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BSEB मैट्रिक रिजल्ट: यदि नहीं मिलता ग्रेस, तो लाखों छात्र हो जाते फेल

इस साल मैट्रिक परीक्षा को कदाचारमुक्त रखने की कोशिश की गई, जिसके कारण बेहद कम छात्र पास हो रहे थे। यदि छात्रों को ग्रेस अंक नहीं दिया जाता तो मात्र 35 से 37 फीसद पास होते।

By Ravi RanjanEdited By: Published: Fri, 23 Jun 2017 01:01 PM (IST)Updated: Fri, 23 Jun 2017 11:55 PM (IST)
BSEB मैट्रिक रिजल्ट: यदि नहीं मिलता ग्रेस, तो लाखों छात्र हो जाते फेल
BSEB मैट्रिक रिजल्ट: यदि नहीं मिलता ग्रेस, तो लाखों छात्र हो जाते फेल

पटना [नीरज कुमार]। बिहार विद्यालय परीक्षा समिति ने इस बार परीक्षा के फॉर्म भरने से लेकर कॉपी चेक करने तक की व्यवस्था को कदाचारमुक्त रखने की कोशिश की। परीक्षा के दौरान भी नकल रोकने के लिए विशेष कैमरे लगा गए। वीडियोग्राफी भी कराई गई। कॉपियों की बार कोडिंग हुई। नतीजा, रिजल्ट इंटर की परीक्षा की तरह ही रहा।

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बोर्ड सूत्रों के अनुसार अगर ग्रेस अंक नहीं दिए जाते तो महत 35 से 37 फीसद रिजल्ट होता। इंटर के रिजल्ट के बाद छात्रों और विपक्ष का हमला झेल रहे बोर्ड ने इस स्थिति से बचने के लिए ग्रेस अंक का सहारा लिया। 

पहले पांच से सात अंक मिलता था ग्रेस

बोर्ड परीक्षा में पहले अधिकतम पांच से सात अंक तक ग्रेस देने का प्रावधान था लेकिन उससे अधिक ग्रेस देने के लिए नियमों में बदलाव करना अनिवार्य था। बोर्ड ने नियमों में बदलाव किया और शिक्षा विभाग से इसके लिए सहमति ली। उसके बाद गुरुवार को रिजल्ट जारी किया गया। कितने अधिक अंक ग्रेस के रूप में दिए गए हैं, इसका खुलासा बोर्ड नहीं कर रहा।

पहले 35-37 फीसद था रिजल्ट 

बोर्ड सूत्रों का कहना है कि बिना ग्रेस के मैट्रिक में 35 से 37 फीसद परीक्षार्थी सफलता प्राप्त कर रहे थे। इसके पूर्व बोर्ड द्वारा जारी इंटर के रिजल्ट में मात्र 30 फीसद छात्र सफल हुए हैं। इंटर के रिजल्ट को लेकर अभी छात्रों का प्रदर्शन जारी है और सरकार विपक्ष की आलोचना झेल रही है। ऐसे में मैट्रिक का रिजल्ट कम करने का साहस समिति नहीं जुटा पाई। 

कदाचार रोकने में तकनीक बनी कारगर 

इस वर्ष परीक्षा में कदाचार रोकने में बिहार विद्यालय परीक्षा समिति ने हर स्तर पर तकनीक का उपयोग किया। फॉर्म भरने से लेकर रिजल्ट जारी करने तक तकनीक का उपयोग किया गया। इस वर्ष ऑनलाइन फॉर्म भरने की व्यवस्था की गई थी। इससे एक परीक्षार्थी को दो जगहों से फॉर्म भरने का मौका नहीं मिला। फॉर्म भरने की जिम्मेदारी प्राचार्यों को सौंपी गई थी ताकि उम्र या नाम में परीक्षार्थी बार-बार बदलाव न कर सकें। 

 प्री एग्जाम व पोस्ट एग्जाम का सॉफ्टवेयर अलग  

 बिहार विद्यालय परीक्षा समिति द्वारा इस वर्ष प्री एग्जाम एवं पोस्ट एग्जाम के लिए अगल-अलग सॉफ्टवेयर तैयार किए गए थे। यानी परीक्षा के पूर्व जिस साफ्टवेयर का उपयोग किया गया था, उस साफ्टवेयर का उपयोग परीक्षा के बाद की प्रक्रिया में नहीं किया गया।

इससे परीक्षा में शामिल कर्मचारियों को भी पता नहीं चला कि किस केंद्र की कॉपी कहां गई है। इससे परीक्षा के बाद होने वाले कदाचार को रोकने में मदद मिली। मैट्रिक की परीक्षा के लिए परीक्षा हॉल में कैमरे लगाए गए थे। इसके अलावा प्रत्येक केंद्र की वीडियोग्राफी कराई गई।

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कॉपियों की बार कोडिंग 

परीक्षा प्रणाली में सुधार को लेकर बोर्ड का सबसे बड़ा कदम था कॉपियों की बार कोडिंग करना। बोर्ड ने इस बार मैट्रिक की सभी कॉपियों की बार कोडिंग कराई थी, कॉपियों की जांच में होने वाली धांधली पर रोक लगाने में बहुत हद तक मदद मिली। इस कार्य को देखने के लिए बोर्ड द्वारा प्रत्येक जिले में एडीएम स्तर के एक अधिकारी को सीक्रेट अफसर नियुक्त किया गया था। 

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