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हस्त नक्षत्र और अमृत योग में होगी मां की पूजा

मां जगदंबा की आराधना का विशेष पर्व नवरात्र है।

By Edited By: Published: Fri, 30 Sep 2016 01:40 AM (IST)Updated: Fri, 30 Sep 2016 01:40 AM (IST)
हस्त नक्षत्र और अमृत योग में होगी मां की पूजा

पटना। मां जगदंबा की आराधना का विशेष पर्व नवरात्र है। इस बार शारदीय नवरात्र एक अक्टूबर यानी शनिवार से आरंभ हो रहा है। विजयादशमी मंगलवार यानी 11 अक्टूबर को होगी। आचार्य विनोद झा वैदिक ने कहा कि शनिवार से मां की पूजा का आरंभ और मंगलवार को समापन दोनों काफी शुभ है।

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हस्ता नक्षत्र, कन्या राशि और कन्या लग्न में होगी कलश स्थापना - आचार्य वैदिक ने कहा कि शनिवार का दिन हस्त नक्षत्र और कन्या राशि व लग्न में होने के कारण माता के भक्तों के लिए काफी शुभ है। वैसे तो शनिवार का पूरा दिन कलश स्थापना के लिए शुभ माना गया है। सूर्य का उदय भी कन्या राशि, कन्या लग्न होने से शुभ है। कलश स्थापना का समय शनिवार को सुबह 11:36 बजे से लेकर 12:24 बजे तक अभिजित मुहूर्त में आ रहा है, जो काफी लाभकारी है। कन्या लग्न सुबह सात बजे लेकर 12:30 बजे आश्रि्वन प्रतिपदा होना जातकों के लिए शुभ है। वैदिक ने कहा कि काफी वर्षो बाद नवरात्र की पूजा 10 दिनों की है। प्राय: माता की पूजा आठ या नौ दिन के होते थे। हस्त नक्षत्र और अमृत योग होने से पूजा की महत्ता और बढ़ जाएगी।

नवरात्र की द्वितीया तिथि में वृद्धि : इस बार द्वितीया तिथि में वृद्धि के चलते नवरात्र दस दिनों का है। प्रतिपदा के बाद द्वितीया दो दिन, दो और तीन अक्टूबर को है। द्वितीया तिथि दो अक्टूबर को पूरे दिन और तीन अक्टूबर को सुबह 7:56 बजे तक है। माता का आगमन इस बार घोड़े पर हो रहा है, जबकि विदाई मुर्गे पर। द्वितीया तिथि रविवार और सोमवार को होना शुभ है। हथिया नक्षत्र का सूर्य, चंद्र का होना जातकों के लिए शुभ बताया गया है।

निशा पूजा आठ और महाष्टमी व्रत नौ का : मां की निशा पूजा आठ अक्टूबर को होगी। महाष्टमी का व्रत और संधि पूजा नौ अक्टूबर और महानवमी की पूजा 10 अक्टूबर होगी। नवरात्र में कुवांरी पूजन करने से भक्तों पर खास कृपा बरसती है। महाष्टमी और नवमी के दिन कुवांरी का पूजन करना जातकों को दुख नाश करता है। सप्तमी तिथि को माता का पट खुलेगा।

पाठ करने से पहले शुद्धता जरूरी - नवरात्र पाठ करने के पहले जातकों को पूर्ण रूप से शुद्धता बरतनी होगी। घरों में साफ और स्वच्छ माहौल होने के साथ शंाति का वातावरण जरूरी है। जातक को मन और वचन से शुद्ध होने की जरूरत है। पाठ करने के दौरान जातकों को काम, क्रोध, मोह आदि से मुक्त होकर मां की आराधना करनी होगी।


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