छठ में छिपा है हठयोग का रहस्य
लोक आस्था का महापर्व छठ के साथ हर्षोल्लास के अलावा कई रहस्यों को भी समेटे हुए है। अध्यात्म के और योग का मेल भी यह
पटना। लोक आस्था का महापर्व छठ के साथ हर्षोल्लास के अलावा कई रहस्यों को भी समेटे हुए है। अध्यात्म और योग के मेल का उदाहरण भी यह पर्व है। छठ का एक अर्थ छठ चरणों का हठयोग होता है। छठ व्रती चार दिनों तक बिना अन्न-जल ग्रहण किए रहते हैं। पूजा में भी काफी सावधानी बरती जाती है। हठयोग में अपने आप को कष्ट देकर ईश्वर को प्रसन्न करने की बात आती है।
सूर्योपासना इस पर्व का सीधा मतलब सूर्य से अपने लिए छह ऊर्जा ग्रहण करना है। सबसे प्राचीन वेद ऋगवेद में भी छठ का जिक्र आता है। वैदिक काल में ऋषि भोजन से दूर रह कर सूर्य से ऊर्जा प्राप्त करने लिए यह व्रत करते थे।
छठ का महात्म महाभारत काल में भी मिलता है। कहा जाता है कि पांडवों के वनवास के समय द्रौपदी में भी सूर्य की उपासना की थी। द्रौपदी के अलावा कर्ण भी छठ व्रत करते थे।
मार्कण्डेय पुराण में भी आता है जिक्र
मार्कण्डेय पुराण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी ने अपने आप को छह भागों में विभाजित किया है और इनके छठे अंश को सर्वश्रेष्ठ मातृ देवी के रूप में जाना जाता है, जो ब्रह्मा की मानस पुत्री और बच्चों की रक्षा करने वाली देवी हैं। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को इन्हीं देवी की पूजा की जाती है। शिशु के जन्म के छह दिनों के बाद भी इन्हीं देवी की पूजा करके बच्चे के स्वस्थ, सफल और दीर्घ आयु की प्रार्थना की जाती है। पुराणों में इन्हीं देवी का नाम कात्यायनी मिलता है, जिनकी नवरात्र की षष्ठी तिथि को पूजा की जाती है।