मां को सात साल से है बेटी का इंतजार, पिता बोले- सिस्टम से उठ गया भरोसा
सात साल से एक मां की आंखे अपनी बेटी को देखने का इंतजार कर रही है। उसकी बेटी की गुमशुदगी की रिपोर्ट फाइलों में दफन हो गई। पिता का सिस्टम से भरोसा उठ चुका है।
पटना [जेएनएन]। 17 मार्च 2010! पटना के आलमगंज थाने में एक महिला अपने पति के साथ बदहवास आती है। साहब! हमारी बेटी नहीं मिल रही है। पता नहीं, क्या हो गया उसके साथ। एक सांस में सब कुछ कह जाती है। कुछ कीजिए...। ठीक है, मामला लिखा दो। मुंशी जी एफआइआर दर्ज कर लेते हैं। कब से गायब है? कहां गई थी? ठीक है, मामला दर्ज हो गया है। ...और यह मामला यही भर रह गया।
सात साल से बेटी का इंतजार
वह बच्ची आज तक लौट कर नहीं आई। तब उसकी उम्र 14 साल थी। दसवीं में पढ़ती थी। परीक्षा की तैयारी के लिए गेसपेपर लेने निकली थी। फिर नहीं लौटी। मां-बाप थाने दौड़ते रहे। ढूंढा जा रहा है। आज, कल...। देखते-देखते सात साल गुजर गए। आस टूट गई, पर अभी भी आशा की एक किरण, शायद उसका पता चल जाए।
हर जगह गुहार लगाई
परिजन दौड़ते रहे। हर जगह गुहार लगाई। सामाजिक कार्यकर्ताओं से लेकर जनप्रतिनिधियों तक गई। पुलिस का एक ही जवाब, पता लगाया जा रहा है। टीम गठित की जा रही है। एसएसपी से लेकर तमाम जगहों पर दर्जनों बार गुहार के बाद भी कुछ पता नहीं चला। फाइल में गुमशुदगी की एक और रिपोर्ट दफन हो गई।
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बोली थी, गेसपेपर लेकर आते हैं
मां की आंखें छलक जाती हैं, वह बोल कर निकली थी कि गेसपेपर लेकर आते हैं। काफी देर हो गई तो लगा कि किसी सहेली वगैरह के यहां गई होगी। वह ज्यादा समय घर में ही रहती थी, सभी की दुलारी थी। उस दिन 17 मार्च को जब काफी देर हो गई तो ढूंढने निकले। कहीं पता नहीं चला। अनहोनी की आशंका बलवती हो गई। पुलिस के पास गए, रिपोर्ट लिखाई। दिन, महीने, साल गुजरते चले गए। बेटी का कुछ पता नहीं चला।
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अब क्या करें
पिता कहते हैं, अब सबसे भरोसा उठ गया। सिर्फ आश्वासन ही मिला। अपने स्तर से तलाश जारी रखी। बिहार के कोने-कोने में गए। दिल्ली भी गए। कहीं कोई सुराग मिल जाए। दूसरे राज्यों में भी गए। पुलिस कहती है, कोई सूचना मिले तो जानकारी दीजिएगा।
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