सुभाष कश्यप ने विधायकों को पढाया पाठ, कहा- जनता से बड़े नहीं होते विधायक
संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप ने विधायकों से स्पष्ट कहा कि विधि के शासन में वह आम जनता से बड़े नहीं होते। कानून की नजरों में बराबर होते हैं। उन्हें खुद को अभिजात्य समझना बंद करना चाहिए।
पटना। संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप ने विधायकों से स्पष्ट कहा कि विधि के शासन में वह आम जनता से बड़े नहीं होते। कानून की नजरों में बराबर होते हैं। उन्हें खुद को अभिजात्य समझना बंद करना चाहिए।
आपराधिक मामलों में सदस्यों को कोई विशेषाधिकार प्राप्त नहीं होता। सबूतों के आधार पर उन्हें गिरफ्तार किया जा सकता है। उनके पास जो भी है, वह जनता का दिया हुआ है।
कश्यप सोमवार को विधानसभा के स्थापना दिवस सह प्रबोधन कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। इस दौरान भाजपा नेता एवं पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने बजट प्रक्रिया पर कई रोचक जानकारी दी। इसके पहले विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार चौधरी ने सदस्यों से कश्यप का परिचय कराया।
विशेषाधिकार को समग्र्रता में समझाते हुए सुभाष कश्यप ने परिभाषा, उसका उद्देश्य, सदन में उठाने की प्रक्रिया तथा इसे सूचीबद्ध करने की जरूरतों पर बात की। उन्होंने कहा कि समितियों को भी अदालत की तरह ही अधिकार प्राप्त है। पूछने पर जवाब देना सबकी बाध्यता होती है।
धारणा एवं भ्रांतियों को स्पष्ट करते हुए सुभाष ने कहा कि यह विशेष मकसद से सदस्यों को दिया जाता है। राष्ट्रपति या राज्यपाल को यह अधिकार प्राप्त नहीं है। यह जनता का अधिकार है, जो जनप्रतिनिधियों को दिया जाता है, ताकि वे सदन में और समितियों में बेखौफ होकर जनहित की बात कर सकें। यह नहीं कि खुद को जनता से बड़ा समझने लगें।
भ्रांति दूर कर लें विधायक
विशेषाधिकार को और स्पष्ट करते हुए सुभाष कश्यप ने कहा कि जुलूस-प्रदर्शन में अगर लाठीचार्ज होता है और किसी सदस्य को अगर चोट भी लग जाती है तो भी इसे विशेषाधिकार हनन नहीं माना जाएगा। सदस्यों के जाने पर कोई अफसर कुर्सी से खड़े होकर बात नहीं करता है या अवहेलना करता है तो भी विशेषाधिकार हनन नहीं माना जाएगा। इसे सरकार के सर्कुलर का उल्लंघन माना जाएगा, जिसमें सरकार को तय करना होगा कि उक्त अधिकारी को किस तरह की सजा दी जानी चाहिए।
बोलने की आजादी
विशेषाधिकार के तहत सबसे महत्वपूर्ण है कि सदस्यों को बोलने की आजादी मिलती है। संविधान की सीमा में रहकर कुछ भी बोल सकते हैं। जनहित के मुद्दों को उठाते हुए किसी को अपशब्द भी बोल सकते हैं। यह अध्यक्ष देखेंगे कि वह कानून सम्मत है या नहीं। सदस्य एक दिन में विशेषाधिकार का केवल एक ही मामला उठा सकते हैं। मर्जी के मुताबिक मतदान की भी आजादी पहले थी, लेकिन अब नहीं। दलबदल कानून के तहत इसे दलगत सीमा में बांध दिया गया।
दीवानी मामलों में छूट
दीवानी मामलों में आरोपी विधायक को 40 दिन तक कोई गिरफ्तार नहीं कर सकता है। यह नियम ब्रिटिश शासन के समय से चला आ रहा है। दरअसल पहले के समय में ब्रिटिश संसद पहुंचने में सदस्यों को कम से कम 40 दिन लग जाते थे। इसलिए इतने दिनों तक गिरफ्तारी पर प्रतिबंध था। सुभाष ने बताया कि सदन की कार्यवाही पर अदालत में भी सवाल नहीं उठाया जा सकता है।
क्रिमिनल लॉ में सदस्यों को आम आदमी की तरह गिरफ्तार किया जा सकता है। फर्क सिर्फ इतना कि गिरफ्तारी के तुरंत बाद अध्यक्ष को सूचना देनी होती है। सदन परिसर में अध्यक्ष की अनुमति लिए बिना गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है।
सजा का प्रावधान
सदस्य भी अगर किसी दूसरे सदस्य का विशेषाधिकार हनन करते हैं और मामला सत्यापित हो जाता है तो अध्यक्ष उन्हें निलंबित या निष्कासित कर सकते हैं। सदस्यों को विशेषाधिकार कहां प्राप्त है और कहां नहीं, यह अदालत तय करती है। अगर इसे सूचीबद्ध कर लिया जाता तो सदस्यों को भी सहूलियत होती। सुभाष ने बताया कि बजट को लीक करना विशेषाधिकार हनन नहीं है। परिपाटी है कि सदन की बैठक के दौरान मंत्री नीतिगत निर्णय सदन के बाहर न करें।
प्रतिपक्ष भी सरकार का अंग
सदन में प्रतिपक्ष की भूमिका को स्पष्ट करते हुए सुभाष कश्यप ने कहा कि इसे भी सरकार का अंग माना जाता है। इसीलिए नेता प्रतिपक्ष को कैबिनेट मंत्री का दर्जा देने की परिपाटी है, लेकिन दुर्भाग्यवश मान लिया गया है कि विपक्ष का काम विरोध करना है। सुभाष ने कहा कि सदन की कार्यवाही में बाधा डालना या हंगामा करना भी अवमानना है। हालांकि इसे दलगत राजनीति से देखा जाता है।