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आसान नहीं मांझी के लिए अपने कुनबे को संभालना

मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के बाद बिहार में महादलित स्वाभिमान के प्रतीक बन चुके जीतन राम मांझी के लिए आगे का रास्ता आसान नजर नहीं आता, क्योंकि मांझी के छोटे से कुनबे में तरह-तरह की राजनीतिक विचारधाराएं एक साथ प्रबल दिख रही हैं।

By Amit AlokEdited By: Published: Sun, 24 May 2015 02:16 PM (IST)Updated: Sun, 24 May 2015 02:24 PM (IST)
आसान नहीं मांझी के  लिए अपने कुनबे को संभालना

पटना [राजीव रंजन]। मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के बाद बिहार में महादलित स्वाभिमान के प्रतीक बन चुके जीतन राम मांझी के लिए आगे का रास्ता आसान नजर नहीं आता, क्योंकि मांझी के छोटे से कुनबे में तरह-तरह की राजनीतिक विचारधाराएं एक साथ प्रबल दिख रही हैं। मांझी के सामने एक तरफ भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आकर्षण है तो दूसरी तरफ राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद का सम्मोहन भी। सबसे अजीब स्थिति तो यह कि मांझी खेमे में इन दोनों विचारधाराओं से इत्तेफाक रखने वाले नेताओं का समूह मौजूद है और दोनों के अपने-अपने राजनीतिक तर्क हैं। मांझी पहले ही स्पष्ट चुके हैं कि नीतीश कुमार के होते हुए वे राजद-जदयू के संभावित गठबंधन में शामिल नहीं होंगे। अगर कोई ऐसी परिस्थिति बनी कि यह संभावित गठबंधन आकार नहीं लेता है तब राजद के साथ मांझी के जाने की संभावना बन सकती है।

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जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) का राजनीतिक अस्तित्व अभी सामने नहीं आया है। हालांकि उन्होंने विगत 19 मई को ही अपनी पार्टी को राजनीतिक दल की मान्यता प्रदान करने के लिए चुनाव आयोग के समक्ष आवेदन पेश कर दिया है। चुनाव आयोग के प्रावधानों के अनुसार इस काम में अभी डेढ़ से दो महीने का समय लग सकता है। ऐसे में मांझी के समर्थन में खड़े उनके इस छोटे से कुनबे के बिखरने का खतरा मंडराने लगा है। मांझी समर्थक कई विधायक व पूर्व मंत्री भाजपा के पक्ष में हैं, जबकि कुछ पुराने समाजवादी नेताओं का झुकाव राजद सुप्रीमो की ओर है। लालू खुद मांझी को अपने साथ आने का निमंत्रण दे चुके हैं। जबकि मांझी खुद बिहार की सत्ता में रहते हुए और सत्ता से बाहर होने के बाद लगातार कई मौकों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिल चुके हैं और सार्वजनिक सभाओं में उनकी तारीफ भी कर रहे हैं। जाहिर है, भाजपा की तरफ जाने का फैसला लेना मांझी के लिए तब मुश्किलें खड़ी कर सकता है जब उनके पुराने समाजवादी साथी इसे हजम नहीं कर पाएं। इसके कई कारण भी हैं। पहला यह कि मांझी के समाजवादी साथियों को भाजपा के साथ जाना मंजूर नहीं होगा और दूसरा यह कि अगर वे भाजपा की तरफ जाते भी हैं तो भाजपा मांझी के समाजवादी साथियों को हजम नहीं कर पाएगी।


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