़ों को भी सम्मानित किया जाएगा, लेकिन जिस राज्य ने मनोहर टोपनो, सिलवानुस डुंगडुंग जैसे ओलंपियन, अजितेश राय सरीखे कप्तान और हरेन्द्र कुमार जैसे कोच दिए हैं और जहां के पदाधिकारी मुश्ताक अहमद हॉकी इंडिया के महासचिव हों, उस राज्य में राष्ट्रीय खेल घास पर खेली जाती है। ऐसा क्यों?

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इस पर शायद ही कोई चर्चा या मंथन हो। इसी तरह चंदे्रश्वर प्रसाद जैसे ओलंपियन की नगरी में फुटबॉलर मैदान पर नहीं सड़क पर खेलने को मजबूर हैं। इसका निदान शायद ही किसी के पास हो।

पिछले खेल दिवस पर खिलाडिय़ों को जो सब्जबाग दिखाए गए। बड़ी-बड़ी घोषणाएं हुईं थीं। वह धरातल पर नहीं दिख रहीं है। पढि़ए इस पर पड़ताल करती अरुण सिंह की रिपोर्ट।

कछुए की गति से निर्माण

खेल के विकास में सबसे मजबूत व आवश्यक पायदान है आधारभूत संरचना, लेकिन मुख्यमंत्री खेल विकास योजना के अंतर्गत सालों से बन रहे आउटडोर स्टेडियम का निर्माण अब तक केवल तीस प्रतिशत ही हुआ है। कछुए की गति से चल रहे निर्माण कार्य का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अब तक 242 में से 79 स्टेडियम का निर्माण कार्य पूरा हुआ है। 89 स्टेडियम का काम अधूरा है, जबकि 74 का कार्य अब तक शुरू ही नहीं हुआ है।

अहिल्या को है राम का इंतजार

पिछले दस साल से अहिल्या बने फिजिकल कॉलेज को उसके तारणहार राम का इंतजार है। 1952 में स्थापित इस कॉलेज के पास 25 एकड़ से ज्यादा जमीन उपलब्ध है। यहां इंडोर व आउटडोर मैदान समेत तमाम सुविधाएं भी हैं, फिर भी यह अंतिम सांसे ले रहा है। अब यहां पढ़ाई नहीं होती, लेकिन यहां प्राचार्य के अलावा अन्य कर्मचारी पदास्थापित हैं। कॉलेज की जमीन पर जहां हॉकी मैदान बनने वाला था, वहां अब साइंस सिटी का निर्माण होगा। तात्पर्य यह है कि कॉलेज का अस्तित्व ही समाप्त होने के कगार पर है।

हरेंद्र की भी हुई अनदेखी

फिजिकल कॉलेज में हॉकी स्टेडियम बनता तो एस्ट्रो टर्फ भी बिछता। यानी हमारे खिलाडिय़ों को घास पर खेलने से निजात भी मिल जाती। परंतु, यहां जब भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कोच छपरा निवासी हरेन्द्र कुमार की भी अनदेखी हुई तो खिलाडिय़ों पर कौन ध्यान देता है? हरेन्द्र ने खेल दिवस पर ही पटना में राज्य सरकार से हॉकी एकेडमी खोलने के लिए जमीन की मांग की थी, जिसकी अनदेखी कर दी गई।

नई मिट्टी का इंतजार

1996 विश्व कप समेत कई बड़े मैचों का गवाह रहे मोइनुल हक स्टेडियम के जीर्णोद्धार की घोषणा मुख्यमंत्री ने की थी। अब यह स्टेडियम ही टूट के कगार पर पहुंच गया है। विकेट खराब हो चुकी है, मैदान को नई मिट्टी का इंतजार है, जबकि गैलरियां कई जगहों से दरक रही हैं। पेयजल तक यहां मयस्सर नहीं है। वह तो भला हो कुछ आयोजकों का जो पिच पर पैबंद लगा किसी तरह काम चला रहे हैं। राज्य खेल प्राधिकरण को प्रति वर्ष स्टेडियम से अच्छी कमाई हो जाती है, फिर भी यह दुर्दशा है।

बदरंग हुई सिंथेटिक ट्रैक

एक मार्च 2012 को पाटलिपुत्र खेल परिसर का निर्माण हुआ। फिर इसके आउटडोर स्टेडियम में एथलेटिक्स के सिंथेटिक ट्रैक बिछी, जो अब रख-रखाव के अभाव में बिगडऩे लगी है। इसका रंग बदरंग होने लगा है। फुटबॉल मैदान अब तक समतल नहीं हो सका है। तेल व डीजल से चलने के कारण इसमें लगी फ्लड लाइट्स का उपयोग कम ही हो पाता है।

इंडोर हॉल में खामियां

परिसर के इंडोर हॉल का वुडेन फ्लोर बर्बाद हो चुका है। हॉल का सेंट्रलाइज्ड एयरकंडिशन आज तक चालू नहीं हो सका है। इसके बाहरी परिसर में कबड्डी, बास्केटबॉल, बॉक्सिंग के सीमेंटेड प्लेटफॉर्म बने। गैलरी भी बना है। लेकिन शेड का निर्माण न होने से बारिश के मौसम में खिलाड़ी अभ्यास नहीं कर पाते हैं।

ऑफिस की शोभा बढ़ा रहे कोच

लंबे अंतराल के बाद 2007 में हॉकी, एथलेटिक, बैडमिंटन, वालीबॉल, महिला फुटबॉल, ताइक्वांडो, भारोत्तोलन जैसे खेल के नौ एनआइएस कोच नियुक्त हुए, लेकिन वे नियुक्ति तिथि से आज तक कागजी कार्य करने में व्यस्त हैं। इन नौ में से पांच पटना में ही पदास्थापित रहे।

वर्तमान में दीपाली नंदी फिजिकल कॉलेज की प्राचार्य हैं, नरेश चौहान राज्य खेल प्राधिकरण में वरीय क्रीड़ा कार्यपालक, संजीव कुमार सिंह जिला खेल पदाधिकारी, आनंदी कुमार व मिथिलेश कुमार कला, संस्कृति व युवा विभाग के मुख्यालय में सहायक निदेशक हैं। ऐसे में परिणाम की अपेक्षा करना बेमानी नहीं होगा।

सूरत बदलने के 10 उपाय

1.कला, संस्कृति विभाग से अलग कर स्वतंत्र रूप से खेल विभाग का गठन हो।

2. फिजिकल कॉलेज मेें हॉकी एकेडमी बने और साइंस सिटी का निर्माण आर्यभट्ट की जन्मस्थली तारेगना (मसौढ़ी) में हो।

3. खेल प्राधिकरण को अन्य राज्यों की तरह स्वतंत्र रूप से कार्य करने हेतु शक्ति प्रदान की जाए एवं इसमें खाली पड़े पदों को अविलंब भरा जाए।

4. खिलाडिय़ों की नियुक्ति अविलंब हो और खेल विधेयक को जल्द से जल्द अमलीजामा पहनाया जाए।

5. राज्य में 242 स्टेडियमों के निर्माण पर हुई खर्च राशि की निगरानी से जांच की जाए, क्योंकि इसकी उपयोगिता पर प्रश्न चिह्न लग गया है।

6. मोइनुल हक स्टेडियम के जीर्णोद्धार, खेल अकादमी और एस्टो टर्फ मैदान का निर्माण जल्द शुरू हो।

7. जिस खेल को सरकारी सहायता और कार्यालय दी जा रही है, उस खेल के खिलाडिय़ों को नौकरी से वंचित नहीं किया जाए।

8. खेल विश्वविद्यालय की स्थापना हो। ग्रामीण इलाकों में विशेष प्रतिभा खोज अभियान चलाया जाए।

9. सभी प्रमंडलों में राष्ट्रीय स्तर का स्टेडियम बनाया जाए।

10. खेल दिवस पर दी जाने वाली पुरस्कार राशि किस श्रेणी में किसको कितनी दी जाएगी। इसका सही निर्धारण हो। इसकी बजट में असमानता न हो।


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