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आइएएस एसएम राजू सहित चार को जमानत नहीं

पटना । अनुसूचित जाति एवं जनजाति छात्रों की छात्रवृति घोटाले के मामले में निगरानी के विशेष

By JagranEdited By: Published: Sat, 29 Apr 2017 03:04 AM (IST)Updated: Sat, 29 Apr 2017 03:04 AM (IST)
आइएएस एसएम राजू सहित चार को जमानत नहीं
आइएएस एसएम राजू सहित चार को जमानत नहीं

पटना ।

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अनुसूचित जाति एवं जनजाति छात्रों की छात्रवृति घोटाले के मामले में निगरानी के विशेष न्यायाधीश मधुकर कुमार ने शुक्रवार को अनुसूचित जाति एवं जनजाति कल्याण विभाग के तत्कालीन सचिव आइएएस अधिकारी एसएम राजू, तत्कालीन विशेष सचिव सुरेश पासवान, तत्कालीन अनुमंडल कल्याण पदाधिकारी विधान चन्द्र राय और तत्कालीन प्रखंड कल्याण पदाधिकारी संजय कुमार के अग्रिम जमानत आवेदन को खारिज कर दिया। निगरानी के विशेष लोक अभियोजक विजय कुमार सिन्हा व कनीय विशेष लोक अभियोजक आनन्दी सिंह ने अपनी दलील में कोर्ट को विस्तार से घोटाले की जानकारी दी। उन्होंने दलील में कहा कि देश के विभिन्न तकनीकी संस्थानों में पढ़ रहे बिहार के अनुसूचित जाति व जनजाति के छात्रों को विभाग द्वारा छात्रवृति दी जाती थी। तत्कालीन सचिव एसएम राजू ने षडयंत्र के तहत अधिसूचना जारी किया कि तकनीकी संस्थानों के अलावा भी सामान्य विषयों में अनुसूचित जाति एवं जनजाति के छात्रों को भी छात्रवृत्ति मिलेगी। सामान्य विषयों में पढ़ रहे छात्रों को जिला स्तर से छात्रवृति का भुगतान किया जाएगा जबकि तकनीकी संस्थानों के छात्रों को छात्रवृति मुख्यालय से मिलेगी। जब घोटाला उजागर हुआ तब निगरानी विभाग ने 28 नवंबर 2016 को प्राथमिकी दर्ज कर जांच प्रारंभ की।

जांच के दायरे में देश के 34 तकनीकी शिक्षण संस्थान आए। प्रारंभ में आन्ध्रप्रदेश स्थित गंटूर इंजीनिय¨रग कालेज व विशाखापट्टनम स्थित गोना इंस्टीच्यूट ऑफ इन्फॉरमेशन टेक्नोलॉजी संस्थान की जांच की गई तो पाया कि कॉलेज द्वारा विभाग को भेजी गई छात्रों की सूची के मद्देनजर विभाग ने गंटूर इंजीनिय¨रग कॉलेज को 27.71 लाख व गोना को 26.08 लाख रुपये दे दिये। जांच के क्रम में पाया गया कि कॉलेजों द्वारा विभाग को छात्रों की जो सूची भेजी गई उस सूची में छात्रों का अंक प्रमाण तथा अन्य आवश्यक कागजात संलग्न ही नहीं था। बावजूद इसके छात्रवृति की राशि दे दी गई। इतना ही नहीं छात्रों ने कॉलेज में नामांकन तो कराया लेकिन परीक्षा दी या नहीं इसका प्रमाण कॉलेज के पास भी नहीं था। कई ऐसे भी छात्र हैं जिन्होंने कॉलेज में नामांकन कराया और नाम कटवाकर अपने-अपने घर चले गये। छात्रवृत्ति की राशि इन छात्रों को न मिलकर आरोपियों ने ही आपस में बांट ली।

लोक अभियोजकों ने अदालत को बताया कि अनेक छात्रों ने निगरानी की पूछताछ में कबूल किया है कि दलालों ने यह कहकर संस्थान में नामांकन करा दिया कि दाखिले में एक पैसा भी नहीं लगेगा। छात्रों ने बताया कि हम लोगों का संस्थान में जैसे ही नामांकन हुआ दलाल लोग रुपये की मांग करने लगे। इस वजह से हम लोग अपने-अपने घर भाग गए। जब हम लोगों को छात्रवृत्ति के रुपये ही नहीं मिले तब दलाल लोगों को कहां से देते। कुछ छात्रों ने निगरानी अधिकारी के समक्ष कबूल किया है कि उन्होंने भाषा की समस्या उत्पन्न होने की वजह से अपना नाम कॉलेज से कटवा लिया।

लोक अभियोजकों ने विशेष अदालत को जानकारी दी कि पूरे देश में इसके लिये रैकेट काम कर रहा है। अभी दो कॉलेजों की प्रारंभिक जांच हुई है। 32 अन्य संस्थानों की जांच होनी बाकी है। छात्रवृत्ति मामले में जिस तरह से घोटाला सामने आ रहा है उसे देखते हुए अनुमान लगाया जा रहा है कि यह घोटाला अरबों रुपये का है। लोक अभियोजकों ने अदालत को जानकारी दी कि सभी आरोपी फरार हैं। आरोपी अनुसंधान में मदद नहीं कर रहे हैं।

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हत्या मामले में दो भाइयों सहित तीन को उम्रकैद :

न्यायालय संवाददाता, पटना :

एक हत्या मामले में पटना सिटी व्यवहार न्यायालय के एडीजे कमरुल होदा ने शुक्रवार को गौरीचक थाना क्षेत्र के तेतरी निवासी महेश मांझी और रामप्रवेश मांझा तथा अलाउद्दीनचक निवासी रामदहीन मांझा को उम्रकैद की सजा सुनाई। महेश और रामप्रवेश सगे भाई हैं। बताया जाता है कि 22 जुलाई 2010 को तेतरी गांव के निवासी भीम मांझी की आरोपियों ने गला काट कर हत्या कर दी थी। हत्या का कारण यह था कि भीम ने मजदूरी बढ़वाने के लिये मजदूरों की हड़ताल करवाई थी।


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