लाइव रिपोर्ट- मंदिरों की नगरी में प्रकृति का तांडव
मंदिरों की नगरी और चमत्कार के लिए प्रसिद्ध नेपाल और खास कर काठमांडू विपदा की इस घड़ी में खून के आंसू रो रहा है।
भारत-नेपाल सीमा से संजय सिंह। मंदिरों की नगरी और चमत्कार के लिए प्रसिद्ध नेपाल और खास कर काठमांडू विपदा की इस घड़ी में खून के आंसू रो रहा है। शनिवार को भूकंप से भारी तबाही के बाद कई चिताओं की आग भी ठंडी नहीं हुई थी कि रविवार को फिर वहां प्रकृति ने भूकंप के रूप में विनाशलीला के उसी खेल को दोहरा दिया। वहां के बद से बदतर हालात को देख कर लगता नहीं है कि कभी यही शांत-सुरम्य नेपाल था। चारों ओर लाशें और बर्बादी के मंजर अपने-आप में काफी कुछ बयां करने के लिए काफी हैं।
सारी सड़कें लगभग तबाह हो चुकी हैं। भारतीय सीमा से इस समय वहां पहुंच पाना लगभग असंभव है। वहां बड़ी संख्या में उत्तर बिहार व कोसी क्षेत्र के लोग फंसे हुए हैं। उनसे संपर्क का माध्यम बुरी तरह से बाधित मोबाइल सेवा ही है। वहां लोग अपने परिजनों से संपर्क करने के दौरान फफक पड़ते हैं। हमने कुछ लोगों से बात की तो वे एक ही बात कहते हैं, सब कुछ तबाह हो गया बाबूजी। मोह-माया में जीने वाले इंसान ही नहीं, मंदिरों और हिमालय की तराइयों को नापने वाले साधु-संत भी प्रकृति की इस विनाशलीला पर स्तब्ध हैं। हे विधाता, तेरा ऐसा कोप।
दूसरे दिन जब लोग संभल ही रहे थे, तभी 12 बज कर 39 मिनट पर (भारतीय समय के अनुसार) फिर धरती डोली। इस बार लोग भौंचक रह गए। देखते ही देखते भगदड़ मच गई। इसका सीधा असर राहत कार्यों पर भी पड़ा। चार घंटे तक राहत कार्य को रोक दिया गया। काठमांडू में 16 बेस कैंप बनाए गए हैं। तीन स्तरों पर राहत एवं बचाव कार्य चल रहे हैं। पहले स्तर पर फिलहाल मलबा हटाने का काम किया जा रहा है। इसके साथ ही मलबे में दबे संभावित जीवित लोगों को निकालने को प्राथमिकता दी जा रही है। इस दौरान शवों को भी निकाला जा रहा है। अभी की स्थिति में सरकारी तौर पर नेपाल में भले ही 2200 मौत की सूचना दी जा रही है, लेकिन जिस तरह से वहां चारों ओर भारी मलबा बिखरा पड़ा है, उसे देखकर मृतकों की संख्या में भारी बढ़ोतरी की आशंका व्यक्त की जा रही है। प्रत्यक्षदर्शियों व राहत कार्य में लगे लोगों के अनुसार वहां जान-माल के नुकसान के मौजूदा आंकड़े बहुत सतही व कम हैं। जैसे-जैसे मलबा हटेगा, और भयावह स्थिति सामने आएगी।
इस समय ऊपरी इलाके में कड़ाके की ठंड में लगभग सभी लोगों की जिंदगी सड़कों पर कट रही है। कहीं-कहीं तो सड़क पर ही अस्पताल खोल दिए गए हैं। दहशत इतनी है कि बच्चे तो क्या बड़े भी घर के अंदर जाने का साहस नहीं जुटा पा रहे हैं। काठमांडू के न्यू रोड स्थित भारतीय सेना के शिविर में भारी भीड़ है। लोगों को आस है कि यहां राहत और बचाव कार्य जल्दी होंगे। हादसे की खौफनाक यादों से उन्हें अपना घर भी बेगाना लगने लगा है। इस हादसे में देवरिया (उत्तर प्रदेश) की रेशमा अपने पिता आसिफ को खो चुकी है। उनका काठमांडू में होटल का कारोबार था। रेशमा बताती है कि परिवार के सभी लोग पहले दिन घर में ही थे। वह किसी तरह घर से निकल गई, लेकिन उसके पिता भाग नहीं पाए। फर्नीशिंग आइटम के कारोबारी प्रमोद अग्रवाल का कहना है कि इस प्राकृतिक आपदा ने खूबसूरत काठमांडू को भयावह बना दिया है। इस शहर को फिर से खड़ा होने में कम से कम 10 साल लगेंगे। यहां के अधिकांश बड़े मॉल्स में दरार आ गई हैं। यहीं रहने वाले विकास अग्रवाल, महेश जिंगला आदि अपने कारोबार के चौपट होने से परेशान हैं। भयभीत भारतीय वहां से पलायन करना चाहते हैं, लेकिन आवागमन के रास्ते बंद होने से समझ नहीं पा रहे कि ये कहां जाएं, क्या करें?
भारतीय सीमा से सटे पूर्वांचल-नेपाल में 41 मौतें
अररिया(भारत) से सटी नेपाल सीमा पूर्वांचल नेपाल के नाम से जानी जाती है। इसमें तीन जिले सुनसरी, दुहबी और धरान आते हैं। रविवार को आए ताजा भूकंप के दौरान मोहरंग में दो लोगों की मौत हो गई। इनमें छाया कुमारी श्रेष्ठ (56) और अजय कुमार ऋषिदेव शामिल हैं। अब तक यहां 41 मौतें हो चुकी हैं। मृतकों में एक अमेरिका और चार चीन के नागरिक भी हैं।