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फ्लैशबैक : तब 'साहेब' के 'न्याय' से सिहर उठा था सिवान, जानिए...

सिवान में शहाबुद्दीन (साहेब) का आदेश पत्थर की लकीर होती थी। उनके विरोध में उठी आवाज को बेदर्दी से दबा दिया जाता था। चर्चित तेजाब कांड में भी कुछ ऐसा ही हुआ था। जानिए पूरी सच्चाई...

By Amit AlokEdited By: Published: Fri, 30 Sep 2016 11:30 AM (IST)Updated: Fri, 30 Sep 2016 10:36 PM (IST)
फ्लैशबैक : तब 'साहेब' के 'न्याय' से सिहर उठा था सिवान, जानिए...
फ्लैशबैक : तब 'साहेब' के 'न्याय' से सिहर उठा था सिवान, जानिए...

पटना [अमित]। सिवान के प्रतापपुर गांव में दो भाइयों के लिए उस रात की सुबह नहीं हो सकी। उनपर कहर टूट पड़ा। छोड़ देने की उनकी गुहार के बीच भारी आवाज में आदेश, ...और फिर वही हुआ, जिसकी कल्पना मात्र से ही रोम-रोम सिहर उठे।

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दोनों भाइयों को सरेआम तेजाब से नहलाया जाने लगा। झुलसते हुए दोनों बुरी तरह तड़पते रहे, लेकिन मदद के लिए कोई आगे नहीं आया। अंतत: दोनों की मौत हो गई। अब हत्याकांड के साक्ष्य को छिपाने की बारी थी। इसे भी बखूबी अंजाम दिया गया।

इस अपराध के लिए मिली उम्रकैद

जेल में बंद पूर्व सांसद शहाबुद्दीन काे 'न्याय' के नाम पर किए गए इस अपराध के लिए उम्रकैद की सजा सुनाई जा चुकी है। हालांकि, शहाबुद्दीन ने इस आरोप को कभी स्वीकार नहीं किया। बचाव पक्ष की दलील है कि वारदात के समय वे जेल में थे। पर, अदालत ने इस दलील को नहीं माना।

अब गवाह हत्याकांड में बेल रद

तेजाब से नहलाकर हत्या की इस वारदात को मारे गए दोनों भाइयों के भाई राजीव रौशन ने देखा था। बाद में उसकी भी सिवान में गोली मारकर हत्या कर दी गई। इस गवाह हत्याकांड में मिली बेल को आज सुप्रीम कोर्ट ने रद कर दिया।

साहेब का फरमान पत्थर की लकीर

दरअसल, सिवान में शहाबुद्दीन (साहेब) की अपनी न्याय व्यवस्था थी। साहेब का फरमान 'रियाया' के लिए पत्थर की लकीर होती थी। वे अपना दरबार लगा न्याय करते थे। उनके आदमी भी पंचायत लगा न्याय करने में पीछे नहीं रहते थे।

तेजाब हत्याकांड : घटनाक्रम पर एक नजर

सिवान के गौशाला रोड स्थित व्यवसायी चन्द्रकेश्वर प्रसाद उर्फ चंदा बाबू को वो दिन भूले नहीं भूलता। 16 अगस्त 2004 की सुबह उनकी दुकान पर आए कुछ गुंडों ने उनके बेटों से रंगदारी मांगी। इसी बीच बाहर से आए कुछ लोगों ने धमकी दी। विवाद बढ़ा तो मारपीट हो गई।

बताया जाता है कि इसके बाद व्यवसायी के परिजन घर में भागे। उन्होंने वहां रखे तेजाब को गुंडों पर फेंक दिया, जिससे उनमें से कुछ जख्मी हो गए। इसके बाद चंदा बाबू के तीन पुत्रों गिरीश, सतीश व राजीव का अपहरण कर लिया गया। अपहृतों की मां के बयान पर अज्ञात के विरुद्ध अपहरण का मामला दर्ज कराया गया। लेकिन, उन्हें तो शहाबुद्दीन के गांव प्रतापपुर पहुंचा दिया गया था।

फिर शुरू हुआ जेल में बंद 'साहब' का इंतजार। शाम के धुंधलके में साहब आए (आए तो कैसे आए, यह अलग सवाल है) और अपने अंदाज में अपना 'न्याय' कर दिया। सतीश व गिरीश को तेजाब से नहलाकर मार डाला गया। फिर, उनके टुकड़े-टुकड़े कर नमक भरी बोरियों में डाल फेंक दिया गया। इस बीच किसी तरह भागने में कामयाब तीसरे भाई राजीव रौशन ने इस घटना को देखा था। हालांकि, बचाव पक्ष उनके जेल से बाहर आने से इंकार करता रहा है।

मामले के विचारण के दौरान वर्ष 2010-11 में अपहृतों के बड़े भाई राजीव रौशन ने बतौर चश्मदीद गवाह मंडल कारा में गठित विशेष अदालत में कहा था कि उसकी आंखों के सामने उसके दोनों भाईयों की हत्या शहाबुद्दीन के आदेश पर प्रतापपुर गांव में कर दी गई थी। वह किसी तरह वहां से जान बचाकर भागा था और गोरखपुर में गुजर-बसर कर रहा था।

चश्मदीद राजीव रौशन के बयान पर तत्कालीन विशेष लोक अभियोजक सोमेश्वर दयाल ने हत्या एवं षड्यंत्र को ले नवीन आरोप गठन करने का विशेष अदालत से निवेदन किया। विशेष अदालत ने न्याय प्रक्रिया में उठाए गए कदमों को विलंबित करार देते हुए खारिज कर दिया। तत्पश्चात उच्च न्यायालय के आदेश पर पूर्व सांसद मो. शहाबुद्दीन के विरुद्ध आरोप गठित किए गए।

मामले में पुन: साक्ष्य प्रारंभ हुआ और साक्ष्य के दौरान 16 जून 2014 को चश्मदीद राजीव रौशन की भी हत्या कर दी गई। फिर 09 दिसंबर को विशेष अदालत ने शहाबुद्दीन को इस मामले में दोषी करार देते हुए 11 दिसंबर 2015 को उम्रकैद की सजा दी।

शहाबुद्दीन ने तेजाब हत्याकांड में निचली अदालत के फैसले को चुनौती दी। इस बीच उन्हें एक-एक कर सभी मामलों में बेल मिलती गई। अंतत: तेजाब हत्याकांड के गवाह राजीव रौशन हत्याकांड में भी बेल मिलने के बाद वे जेल से रिहा होकर सिवान पहुंच गए हैं।

अपराध की दुनिया में जमते गए कदम

1967 में 10 मई को जन्म, कच्ची उम्र में ही अपराध की दुनिया में पड़ गए कदम।

18-19 साल की उम्र में 1985 में दर्ज हुआ पहला मुकदमा।

08 मामलों में हो चुकी सजा।

इन मामलों में सजा हुई

2003 में डीपी ओझा के डीजीपी बनने के बाद शहाबुद्दीन पर शिकंजा कसता गया। उनके मुकदमों पर तेजी से कार्रवाई होने लगी। आगे 6 नवंबर 2005 को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। तब से वे जेल में हैं। उन्हें इन मामलों में सजा मिल चुकी है -

2007 में छोटेलाल अपहरण कांड में उम्र कैद की सजा हुई

2008 में विदेशी पिस्तौल रखने के मामले में 10 साल की सजा

1996 में एसपी एसके सिंघल पर गोली चलाई थी, 10 साल की सजा

1998 में माले कार्यालय पर गोली चलाई थी, दो साल की सजा हुई

2011 में सरकारी मुलाजिम राजनारायण के अपहरण मामले में 3 साल की सजा

03 साल की सजा हुई है चोरी की बाइक बरामद में

01 साल की सजा हुई जीरादेई में थानेदार को धमकाने के मामले में

तेजाब कांड में शुक्रवार को मिली उम्रकैद की सजा

इन मामलों में बरी

डीएवी कॉलेज में बमबारी

दारोगा संदेश बैठा के साथ मारपीट के मामले में


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