जो है अलबेला मदनयनों वाला.... जानिए क्यों हैं 'कृष्ण' विश्व में लोकप्रिय?
आज कृष्ण जन्म का त्योहार जन्माष्टमी है। भगवान श्रीकृष्ण ग्लोबल और सबसे लोकप्रिय भगवान माने जाते हैं। पूरी दुनिया में उनके अनुयायी और भक्त हैं। जानिए क्यों हैं कृष्ण इतने लोकप्रिय?
पटना [काजल]। वृंदावन की गलियों से निकलकर कन्हैया भारत सहित पूरे देश में कब पूजे जाने लगे इसका कोई प्रमाण तो नहीं मिलता लेकिन आज यह सत्य है कि भगवान श्रीकृष्ण कृष्णा के रूप में ग्लोबल हो गए हैं। पूरब से लेकर आज पश्चिम तक कृष्णा की धूम है। दुनिया को प्रेम का मंत्र देने वाले श्रीकृष्ण की पूजा आज बड़े तादाद में पूरी दुनिया में की जाती है।
धोती कुर्ता पहने, गले में चंदन की माला और हरे रामा, हरे कृष्णा गाते युवा और लोग विदेशों में सड़कों पर जब दिखते हैं तो लगता है कि वृंदावन की गलियों में पहुंच गए हों। विदेशों में कृष्ण कन्हैया की भक्ति मशहूर है। एेसे नजारे अमेरिका, अॉस्ट्रेलिया, अफ्रीका के अलावा यूरोप के बडे-बड़े शहरों की गलियों में देखने को मिल जाते हैं। कृष्ण विदेशों में सबसे पोपुलर भगवान माने जाते हैं।
भगवान की पूजा और भक्ति को नया और अनोखा रूप दिया चैतन्य महाप्रभु ने। चैतन्य महाप्रभु कृष्ण के अनन्य भक्त थे। उनकी भक्ति और मान्यता एेसी थी कि पूजा से ज्यादा गाकर - झूमकर और नाचकर भगवान से अपना रिश्ता जोड़ा जा सकता है और यही असली पूजा है।
भगवान की भक्ति को सेलिब्रेशन की तरह मनाओ एेसी उनकी मान्यता थी। उन्होंने कहा था कि ईश्वर के लिए सम्मान के साथ पूजा-पाठ करना क्यों? इसे एक आनंद के साथ आजादी के साथ करो। उनकी यह मान्यता और पूजा करने का एेसा स्वरूप आज पूरी दुनिया में दिखती है जहां नाचते, गाते झूमते भक्त सड़कों पर आनंद उल्लास मनाते दिखते हैं। भगवत पूजन और आनंद के साथ।
वृंदावन की गलियों से निकलकर सात समंदर पार पहुंचे कृष्ण
भगवान श्रीकृष्ण को दुनिया भर में लोकप्रिय बनाने में सबसे बड़ा योगदान इस्कॉन संस्था का है। इ इस्कॉन (ISKCON) यानी International Society for Krishna Consciousness, जिसे अंतरराष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ भी कहते हैं, एक अंतरराष्ट्रीय आध्यात्मिक संस्था है। इसकी स्थापना कृष्ण कृपामूर्ति श्रीमद् अभय चरणारविंद स्वामी प्रभुपाद ने सन 1966 में की थी।
इस संस्था ने भारत के अलावा, अमेरिका, इंगलैंड, कनाडा, इटली, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, ब्राजील, इंडोनेशिया, दक्षिण अफ्रीका, जर्मनी, चेक रिपब्लिक, फ्रांस, कीनिया, बांग्लादेश, लातविया, बेल्जियम, मेक्सिको, जापान, पोलैंड और स्विट्जरलैंड में दर्जनों कृष्ण मंदिर बनवाये हैं। कृष्ण भक्तों के लिए ये इस्कॉन टेंपल देखने योग्य हैं। इस्कॉन के मंदिरों की विशेषता यह है कि यह हर जगह लगभग एक जैसे ही बने होते हैं। यहां के कृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव में शामिल होने का अनुभव ही अनोखा होता है।
प्रभुपाद जी भगवान कृष्ण के प्रचार-प्रसार के लिए तब अमेरिका पहुंचे थे जब हिप्पी आंदोलन जोरों पर था और बड़ी संख्या में युवा वर्ग जुए और नशे की लत से पीड़ित था, उन्हें तलाश थी तो बस प्रेम, शांति और खुशी की। प्रभुपाद जी ने कृष्ण भक्ति के जरिए उन मार्ग से भटके युवाओं को आध्यात्मिक दिशा देकर नई जिंदगी दी। उन्हें प्रेम का पाठ पढाया।
सात्विक जीवन अपनाने के बाद उन युवाओं ने शांति, खुशी और आनंद का अनुभव किया कृष्ण भक्ति में वो इतने लीन हो गए कि यह एक आंदोलन बन गया। इस संस्थान का मकसद समाज में आध्यात्मिक ज्ञान और दुनिया में दोस्ती और प्यार बढाना है।
वृंदावन और मथुरा की गलियां अगर हरे कृष्णा के नाम से गूंजती हैं तो इस्कॉन के मंदिरों में भी हर शाम हरे रामा, हरे कृष्णा गाते -नाचते, झूमते भक्त प्रेम और आनंद का अलख जगाते हैं। विदेशों में कृष्ण का एेसा क्रेज है कि लोग जन्माष्टमी पर मोरपंख, बांसुरी, कृष्ण के कपड़े खरीदकर उनकी मूर्तियों को अपने हाथों से सजाते हैं।
आखिर कृष्ण ग्लोबल और लोकप्रिय क्यों हैं?
भगवान कृष्ण में मानवीय गुणों के ज्यादा होने के कारण शायद वे सबसे ज्यादा लोकप्रिय भगवान माने जाते हैं। किसी भी आम इंसान की तरह का जीवन, जैसे-बचपन शरारत से भरा तो युवावस्था मनमौजीपन वाला। एक ओर अर्जुन को गीता का महाज्ञान देने वाला तो दूसरी ओर राधा संग प्रेम और गोपियों संग रासलीला करना। कृष्ण ने पूरी दुनिया को प्रेम का एेसा संदेश दिया और जीने की जो राह बताई इसी वजह से वे आज भी इतने पोपुलर और ग्लोबल भगवान हैं।
कृष्ण
कहते हैं कि अपने भक्तों के लिए भगवान श्रीकृष्ण सृष्टि के हर कण में बसे हैं। चाहे वह वृंदावन हो या ब्राजील या बेल्जियम़ यह कृष्ण के प्रति हमारी भक्ति का ही उत्कर्ष है कि विभिन्न सदियों में जगह-जगह उनके मंदिर बनाये गये हैं और आगे भी बनाये जाते रहेंगे़।
ब्रज में श्री बांके बिहारी मंदिर
ब्रज मंडल के कण-कण में कृष्ण बसे हैं। यहां हर जगह किशन कन्हैया के अद्भुत मंदिर हैं हर मंदिर की अपनी-अपनी विशेषता है। इस क्षेत्र का सबसे अलौकिक और प्राचीन श्री बांके बिहारी मंदिर के बारे में मान्यता है कि अगर कोई बांके बिहारी जी के मुखारविंद को लगातार देखता रहे, तो प्रभु उसके प्रेम से मंत्रमुग्ध होकर उसके साथ चल देते हैं।
इसीलिए मंदिर में उन्हें परदे में रख कर उनकी क्षणिक झलक ही भक्तों को दिखायी जाती है। यह मंदिर शायद अपनी तरह का पहला मंदिर है, सुबह में घंटे इसलिए नहीं बजाये जाते, ताकि बांके बिहारी की नींद में व्यवधान न पड़ जाये। उन्हें हौले-हौले एक बालक की तरह दुलार कर उठाया जाता है।इसी तरह संध्या आरती के समय भी घंटे नहीं बजाये जाते.
वृंदावन में श्री राधारमण मंदिर
वृंदावन में ही स्थित है श्री राधारमण मंदिर। राधारमण का मतलब है, जो राधा रानी को प्यार करते हैं। श्री चैतन्य महाप्रभु के शिष्य श्री गोपाल भट्ट गोस्वामी ने 1542 ईस्वी में इस मंदिर की स्थापना की थी। जन्माष्टमी को जहां दुनिया के सभी कृष्ण मंदिरों में रात्रि बारह बजे उत्सव पूजा-अर्चना, आरती होती है, वहीं राधारमणजी का जन्म अभिषेक दोपहर बारह बजे होता है। मान्यता है कि ठाकुरजी सुकोमल होते हैं, अत: उन्हें रात्रि में जगाना ठीक नहीं।
बरसाना का श्रीजी मंदिर
बहुत कम लोग यह जानते होंगे कि बरसाना के श्रीजी मंदिर में कान्हा के बेशकीमती हीरे-जवाहरात, सोना-चांदी, कपड़े, मुकुट, कमरबंद, बाजूबंद, बांसुरी और खाने-पीने के बरतन रखे हुए हैं। कमरे का ताला पिछले 150 वर्षों से खोला नहीं गया है, इसलिए खजाने को अभी तक किसी ने देखा नहीं है।
गुजरात का श्री द्वारकाधीश मंदिर
गुजरात के श्री द्वारकाधीश मंदिर को जगत मंदिर भी कहा जाता है। गुजरात का द्वारका शहर वह स्थान है, जहां पांच हजार वर्ष पूर्व भगवान कृष्ण ने मथुरा छोड़ने के बाद द्वारका नगरी बसायी थी। जिस स्थान पर उनका निजी महल हरि गृह था, वहां आज प्रसिद्ध द्वारकाधीश मंदिर है। यहां इन्हें 'रणछोड़ जी' भी कहा जाता है।
ओडिशा स्थित जगन्नाथपुरी
ओडिशा स्थित जगन्नाथपुरी भी हिंदू धर्म के चार धामों में से एक है और यहां भगवान विष्णु साक्षात विराजमान हैं। कहते हैं कि जिसने सच्चे मन से यहां आकर भगवान के चरणों में अपनी मन्नत मांग ली, वह पूरी होती है।जगन्नाथ मंदिर की महिमा देश में ही नहीं, विश्व में भी प्रसिद्ध है।