बच्चे अगर मुंह फेर कर हंसने लगें तो समझो जंग हार गए
बात मोहब्बत की हो या सियासत की। विद्रोह की हो या नजाकत की।
पटना ( कुमार रजत)। बात मोहब्बत की हो या सियासत की। विद्रोह की हो या नजाकत की। उर्दू के महशूर शायर वसीम बरेलवी के शेर हमेशा याद आते हैं। भारतीय कविता समारोह में शिरकत करने पहुंचे वसीम बरेलवी ने ‘दैनिक जागरण’ से खास बातचीत की। शुरुआत संस्कारों से हुई।
बोले, युवाओं को बुजुर्गो के साथ बैठने की जरूरत हैं। उन्हें समझने की जरूरत है। अगर घर के बुजुर्गो की बात पर बच्चे मुंह फेर के हंसने लगें तो समझो जिंदगी की जंग हार गए। कविता और शायरी अगर ये काम करती है, तो इससे बढ़िया क्या हो सकता है। बदलते दौर में कविता और शायरी कितनी बदली है, पूछने पर उन्होंने कहा कि इंटरनेट ने एक बड़ा मंच मुहैया कराया है। नए और खासकर नौजवान शायरी की दुनिया से जुड़े हैं। वे खूब सुन रहे हैं, लिख भी रहे हैं। शहर में आयोजित कविता समारोह की तारीफ करते हुए वसीम बरेलवी ने कहा कि ऐसे आयोजन बहुत जरूरी है। उत्तर भारत के हिंद आर्यन और दक्षिण के द्रविडयन दो शैली के शायरों का संगम बेहतरीन है। बिहार सरकार इसके लिए तारीफ की हकदार है।