विलय पर भारी पड़ा नेताओं का आत्मविश्वास
जनता परिवार से जुड़े छह दलों का विलय फिलहाल नेताओं के आत्मविश्वास का शिकार होता दिख रहा है। तकनीकी बाधाओं का ख्याल रखे बिना ही हड़बड़ी में विलय की घोषणा कर दी गई।
पटना [एसए शाद]। जनता परिवार से जुड़े छह दलों का विलय फिलहाल नेताओं के आत्मविश्वास का शिकार होता दिख रहा है। तकनीकी बाधाओं का ख्याल रखे बिना ही हड़बड़ी में विलय की घोषणा कर दी गई। अब, बिहार में होने वाले चुनाव के लिए वृहत गठबंधन(ग्रैंड एलायंस) बनाने का प्रयास आरंभ हुआ है, लेकिन इसमें पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी एक नया कोण बनकर सामने आ गए हैं।
जदयू सूत्रों ने कहा कि विलय को लेकर अतिउत्साह और जल्दबाजी में घोषणा की गई थी। पहले यह तय हो जाना चाहिए था कि कौन पार्टी किसमें विलय कर रही है। यह अगर तय रहता तो अबतक विलय की विधिवत सूचना चुनाव आयोग को दी जा चुकी होती। इसके अलावा भी सम्पत्ति के हिसाब-किताब से लेकर नेतृत्व को लेकर कई तकनीकी पेंच हैं, जिन्हें दूर करने में समय लगेगा। इस बीच बिहार का विधानसभा चुनाव काफी नजदीक आ चुका है। ऐसे में वृहत गठबंधन ही फिलहाल उपाय है, विलय की प्रक्रिया अपनी गति से जारी रहेगी।
देखा जाए तो जनता परिवार से जुड़े नेताओं ने काफी समय भी बर्बाद किया है। विलय को लेकर दिल्ली में मुलायम सिंह यादव के आवास पर 7 नवंबर, 2014 को पहली बैठक आयोजित हुई थी और अबतक सात माह में संपत्ति से लेकर बिहार में नेतृत्व, झंडा, नाम, निशान जैसी तकनीकी बाधाओं को दूर करने के लिए फार्मूला निकाला जा सकता था, लेकिन अभी स्थिति यह है कि मुलायम सिंह यादव एक ऐसी पार्टी के अध्यक्ष घोषित हैं जिसका न नाम है और न निशान।
बताया जाता है कि राजद की ओर से विलय की जगह वृहत गठबंधन पर जोर दिया जा रहा है। दिल्ली में दो दिनों पूर्व मुलायम सिंह यादव के आवास पर जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव के समक्ष लालू प्रसाद ने ग्रैंड एलायंस का प्रस्ताव रखा था। उन्होंने इसमें पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा(हम) के अलावा कांग्रेस और वाम दलों सहित सभी गैर-राजग दलों को शामिल करने की बात कही। गठबंधन में मांझी के एक नए कोण ने जदयू खेमे को असहज कर दिया है।
जदयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह कह चुके हैं कि मांझी ने जो किया उसे पार्टी भूल नहीं सकती, बल्कि इसे पूरी गंभीरता से लिया है। गठबंधन में ये सभी दल बिहार में किसके नेतृत्व में चुनाव लड़ेंगे, यह मुद्दा भी विवादास्पद बना हुआ है। राजद खेमे का मानना है कि नीतीश कुमार का नाम चुनाव से पहले घोषित करना यादव-कुर्मी मतदाताओं के हक में नहीं होगा। इससे भाजपा को लाभ मिल सकता है।