बापू के प्रपौत्र ने तुषार ने कहा, मुल्क के जेहन पर हावी हो रहे गांधी के हत्यारे
गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी ने पटना में चंपारण सत्याग्रह समारोह के तहत आयोजित परिचर्चा को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि आज गांधी के हत्यारों की विचारधारा हावी हो रही है।
पटना [जेएनएन]। महात्मा गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी ने पटना के ज्ञान भवन में कहा कि जिस विचारधारा ने बापू का खून किया, वह मुल्क के जेहन पर हावी हो रही है। निजी एजेंडे को राष्ट्रप्रेम का चोला पहनाया जा रहा है। गाय, राम, लव जिहाद आदि उछालने वालों को इनसे कोई लगाव नहीं है। वे अपने राजनीतिक फायदे के लिए इनका नाम ले रहे हैं। वे चंपारण सत्याग्रह के शताब्दी समारोह में 'महात्मा गांधी और युवकों को संदेश' विषय पर आयोजित परिचर्चा की अध्यक्षता कर रहे थे।
उन्होंने कहा, जिनकी भागीदारी स्वतंत्रता संग्राम में नहीं थी या जो अंग्रेजों की गोद में बैठे थे और संग्राम को कमजोर कर रहे थे, उनकी सच्चाई छुपाने के लिए ऐसी आवाज उठाई जा रही है। जिन्होंने गांधी की हत्या की, उसे उचित ठहराने के लिए 60 साल से दलील दे रहे हैं और अब भी भ्रम फैला रहे हैं।
तुषार ने कहा कि प्रजातंत्र में प्रश्न नहीं पूछे जाएंगे तो वहां तानाशाही हो जाएगी। देश में अभी समांतर आंदोलन की जरूरत है। यह तब संभव है, जब युवा स्वेच्छा से इसमें जुड़ेंगे। उन्होंने युवाओं से कहा कि सत्याग्रह का सही इतिहास जानिए। टेक्स्ट बुक में गांधी के बारे में जो आपने पढ़ा है, उसे भूल जाइए। उनकी आत्मकथा और 'हिंद स्वराज' पढि़ए।
उन्होंने कहा कि क्रांतिकारियों और सत्याग्रहियों में कोई अंतर नहीं था। अंतर वे पैदा कर रहे हैं, जो इन दोनों से उस समय दगाबाजी कर रहे थे। उन्हें पहचानिए।
इन्होंने भी दिए विचार
कार्यक्रम में अनुराग चतुर्वेदी ने कहा कि लोहिया, जेपी, किशन पटनायक आदि समाजवादियों ने गांधी के सत्याग्रह को आगे बढ़ाया। गांधी ने युवाओं और महिलाओं को हमेशा तरजीह दी। अनुराग ने महावीर त्यागी को कहे गए गांधी के शब्दों का उल्लेख किया, 'मित्रता का अर्थ है एक-दूसरे के खोट को निभाना। हिंदू-मुसलमान को साथ रहना है तो एक-दूसरे के खोट को निभाना होगा।'
जेएनयू के सौरभ वाजपेयी ने कहा कि सोशल मीडिया ने गांधी और युवाओं के बीच दीवार खड़ी की। गांधी अपने अंदर से स्त्री-पुरुष के अंतर को मिटाना चाहते थे। उनकी विश्वसनीयता खत्म करने के लिए उनके चरित्र पर लांछन लगाया जा रहा है। सच यह है कि क्रांतिकारी आपस में एक-दूसरे से नहीं, आपस में एक होकर अंग्रेजों से लड़ रहे थे। आज देशभक्ति की परिभाषा बदली जा रही है। सौरभ ने कहा कि वहां सवाल पूछना और तर्क करना सिखाया जाता है। आप सच न जानें और सवाल न पूछने लगें, इसलिए जेएनयू को बदनाम किया जा रहा है।
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प्रभात घोष ने कहा, गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में ही समझ लिया था कि अंग्रेजों से लडऩा है तो हिंदुओं और मुसलमानों को एक होना होगा। राष्ट्रीयता की विचारधारा में कोई भेदभाव नहीं हो सकता।
प्रेरणा देसाई ने कहा कि जवानी उम्र नहीं, सोच है। गांधी के साथ उस युग के सभी उच्च श्रेणी के लोग जुड़े। अहिंसा और सत्याग्रह में इंसान खुद ही हथियार होता है। गांधी ने सिखाया कि न डरना और न डराना, जरूरत से ज्यादा नहीं रखना, मारेंगे नहीं और मानेंगे नहीं एवं शुरुआत खुद से करें।
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