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बिहार में शराबबंदी कानून कितना कारगर, जब पुलिस और आलाधिकारी ही उड़ा रहे मजाक

बिहार में पूर्ण शराबबंदी तो हो गई लेकिन क्या इसके लिए जो कानून बनाए गए हैं वे कारगर हैं , निष्पक्ष रूप से लागू हो रहे हैं? यह एक अहम सवाल है।

By Kajal KumariEdited By: Published: Tue, 31 May 2016 09:30 AM (IST)Updated: Wed, 01 Jun 2016 06:22 PM (IST)
बिहार में शराबबंदी कानून कितना कारगर, जब पुलिस और आलाधिकारी ही उड़ा रहे मजाक

पटना [ काजल ]। बिहार में पूर्ण शराबबंदी तो हो गई लेकिन क्या इसके लिए जो कानून बनाए गए हैं वे कारगर हैं , निष्पक्ष रूप से लागू हो रहे हैं? इस कानून की अाड़ में यदि धंधेबाजी शुरू कर दी जाए और आम जनता को ही परेशान किया जाए तो इस कानून का क्या मतलब?

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बिहार में शराबबंदी कानून जहां अब कुछ अधिकारियों और पुलिसकर्मियों के लिए कमाई का जरिया बन गया है तो कुछ लोगों को इसके जरिए जान बूझकर रसूख का हवाला दिखाकर परेशान भी किया जा रहा है। एेसे में इस कानून की प्रासंगिकता कटघरे में खड़ी दिख रही है।

शराबबंदी कानून के तहत ताबड़तोड़ छापेमारी कर तरह-तरह के शराब जब्त किये जा रहे हैं तो इसमें लोगों को सेवन करने और घर में शराब रखने के आरोप में लोगों को गिरफ्तार भी किया गया है। लोगों में भी कानून का डर व्याप्त है लेकिन इस कानून के तहत कुछ बेगुनाह या दूसरे प्रदेशों से आए लोगों पर भी कार्रवाई की गई।

इधर हाल के दिनों में पुलिस और उत्पाद विभाग के कुछ अधिकारियों ने शराबबंदी के लिए लागू नए कानून को ठेंगा दिखाते हुए इसकी आड़ में अपनी कमाई का जरिया बना लिया है और कहीं लोगों को परेशान किया जा रहा है।

पिछले शनिवार को बिहार के भोजपुर जिले के एक डॉक्टर और उनके कंपाउंडर को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। उनपर आरोप था कि उन्होंने शराब पी रखी थी और नशे की हालत में गाड़ी चला रहे थे। उनपर आरा के एसडीओ और उनके कांस्टेबल ने यह आरोप लगाया था।

पुलिस ने डॉक्टर शत्रुघ्न प्रसाद और उनके कंपाउंडर अनिल प्रसाद को शराबबंदी कानून का उल्लंघन करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। लेकिन जब बाद में उनकी जांच की गई तो पता चला कि दोनों ने शराब नहीं पी थी। बाद में पता चला कि दरअसल वे आरा के एसडीओ की गाड़ी को ओवरटेक कर रहे थे और इसीलिए उन्होंने शराब पीकर गाड़ी चलाने का आरोप लगा दिया।

दूसरी घटना अठारह मई की है जहां पुलिस और उत्पाद निरीक्षक अधिकारियों ने पंजाब से कोलकाता जा रहे तीन उद्योगपतियों को कैमूर के राष्ट्रीय उच्चपथ संख्या 2 पर उनकी कार में रखी दो शराब की बोतलों के साथ पकड़ लिया और कहा कि राज्य में शराब निषेध है और आपकी कार में दो बोतल शराब जब्त की गई हैं अब आपको शराबबंदी के कानून के तहत दस साल की सजा होगी।

पुलिस ने कहा कि अगर आप पचास हजार जुर्माना भरें तो आपको छोड़ दिया जाएगा। उन व्यवसायियों के पास उस वक्त पचास हजार रूपए थे नहीं तो उन्होंने एटीएम से पचास हजार रुपए लाकर दिए तब उन्हें छोड़ा गया।

उन व्यवसायियों में से एक सतनाम सिंह ने इसकी सूचना कैमूर की डीएसपी हरप्रीत कौर को दे दी। डीएसपी ने इस बारे में तुरत एक्शन लेते हुए उन पुलिसकर्मियों और अधिकारियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की और तीन नामजद लोगों जिसमें दो सैप के जवान और एक उत्पाद विभाग के अधिकारी को जबरन वसूली के आरोप में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया।

इस मामले में डीएसपी ने कहा कि मामले में पांच अन्य लोगों की तलाशी की जा रही है, जो फरार चल रहे हैं।डीएसपी हरप्रीत कौर ने कहा कि एेसे मामले में पैनी नजर रखने की जरूरत है। जो भी अधिकारी या पुलिसकर्मी एेसी हरकत करते पाए जाएंगे उन्हें बख्शा नहीं जाएगा।

एेसे ही कुछ दिनों पहले 27 अप्रैल को गुजरात के सात व्यवसायी जो एक शादी समारोह में शामिल होने पटना आए थे और जिस होटल में वे रूके थे उसमें छापेमारी कर शराब की बोतलें बरामद होने के बाद उन्हें गिरफ्तार कर दो सप्ताह के लिए जेल भेज दिया गया था। बाद में जमानत पर उन्हें छोड़ा गया। व्यवसायियों ने बताया था कि उन्हें नहीं पता था कि बिहार में शराबबंदी कानून लागू है।

आम आदमी के साथ ही बिहार के खास कांग्रेस के एमएलए विनय वर्मा ने भी आरोप लगाया कि उन्हें शराबबंदी कानून के उल्लंघन में फंसाकर बदनाम करने की कोशिश की गई। विनय वर्मा पर उत्पाद विभाग ने दो प्राथमिकी दर्ज करायी। उनपर आरोप लगाया गया कि उन्होंने कैमरे के सामने कहा है कि उनके घर में महंगी शराब की बोतल है। हालांकि छापेमारी के दौरान उनके घर से कोई शराब की बोतल बरामद नहीं हुई।

बाद में वर्मा ने हाइकोर्ट में अपनी जमानत की अर्जी दी और कहा कि मैंने कभी नहीं कहा कि मेरे घर में कोई शराब की बोतल है और ना ही मैंने किसी को शराब पीने का निमंत्रण दिया। मेरे उपर लगाए जा गए आरोप निराधार हैं।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शराबबंदी कानून को मुद्दा बनाकर आगामी लोकसभा का चुनाव लड़ने की सोच रहे हैं लेकिन क्या शराबबंदी को राष्ट्रीय मुद्दा बनाकर इसे सामाजिक आंदोलन बनाने में वे कामयाब होंगे जब उनके ही प्रदेश में पुलिस और आलाधिकारी इस कानून का माखौल बनाने में लगे हुए हैं।


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