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बिहार की शोक 'कोसी' क्या इसबार भी मचाएगी भयंकर तबाही?..जानिए

कोसी नदी को बिहार की शोक नदी भी कहते हैं। हर साल यह बिहार में तबाही मचाती है। इस बार भी कोसी की जलधारा में लगातार उफान जारी है जो किसी बड़ी तबाही को अंजाम दे सकती है।

By Kajal KumariEdited By: Published: Wed, 27 Jul 2016 12:58 PM (IST)Updated: Thu, 28 Jul 2016 07:51 AM (IST)
बिहार की शोक 'कोसी' क्या इसबार भी मचाएगी भयंकर तबाही?..जानिए

पटना [काजल]। कुसहा बांध का टूट जाना और बिहार में बाढ की प्रलयंकारी विनाशलीला मचाने वाली कोसी की जलधारा फिर इसबार मचल रही है। नेपाल में हो रही बारिश से इस नदी में उफान लगातार जारी है, जिसकी वजह से बाढ का खतरा लगातार मंडरा रहा है।

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कोसी की बढती जलधारा से इसकी सहायक नदियों में भी जलस्तर खतरे के निशान से ऊपर है और गांव के गांव इसकी चपेट में आए जा रहे हैं। तटीय इलाके में रहने वाले लोगों की स्थिति खराब हो गई है। उनके घर बह गए हैं, पशु मरते जा रहे हैं, खेतों की फसलें बर्बाद हो गई हैं। लोग आज फिर से कुसहा की त्रासदी को याद कर भयभीत हैं कि कहीं इस बार भी कोसी अपनी विनाश लीला एक बार फिर से तो नहीं दिखाएगी?

बिहार की शोक कही जाती है कोसी

एशिया की दो नदियों को दुखदायिनी नदी कहा जाता है। एक है चीन की ह्वांग-हो जिसे पीली नदी के नाम से जाना जाता है और दूसरी है बिहार की कोसी नदी। अगर चीन की ह्वांग-हो को 'चीन का शोक' कहा जाता है तो कोसी नदी 'बिहार का शोक' है। इन नदियों की शोकदायिनी क्षमता ही बिहार और चीन के बीच विकास का अंतर भी स्पष्ट करती हैं। ह्वांग-हो की बाढ़ पर चीन ने पूरा नियंत्रण स्थापित कर लिया है। अब वहां बाढ़ की विभीषिका नहीं झेलनी पड़ती जबकि कोसी साल-दर-साल अपने डूब और विस्थापन का दायरा बढ़ाती जा रही है।

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दिशा बदलने में माहिर है कोसी

हिमालय से निकलने वाली कोसी नदी नेपाल से बिहार में प्रवेश करती है। कोसी नदी दिशा बदलने में माहिर है। कोसी के मार्ग बदलने से कई नए इलाके प्रत्येक वर्ष इसकी चपेट में आ जाते हैं। बिहार के पूर्णिया, अररिया, मधेपुरा, सहरसा, कटिहार जिलों में कोसी की ढेर सारी शाखाएं हैं। कोसी बिहार में महानंदा और गंगा में मिलती है। इन बड़ी नदियों में मिलने से विभिन्न क्षेत्रों में पानी का दबाव और भी बढ़ जाता है।

घूमती-फिरती नदी है कोसी

कोसी को आप घूमती-फिरती नदी भी कह सकते हैं. पिछले 200 सालों में इसने अपने बहाव मार्ग में 120 किलोमीटर का परिवर्तन किया है। नदी के इस तरह पूरब से पश्चिम खिसकने के कारण कोई आठ हजार वर्गकिलोमीटर जमीन बालू के बोरे में बदल गयी है। एक अरसे से जल वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे थे कि कोसी पूर्व की ओर कभी भी खिसक सकती है। अनुमान भी वही था जो आज हकीकत बन गया है।

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चीन की पीली नदी ह्वांगहो ने भी 1932 में अपना रास्ता बदल लिया था और उस प्रलय में पांच लाख से अधिक लोग मारे गये थे। कोसी नदी के विशेषज्ञ शिलिंग फेल्ड भी लंबे समय से चेतावनी दे रहे हैं कि जब कोसी पूरब की ओर सरकेगी तो वह पीली नदी से कम नुकसान नहीं पहुंचाएगी।हर साल मचाती है तबाही

बिहार मे बाढ़ की प्रलंयकारी लीला में हर साल एक लाख लोगों के घर बह जाते हैं। बाढ़ से घर इतना जर्जन हो जाता है कि वह यदि बचा रह भी गया तो किसी भी वक्त गिरने की स्थिति में पहुंच जाता है। इसके बावजूद इन घरों में रहना लोगों की नियति है। एक अनुमान के अनुसार 32 सालों में बाढ़ ने बिहार में 69 लाख घरों को क्षति पहुंचाई है। इनमें 35 लाख मकान पानी में बह गए। वहीं, 34 लाख घरों को पानी की तेज धारा ने क्षतिग्रस्त कर दिया।

सात साल पहले टूटा था कुसहा बांध, मची थी तबाही

सात साल पहले वर्ष 2008 में 18 अगस्त के ही दिन कोसी नदी का कुसहा बांध टूटने से कोसी त्रासदी की बड़ी घटना घटी थी। सात साल बीतने के बाद भी उस त्रासदी के अवशेष आज भी कोसी इलाके के गांवों में मौजूद हैं।

कोसी के कहर से सुपौल, मधेपुरा, अररिया और सहरसा के इलाके बुरी तरह प्रभावित हुए थे और भारी जान-माल का नुकसान हुआ था। बाढ़ के गुजर जाने के बाद इलाके में बलुई मिट्टी में खेती करना संभव नहीं था लेकिन किसानों ने मक्के की खेती को चलन में लिया और बीते छह सालों में मक्का कोसी की खास और नकदी फसल के रूप में लाभकारी खेती साबित हुई है।

कोसी पर बनाया गया था बांध

कोसी नदी पर सन १९५८ एवं १९६२ के बीच एक बाँध बनाया गया। यह बाँध भारत-नेपाल सीमा के पास नेपाल में स्थित है। इसमें पानी के बहाव के नियंत्रण के लिये ५२ द्वार बने हैं जिन्हें नियंत्रित करने का कार्य भारत के अधिकारी करते हैं। इस बाँध के थोड़ा आगे भारतीय सीमा में भारत ने तटबन्ध बनाये हैं।

बांध का इतिहास

कोसी नदी पर बांध बनाने का काम ब्रिटिश शासन के समय से विचाराधीन है। ब्रिटिश सरकार को ये चिन्ता थी कि कोसी पर तटबन्ध बनाने से इसके प्राकृतिक बहाव के कारण यह टूट भी सकता है। इसीलिए ब्रिटिश सरकार ने इस बात पर तटबंध नहीं बनाने का फ़ैसला किया कि तटबंध टूटने से जो क्षति होगी उसकी भरपाई करना ज़्यादा मुश्किल साबित होगा।

इसी चिन्ता के बीच ब्रिटिश शासन बीत गया और आज़ादी के बाद सन् 1954 में भारत सरकार ने नेपाल के साथ समझौता किया और बांध बनाया गया। यह बांध नेपाल की सीमा में बना और इसके रखरखाव का काम भारतीय अभियंताओं को सौंपा गया। इसके बाद अबतक सात बार ये बांध टूट चुका है और नदी की धारा की दिशा में छोटे-मोटे बदलाव होते रहे हैं। बराज में बालू के निक्षेपण के कारण जलस्तर बढ़ जाता है और बाँध के टूटने का खतरा बना रहता है।

बांध की क्षमता

बांध बनाते समय अभियंताओं ने आकलन किया था कि यह नौ लाख घनफुट प्रतिसेकेंड (क्यूसेक) पानी के बहाव को बर्दाश्त कर सकेगा और बाँध की आयु 25 वर्ष आंकी गई थी। बांध पहली बार 1963 में टूटा था। इसके बाद 1968 में यह 5 स्थानों पर टूटा। उस समय नदी में पानी का बहाव 9लाख 13 हज़ार क्यूसेक मापा गया था। वर्ष 1991 में नेपाल के जोगनिया तथा 2008 में यह नेपाल के ही कुसहा नामक स्थान पर टूटा। वर्ष 2008 में जब यह टूटा तो इसमें बहाव महज़ 1 लाख 44 हज़ार क्यूसेक था।

नीतीश ने नेपाल को किया था आश्वस्त

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नेपाल के वीरपुर तटबंध के दौरे के बाद वहां के नागरिकों और सरकार को आश्वस्त करने की कोशिश की है कि पायलट चैनल से नेपाल को कोई नुकसान नहीं होगा। नेपाल के वीरपुर-कोसी बैराज के पास नदी के पूर्वी तटबंध के काफी करीब से पानी की धारा बह रही है।

दरअसल, कोसी गंडक बूढ़ी, गंडक, बागमती, कमला-बलान, महानंदा सहित अधवारा समूह की अधिकांश नदियां नेपाल से निकलती हैं। इन नदियों का 65 प्रतिशत जलग्रहण क्षेत्र नेपाल और तिब्बत में है। नतीजतन, नेपाल से अधिक पानी छोड़े जाने पर बिहार के गांवों में तबाही मच जाती है। इतना ही नहीं, नेपाल से निकलने वाली नदियों के पानी से राज्य के लोगों को बचाने के लिए हर साल 3629 किलोमीटर लंबे तटबंध की मरम्मत भी करनी पड़ती है।


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