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ओ गंगा तुम, ओ गंगा बहती हो क्यूँ ?

गंगा और उसकी सहायक नदियों ने जो इस बार अपना रौद्र रूप दिखाया है और जिससे तबाही मची है, इस तबाही के लिए कहीं-न-कहीं हम खुद जिम्मेवार हैं।

By Kajal KumariEdited By: Published: Fri, 26 Aug 2016 08:45 PM (IST)Updated: Sat, 27 Aug 2016 06:44 PM (IST)
ओ गंगा तुम, ओ गंगा बहती हो क्यूँ ?
ओ गंगा तुम, ओ गंगा बहती हो क्यूँ ?

पटना [काजल]। प्रकृति ने हमें जीने के लिए बहुत कुछ मुफ्त दिया है और हम स्वार्थी इंसानों ने कुछ भी उसे वापस लौटाने के बजाए उन प्राकृतिक संसाधनों का लगातार दोहन किया है, जिसका खामियाजा आज नहीं तो कल हमें ही भुगतना पड़ेगा।

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प्रकृति बार-बार आगाह कर रही है कि अब भी सुधर जाओ, नहीं सुधरे तो प्रलय झेलने के लिए तैयार रहो।पर्यावरण और वन मंत्रालय द्वारा जारी एक रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि 2030 तक देश को जलवायु परिवर्तन के गम्भीर परिणाम भुगतने होंगे।

बाढ़ और सूखे के कारण हमारा देश अनेक समस्याएं झेल रहा है। जलवायु परिवर्तन के कारण आने वाले समय में यह समस्याएं और ज्यादा बढ़ेंगी।

पूरे विश्व में पर्यावरण असंतुलन की वजह से ग्लोबल वॉर्मिंग, बाढ, भूकंप इत्यादि प्राकृतिक आपदाएं हर साल आ रही हैं। तब भी हम अपने पर्यावरण को बचाने के कोई खास उपाय नहीं कर रहे। अंधाधुध पेड़ों की कटाई, पहाड़ों पर बढती भीड़, जंगलों का सर्वनाश, नदियों को दूषित कर उनके तट पर बन रहे घर, कल-कारखानों की गंदगी, तमाम तरह के कूड़े कचरे नदियों में प्रवाहित कर रहे हैं। इन सबका खामियाजा तो हमें चुकाना ही पड़ेगा।

गंगा बहती हो क्यों.....

भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण नदी गंगा जो देश की प्राकृतिक संपदा ही नहीं, जन जन की भावनात्मक आस्था का आधार भी है। यह नदी भारत में पवित्र मानी जाती है तथा इसकी उपासना माँ और देवी के रूप में की जाती है। गंगा नदी विश्व भर में अपनी शुद्धीकरण क्षमता के कारण जानी जाती है। लंबे समय से प्रचलित इसकी शुद्धीकरण की मान्यता का वैज्ञानिक आधार भी है।

वैज्ञानिक मानते हैं कि इस नदी के जल में बैक्टीरियोफेज नामक विषाणु होते हैं, जो जीवाणुओं व अन्य हानिकारक सूक्ष्मजीवों को जीवित नहीं रहने देते हैं। नदी के जल में प्राणवायु (ऑक्सीजन) की मात्रा को बनाए रखने की असाधारण क्षमता है। किंतु इसका कारण अभी तक अज्ञात है।

एक राष्ट्रीय सार्वजनिक रेडियो कार्यक्रम के अनुसार इस कारण हैजा और पेचिश जैसी बीमारियाँ होने का खतरा बहुत ही कम हो जाता है, जिससे महामारियाँ होने की संभावना बड़े स्तर पर टल जाती है।यह घोर चिन्तनीय है कि गंगा-जल न स्नान के योग्य रहा, न पीने के योग्य रहा और न ही सिंचाई के योग्य। गंगा के पराभव का अर्थ होगा, हमारी समूची सभ्यता का अन्त।

सबके पाप धोती है गंगा

यह मान्यता भी है कि गंगा में स्नान करने से मनुष्य के सारे पापों का नाश हो जाता है। मरने के बाद लोग गंगा में राख विसर्जित करना मोक्ष प्राप्ति के लिये आवश्यक समझते हैं, यहाँ तक कि कुछ लोग गंगा के किनारे ही प्राण विसर्जन या अंतिम संस्कार की इच्छा भी रखते हैं।

इसके घाटों पर लोग पूजा अर्चना करते हैं और ध्यान लगाते हैं। गंगाजल को पवित्र समझा जाता है तथा समस्त संस्कारों में उसका होना आवश्यक है। पंचामृत में भी गंगाजल को एक अमृत माना गया है।

गंगा को हमने कर दिया है अपवित्र

गंगा नदी जिसे पुराणों में माता की संज्ञा दी गई है, जिसके जल को अमृत कहा गया है लेकिन आज इस अमृत को हमने कितना विषैला बना दिया है कि अब उसे हाथ में भी नहीं ले सकते। आज भी गंगा लाखों-करोड़ों की आबादी का भरण-पोषण का जरिया है। वो मां की तरह हमसे कुछ मांगती नहीं, सदैव हमें दिया ही है, लेकिन हमने उसे अाज इतना प्रदूषित कर दिया है कि कुछ सालों के बाद शायद यह बिहार से रूठकर चली जाएगी।

गंगा ने इस बार दिखा दिया है रौद्र रूप

इस बार गंगा ने जो अपना रौद्र रूप दिखाया है और जिस तरह से बिहार में तबाही मचाई है उसने सरकार को और हम सबको एक बार फिर से सोचने को मजबूर कर दिया है इसके साथ अब इंसाफ होना ही चाहिए।

बिहार में आई बाढ़ के कारण जनजीवन पूरी तरह अस्त व्यस्त हो गया है राज्य के बीस से ज्यादा जिले इसकी चपेट में हैं और लाखों की आबादी घरबार छोड़ने को मजबूर है। पहली नजर में यह कुदरत का कहर ही नजर आता है।

बाढ़ की वजह है बांधों का खराब प्रबंधन

बिहार में आई इस बार की बाढ का कारण है बांधों का खराब प्रबंधन। बारिश आने से पहले सालभर सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी रही और बांधों की गाद साफ करने के संबंध में कोई नीति या व्यवस्था नहीं बनाई गई नतीजतन थोड़ी सी बारिश में ही बांध ओवरफ्लो हो गए।

फरक्का बांध पर सिल्ट जमा होने से बिगड़े हालात

इसके अलावा बांधों से पानी छोड़ने में भी कोई व्यवस्था नहीं बनाई गई। बांधों के भरते ही एक साथ पानी छोड़ दिया गया जिससे बिना वजह राज्य में बाढ़ के हालात पैदा हो गए। इसमें से 19 अगस्त को पानी तब छोड़ा गया जब बांध पानी से 95.22 फीसदी तक भर गया। इसके बाद 18 में से 16 गेट एकदम खोल दिए गए जिससे गंगा यूपी बिहार के कई क्षेत्रों में ओवरफ्लो हो गई।

प्रकृति से छेड़छाड़ का है नतीजा

दरअसल प्रकृति के साथ जिस तरह का व्यवहार हम कर रहे हैं उसी तरह का व्यवहार वह भी हमारे साथ कर रही है। प्रकृति से छेड़छाड़ का नतीजा जलवायु परिवर्तन के किस रूप में हमारे सामने होगा, यह नहीं कहा जा सकता है। जलवायु परिवर्तन का एक ही जगह पर अलग-अलग असर हो सकता है। यही कारण है कि इस बार हम बाढ़ और बारिश का ऐसा पूर्वानुमान नहीं लगा पाए जिससे कि लोगों के जान-माल की पर्याप्त सुरक्षा की जा सकती।

भूपेन हजारिका ने पूछा....

विस्तार है अपार.. प्रजा दोनो पार.. करे हाहाकार...

निशब्द सदा ,ओ गंगा तुम, बहती हो क्यूँ ?

नैतिकता नष्ट हुई, मानवता भ्रष्ट हुई,

निर्लज्ज भाव से , बहती हो क्यूँ ?

इतिहास की पुकार, करे हुंकार,

ओ गंगा की धार, निर्बल जन को, सबल संग्रामी,

गमग्रोग्रामी,बनाती नहीँ हो क्यूँ ?

विस्तार है अपार ..प्रजा दोनो पार..करे हाहाकार ...

निशब्द सदा ,ओ गंगा तुम, बहती हो क्यूँ ?


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