दिग्गज का जिला : दिलचस्प होगी नालंदा की लड़ाई
दो दशक पूर्व 1995 में जब समता पार्टी ने बिहार में पहला विधानसभा चुनाव लड़ा था तो उसके हिस्से में मात्र सात सीटें आईं। मगर सात में से पांच सीटें समता पार्टी के वरिष्ठ नेता नीतीश कुमार के गृह जिला नालंदा से ही मिलीं।
पटना [एसए शाद]। दो दशक पूर्व 1995 में जब समता पार्टी ने बिहार में पहला विधानसभा चुनाव लड़ा था तो उसके हिस्से में मात्र सात सीटें आईं। मगर सात में से पांच सीटें समता पार्टी के वरिष्ठ नेता नीतीश कुमार के गृह जिला नालंदा से ही मिलीं।समता पार्टी के अध्यक्ष जार्ज फर्नांडीस नालंदा से लगातार तीन बार लोकसभा चुनाव जीते और फिर नीतीश कुमार वहां से सांसद बने। तबतक समता का जदयू में विलय हो चुका था।
आजादी के बाद से अधिकांश समय कांग्रेस या भाकपा के कब्जे में रहा नालंदा पिछले 20 सालों से नीतीश कुमार का सुरक्षित किला माना जाता रहा है। इसका एक कारण जातीय समीकरण भी है। नालंदा में कुर्मी की बड़ी आबादी बस्ती है। मगर पिछले लोकसभा चुनाव में यहां का राजनीतिक समीकरण बिगड़ते-बिगड़ते बचा।
लोजपा के उम्मीदवार सत्यांनद शर्मा मात्र 9 हजार वोटों से हारे, जबकि 2009 के लोकसभा चुनाव में जदयू ने लोजपा प्रत्याशी सतीश कुमार को 1.46 लाख से अधिक वोटों से हराया था। पिछले विधानसभा चुनाव में नालंदा जिले की सात में से छह विधानसभा सीटें जदयू के हिस्से में आईं थीं, जबकि एक सुरक्षित सीट राजगीर भाजपा के हिस्से आयी। अब जबकि भाजपा ने नीतीश कुमार से नाता तोड़ लिया है, राजग ने नीतीश कुमार को उनके गृह जिले में ही घेरने की कोशिश शुरू की है।
इत्तेफाक से जदयू के दो विधायक, इस्लामपुर से राजीव रंजन और बिहार शरीफ से डा. सुनील कुमार पाला बदलकर भाजपा में आ चुके हैं। ऐसे में अब सात में से तीन सीटों पर भाजपा का प्रतिनिधित्व है। नालंदा जिले में अभी महागठबंधन के सबसे मजबूत योद्धा के रूप में नीतीश कुमार के करीबी माने जाने वाले संसदीय कार्य मंत्री श्रवण कुमार हैं, तो वहीं राजग की ओर से भाजपा में नई इंट्री करने वाले राजीव रंजन ने कमान संभाल रखी है। पहले वे भी जदयू में ही थे।
भाजपा में आने से पहले उन्होंने हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा का दामन थाम लिया था। पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने श्रवण कुमार की जगह रंजन को विधानसभा में सत्तारूढ़ दल का नेता नियुक्त किया था, मगर विधानसभा अध्यक्ष ने उन्हें मान्यता नहीं दी थी। जीतन राम मांझी के विश्वासमत हासिल करने के समय चली राजनीतिक उथल-पुथल के दौरान रंजन खुद को सत्तारूढ़ दल का नेता मान बहुत सक्रिय भी थे। इत्तफाक से ये दोनों ही योद्धा अभी नालंदा में एक दूसरे के आमने सामने हैं। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि 1995 में यहीं से नीतीश कुमार के पक्ष में गोलबंदी शुरू हुई।
इस गोलबंदी को तोडऩा राजग के लिए सहज नहीं होगा। पिछले लोकसभा चुनाव में भी भले ही नीतीश कुमार प्रदेश में कमजोर हुए लेकिन नालंदा तक आते-आते नमो लहर बहुत धीमी हो गई, और इनका किला महफूज रहा। राजीव रंजन की मानें तो राजग भ्रष्टाचार के मुद्दे को लेकर आगे बढ़ेगा। साथ ही शराब के कारण पनप रही सामाजिक बुराइयों को भी मुद्दा बनाया जाएगा। इस्लामपुर और नालंदा, इन दो विधानसभा क्षेत्रों में शराब चुलाने के काम में भी बड़ी संख्या में ग्रामीण लगे हैं।
राजगीर विधानसभा क्षेत्र के नानंद गांव के निवासी मनोज कुमार के मुताबिक, लोकसभा चुनाव में लोग बंटे थे, परन्तु इस विधानसभा चुनाव में क्या होगा, कहा नहीं जा सकता है। नालंदा के दो विधानसभा क्षेत्र- बरबीघा और इस्लामपुर, यादव बहुल हैं, और यहां का रुझान शेष पांच विधानसभा क्षेत्रों के लिए इस कारण बहुत अहम होगा, क्योंकि इस बार नीतीश कुमार और लालू प्रसाद साथ-साथ चुनाव लड़ रहे हैं। उनके मुताबिक, यहां पावापुरी में मेडिकल कालेज के अलावा नालंदा अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना भी इस बार चुनावी नारों में जगह पाएगी।