कभी जेल में दरबार, कभी SP पर किया था वार...आखिर कौन हैं शहाबुद्दीन?
बिहार में मोहम्मद शहाबुद्दीन एक ऐसा नाम है जिसे शायद ही कोई एेसा हो जो ना जानता हो। एक वक्त था जब बिहार के सिवान जिले में साहेब नाम से मशहूर इस शख्स की हुकूमत चलती थी।आज फिर से यह नाम लोगों की जुबान पर है....जानिए मोहम्मद शहाबुद्दीन को।
पटना [काजल]। बिहार में मोहम्मद शहाबुद्दीन एक ऐसा नाम है जिसे शायद ही कोई एेसा हो जो ना जानता हो। एक वक्त था जब बिहार के सिवान जिले में साहेब नाम से मशहूर इस शख्स की हुकूमत चलती थी। इस नाम से ही हर कोई कांपता था, लेकिन वक्त बदलने के साथ ही सिवान के इस बाहुबली के जेल जाने के बाद इसका खौफ कुछ कम तो हुआ लेकिन वक्त-वक्त पर इस नाम ने अपनी याद लोगों की जुबान पर लाने को मजबूर कर दिया।
मोहम्मद शहाबुद्दीन का जन्म 10 मई 1967 को सीवान जिले के प्रतापपुर में हुआ था। बाहुबली से राजनेता बनने का मोहम्मद शहाबुद्दीन का सफर बेहद दिलचस्प रहा है। 1980 में डीएवी कॉलेज से ही राजनीति में कदम रखने वाले शहाबुद्दीन भाजपा और भाकपा (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) के खिलाफ लड़ाई लड़ क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज कर्रवाई थी।
राजनीति शास्त्र से एमए और पीएचडी करने वाले शहाबुद्दीन ने हिना शहाब से शादी की और एक बेटे और दो बेटियों के पिता हैं। शहाबुद्दीन के अपराध जगत और राजनीति में कदम रखने की कहानी उनके कॉलेज के दिनों से ही शुरू हुई और बहुत जल्द ही उन्होंने अपराध और राजनीति में काफी नाम कमाया।
अपराध की दुनिया में शहाबुद्दीन का पहला कदम
वो अस्सी का दशक था जब शहाबुद्दीन का नाम पहली बार एक आपराधिक मामले में सामने आया था। 1986 में उनके खिलाफ पहला आपराधिक मुकदमा दर्ज हुआ था और देखते ही देखते इसके बाद तो उनके नाम के साथ कई आपराधिक मुकदमे लिखे गए।
अपराध की दुनिया में शहाबुद्दीन एक चमकता सितारा बनकर उभरे उनके बढ़ते हौसले को देखकर पुलिस ने सीवान के हुसैनगंज थाने में शहाबुद्दीन की हिस्ट्रीशीट खोल दी और उन्हें 'ए' श्रेणी का हिस्ट्रीशीटर घोषित कर दिया गया। इस तरह बिल्कुल छोटी सी उम्र में ही अपराध की दुनिया में शहाबुद्दीन एक जाना माना नाम बन गया।
राजनीति में शहाबुद्दीन का प्रवेश
1990 में शहाबुद्दीन लालू प्रसाद की राष्ट्रीय जनता दल के युवा मोर्चा में शामिल हो गए। इसके बाद वे लालू के करीब आते गए। मुसलमान वोटरों पर प्रभाव की वजह से राजद में उनकी तूती बोलती थी। लालू सिर्फ पार्टी में शामिल नहीं किया बल्कि उन्हें पार्टी से विधायक का टिकट भी दे दिया और पहली बार शहाबुद्दीन सीवान विधानसभा सीट से चुनाव जीतने में कामयाब भी हो गए। उसके बाद फिर से 1995 में चुनाव जीता और इस दौरान उनका राजनीतिक कद और बढ़ गया।
उनकी ताकत को देखते हुए पार्टी ने 1996 में उन्हें लोकसभा का टिकट दिया और शहाबुद्दीन की जीत हुई। 1997 में राष्ट्रीय जनता दल के गठन और लालू प्रसाद यादव की सरकार बन जाने से शहाबुद्दीन की ताकत बहुत बढ गई और राजनीतिक गलियारे में शहाबुद्दीन को बाहुबली सांसद की पदवी भी मिल गई।
सीवान में चलती थी शहाबुद्दीन की हुकूमत
2000 के दशक तक सीवान जिले में शहाबुद्दीन एक समानांतर सरकार चला रहे थे। उनकी एक अपनी अदालत थी, जहां लोगों के फैसले हुआ करते थे। वह खुद सीवान की जनता के पारिवारिक विवादों और भूमि विवादों का निपटारा करते थे।
यहां तक के जिले के डॉक्टरों की परामर्श फीस भी वही तय किया करते थे। कई घरों के वैवाहिक विवाद भी वह अपने तरीके से निपटाते थे। वर्ष 2004 में लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने कई जगह खास ऑपरेशन किए थे, जो मीडिया की सुर्खियां बन गए थे।
जेल से लड़ा चुनाव, अस्पताल में लगाया था दरबार
1999 में एक सीपीआई (एमएल) कार्यकर्ता के अपहरण और संदिग्ध हत्या के मामले में शहाबुद्दीन को लोकसभा 2004 के चुनाव से आठ माह पहले गिरफ्तार कर लिया गया था। लेकिन चुनाव आते ही शहाबुद्दीन ने मेडिकल के आधार पर अस्पताल में शिफ्ट होने का इंतजाम कर लिया।
अस्पताल का एक पूरा फ्लोर उनके लिए रखा गया था। जहां वह लोगों से मिलते थे, बैठकें करते थे। चुनाव तैयारी की समीक्षा करते थे। वहीं से फोन पर वह अधिकारियों, नेताओं को कहकर लोगों के काम कराते थे। अस्पताल के उस फ्लोर पर उनकी सुरक्षा के भारी इंतजाम थे।
हालात ये थे कि पटना हाई कोर्ट ने ठीक चुनाव से कुछ दिन पहले सरकार को शहाबुद्दीन के मामले में सख्त निर्देश दिए। कोर्ट ने शहाबुद्दीन को वापस जेल में भेजने के लिए कहा था। सरकार ने मजबूरी में शहाबुद्दीन को जेल वापस भेज दिया लेकिन चुनाव में 500 से ज्यादा बूथ लूट लिए गए थे। आरोप था कि यह काम शहाबुद्दीन के इशारे पर किया गया था।
लेकिन दोबारा चुनाव होने पर भी शहाबुद्दीन सीवान से लोकसभा सांसद बन गए थे. लेकिन उनके खिलाफ चुनाव लड़ने वाले जेडी (यू) के ओम प्रकाश यादव ने उन्हें कड़ी टक्कर दी थी। चुनाव के बाद कई जेडी (यू) कार्यकर्ताओं की हत्या हुई थी।
आतंक का दूसरा नाम बन गए थे शहाबुद्दीन
2001 में राज्यों में सिविल लिबर्टीज के लिए पीपुल्स यूनियन की एक रिपोर्ट ने खुलासा किया था कि राजद सरकार कानूनी कार्रवाई के दौरान शहाबुद्दीन को संरक्षण दे रही थी। सरकार के संरक्षण में वह खुद ही कानून बन गए थे और सरकार की ताकत ने उन्हें एक नई चमक दी थी।
पुलिस शहाबुद्दीन की आपराधिक गतिविधियों की तरफ से आंखे बंद किए रहती थी। शहाबुद्दीन का आतंक इस कदर था कि किसी ने भी उस दौर में उनके खिलाफ किसी भी मामले में गवाही देने की हिम्मत नहीं की थी। सीवान जिले को वह अपनी जागीर समझते थे, जहां उनकी इजाजत के बिना पत्ता भी नहीं हिलता था।
पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी रहे निशाने पर
ताकत के नशे में चूर मोहम्मद शहाबुद्दीन इतना अभिमानी हो गए थे कि वह पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को कुछ नहीं समझते थे। आए दिन अधिकारियों से मारपीट करना उनका शगल बन गया था। यहां तक कि वह पुलिस वालों पर गोली चला देते थे।
पुलिस अफसर को मारा थप्पड़
सीवान में अब शहाबुद्दीन की सरकार चलती थी। अधिकारी उनके घर की दरबारी करते थे जो अवाज उठाया उसे मौत की नींद सुला दी। 16 मार्च 2001 को आरजेडी नेता मनोज कुमार को पुलिस गिरफ्तार करने गई थी। तब शहाबुद्दीन डिप्टी एसपी संजीव कुमार का कॉलर पकड़ थप्पड़ जड़ दिया था। इस घटना ने पुलिस महकमे को हिला कर रख दिया।
पुलिस ने तुरंत एसटीएफ व यूपी पुलिस के साथ मिलकर शहाबुद्दीन को उनके गांव में ही घेर लिया। दोनों तरफ से जमकर गोलीबारी हुई जिसमें आधा दर्जन से ज्यादा लोगों की मौत हो गई। फिर शहाबुद्दीन व उनके सहयोगी घर से फरार हो गए। इस करतूत से लालू ने भी किनारा करना शुरू कर दिया।
डीजीपी को लेना पड़ा था वीआरएस
शहाबुद्दीन पर शिकंजा कसने की शुरुआत 2003 में तब हुई, जब डीपी ओझा डीजीपी बने। उन्होंने शहाबुद्दीन के खिलाफ सबूत इकट्ठे किये और कई पुराने मामले फिर से खोल दिये। जिन मामलों की जांच का जिम्मा सीआइडी को सौंपा गया था, उनकी भी समीक्षा करायी गयी।
माले कार्यकर्ता मुन्ना चौधरी के अपहरण व हत्या के मामले में शहाबुद्दीन पर वारंट जारी हुआ। अंतत: उन्हें अदालत में आत्मसमर्पण करना पड़ा लेकिन मामला आगे बढ़ता कि डीपी ओझा चलता कर दिये गये सत्ता से टकराव के कारण उन्हें वीआरएस लेना पड़ा।
घर से मिला था विदेशी हथियारों का जखीरा
रत्न संजय सीवान के एसपी बने तो शहाबुद्दीन के खिलाफ एक बार फिर कार्रवाई शुरू हुई। तब राज्य में राष्ट्रपति शासन था 24 अप्रैल, 2005 को शहाबुद्दीन के पैतृक गांव प्रतापपुर में की गयी छापेमारी में भारी संख्या में आग्नेयास्त्र, अवैध हथियार, चोरी की गाड़ियां, विदेशी मुद्रा आदि बरामद किये गये थे।
हत्या और अपहरण के मामले में हुई उम्रकैद
साल 2004 के चुनाव के बाद से शहाबुद्दीन का बुरा वक्त शुरू हो गया था। इस दौरान शहाबुद्दीन के खिलाफ कई मामले दर्ज किए गए। राजनीतिक रंजिश भी बढ़ रही थी। नवंबर 2005 में बिहार पुलिस की एक विशेष टीम ने दिल्ली में शहाबुद्दीन को उस वक्त दोबारा गिरफ्तार कर लिया था जब वह संसद सत्र में भागेदारी करने के लिए यहां आए हुए थे।
दरअसल उससे पहले ही सीवान के प्रतापपुर में एक पुलिस छापे के दौरान उनके पैतृक घर से कई अवैध आधुनिक हथियार, सेना के नाइट विजन डिवाइस और पाकिस्तानी शस्त्र फैक्ट्रियों में बने हथियार बरामद हुए थे। हत्या, अपहरण, बमबारी, अवैध हथियार रखने और जबरन वसूली करने के दर्जनों मामले शहाबुद्दीन पर हैं। अदालत ने शहाबुद्दीन को उम्रकैद की सजा सुनाई थी।
चुनाव लड़ने पर रोक
अदालत ने 2009 में शहाबुद्दीन के चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी। उस वक्त लोकसभा चुनाव में शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब ने पर्चा भरा था।लेकिन वह चुनाव हार गई। उसके बाद से ही राजद का यह बाहुबली नेता सीवान के मंडल कारागार में बंद था।
शहाबुद्दीन पर एक साथ कई मामले चल रहे हैं और कई मामलों में उन्हें सजा सुनाई जा चुकी है। कहा जाता था कि चुनाव में भी शहाबुद्दीन सीवान में लोगों तक अपना संदेश पहुंचा देते थे कि उन्हें किसे वोट देना चाहिए और किसे नहीं। कहा जाता है कि भले ही शहाबुद्दीन जेल में हों लेकिन उनका रूतबा आज भी सीवान में कायम है।
चार बार सांसद व दो बार विधायक
10 जुलाई 1967 को जन्मे शहाबुद्दीन सीवान से चार बार सांसद रह चुके हैं। इसके अलावा उन्होंने दो बार बिहार विधानसभा चुनाव में भी जीत दर्ज की ।
राजद कार्यकारिणी में जगह मिलने पर हंगामा
जेल में बंद पूर्व सांसद मो. शहाबुद्दीन को राष्ट्रीय जनता दल की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में जगह मिलने पर हंगामा मचा हुआ है। शहाबुद्दीन को लंबे अरसे के बाद कमेटी में शामिल किया गया है। पूर्व सांसद शहाबुद्दीन को कार्यकारिणी में जगह मिलने के बाद विपक्ष ने आरजेडी पर हमला बोला ।
बीजेपी नेता और पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी ने कहा कि शहाबुद्दीन लालू के चहेते हैं। जो व्यक्ति सजायाफ्ता है और पंचायत तक का चुनाव नहीं लड़ सकता उसे राजद की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में जगह दी गई । वहीं बीजेपी के इस हमले का पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने जवाब दिया और कहा कि उन्हें पहले अपने गिरेबान में झांक कर देखना चाहिए। सिवान के बाद अब भागलपुर जेल में रह रहे शहाबुद्दीन राजद के जिस बाहुबली नेता मो. शहाबुद्दीन का सीवान में लोग नाम भी लेने से डरते थे और उसे साहेब कहकर बुलाते थे, आज वह जेल में एक मच्छरदानी के लिए तरस रहे हैं। जर्नलिस्ट राजदेव रंजन हत्याकांड में नाम उछलने और सीवान जेल में जनता दरबार लगाने के बाद शहाबुद्दीन को भागलपुर के विशेष केंद्रीय कारा के तृतीय खंड (अंडा सेल) में रखा गया है।