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इन्होंने दी है शहाबुद्दीन की सत्ता को चुनौती, अपने दम लड़ रहे इंसाफ की लड़ाई

सिवान में शहाबुद्दीन के खिलाफ कानूनी जंग आसान काम नहीं था, लेकिन इन लोगों ने यह साहस दिखाया है। उन्हें इसकी कीमत भी चुकानी पड़ी है। लेकिन, न्याय के लिए उनकी कोशिश जारी है।

By Amit AlokEdited By: Published: Wed, 28 Sep 2016 12:16 PM (IST)Updated: Wed, 28 Sep 2016 11:04 PM (IST)
इन्होंने दी है शहाबुद्दीन की सत्ता को चुनौती, अपने दम लड़ रहे इंसाफ की लड़ाई

पटना [अमित आलोक]। सिवान के पूर्व सांसद व बाहुबली राजद नेता मो. शहाबुद्दीन 11 साल जेल में रहकर बाहर आए हैं। सिवान ने वह दौर भी देखा है जब उनका कहा कानून होता था। उनकी खिलाफत की हिम्मत किसी में नहीं थी। विरोध की कोई आवाज उठी तो उसे बंद कर दिया गया। लेकिन, अब वो बात नहीं रही।

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सिवान में उनपर संगीन आरोप लगाते हुए कुछ लोगों ने इंसाफ की आवाज उठाई है। उन्हें अपने व परिवार की फिक्र जरूर है, लेकिन शहाबुद्दीन की समानांतर सत्ता को कानून के माध्यम से चुनौती देकर उन्होंने हिम्मत दिखाई है। एक नज़र उन लोगों पर, जिन्होंने शहाबुद्दीन को चुनौती दी है...

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संघर्ष की मिसाल बने चंदा बाबू

सिवान में एक विवाद की पंचायती हो रही थी। इसमें तकरार बढ़ गई। इसके बाद व्यवसायी चंदा बाबू के तीन बेटों का अपहरण कर लिया गया। बाद में एक बेटा लौटा तब पता चला कि उसके सामने दो बेटों की तेजाब से नहलाकर हत्या कर दी गई थी। इस कांड में तीसरे बेटे की गवाही पर शहाबुद्दीन को उम्रकैद की सजा हो गई। इस बीच तीसरे बेटे की भी हत्या कर दी गई। इस मामले में भी शहाबुद्दीन आरोपी हैं।

इंसाफ की लड़ाई में चंदा बाबू एक-एक कर सबकुछ गंवाते गए। लोगों ने, यहां तक कि एक जिम्मेदार पुलिस अधिकारी तक ने सिवान छोड़ देने की सलाह दी। निराशा का बड़ा दौर भी आया। लेकिन चंदा बाबू संभले। न्याय की उनकी जंग मीडिया में आने पर सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने सहारा दिया।

आज सुप्रीम कोर्ट में शहाबुद्दीन को मिली बेल के खिलाफ उनकी अपील पर सुनवाई हो रही है। अब वे कह रहे हैं कि सिवान छोड़कर नहीं जाएंगे, यहीं जिएंगे और यहीं मरेंगे, चाहे भगवान ज़िंदा रखें या शहाबुद्दीन मरवा दें।

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आशा रंजन ने हालात की चुनौती स्वीकारी

13 मई 2016 की शाम सिवान में पत्रकार राजदेव रंजन की हत्या कर दी गई। राजदेव की पत्नी आशा रंजन इस हत्याकांड में शहाबुद्दीन को मुख्य साज़िशकर्ता मानती हैं। वे खुद व परिवार पर खतरे की आशंका जाहिर करती हैं, लेकिन कहती हैं कि उन्होंने हालात की चुनौती को स्वीकार किया है।

अब मामले की जांच सीबीआइ कर रही है, लेकिन आशा के प्रयासों से ही सीबीआइ के पास लंबित यह फाइल खुली है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका दायर की है।

कभी सहयोगी थे, आज विरोधी हैं मनोज

भाजपा नेता मनोज सिंह कभी शहाबुद्दीन के सहयोगी थे। भाकपा (माले) के विरोध में उन्होंने शहाबुद्दीन का साथ दिया था। मनोज बताते हैं कि 2005 में उनके भाई की हत्या करवा दी गई। अब शहाबुद्दीन से उनकी अदावत है। मनोज के अनुसार शहाबुद्दीन को अंतत: जेल जाना ही पड़ेगा।

अमर ने उठाई थी विरोध की पहली आवाज

सिवान में शहाबुद्दीन के खिलाफ अगर किसी ने आवाज उठाई, वह भाकपा (माले) है। भाकपा माले के विधायक रहे अमर यादव कहते हैं कि दशकों से सामंतवादियों और उनके गुंडों से चले आ रहे इस संघर्ष में 153 नेता और कार्यकर्ता मारे गए हैं। अमर यादव के अनुसार पार्टी के कई नेताओं की ह्त्या में शहाबुद्दीन आरोपी हैं। खुद उन्हें भी गोली मारी गई।

अमर यादव कहते हैं, भाकपा (माले) ही एकमात्र संगठन है, जिसने सबसे पहले शहाबुद्दीन को सजा दिलवाई। अब शहाबुद्दीन बेल के बाद फिर सिवान में हैं। लेकिन, न्याय की जंग जारी रहेगी।


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