शहाबुद्दीन मामलाः SC में सुनवाई से एेन पहले बिहार सरकार ने बदला अपना वकील
मो.शहाबुद्दीन की जमानत परसुप्रीम कोर्ट में सुनवाई से एेन पहले बिहार सरकार ने अपना वकील बदल दिया है। गोपाल सिंह की जगह अब दिनेश द्विवेदी इस मामले में बिहार सरकार का पक्ष रखेंगे।
पटना [वेब डेस्क ]। ग्यारह साल बाद जमानत पर छूटे शहाबुद्दीन की जमानत रद करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई से एेन पहले बिहार सरकार ने इस मामले में अपना वकील बदल दिया है। पिछले एक दशक से सुप्रीम कोर्ट में बिहार सरकार की पैरवी करने वाले गोपाल सिंह की जगह अब दिनेश द्विवेदी सुप्रीम कोर्ट में शहाबुद्दीन मामले में बिहार सरकार का पक्ष रखेंगे।
द्विवेदी को सुनवाई से एेन पहले इस मामले में बिहार सरकार का वकील बनाए जाने के बाद राजनीतिक गलियारों में इस मामले पर चर्चा शुरू हो गई है। शहाबुद्दीन को लेकर नरमी के आरोपों से घिरी बिहार सरकार के इस फैसले ने लोगों को चौंकाया भी है। महज एक दिन पहले वकील बदलने का कितना असर होगा यह देखना दिलचस्प होगा।। द्विवेदी सुप्रीम कोर्ट में सीनियर वकील हैं।
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सोमवार को शहाबुद्दीन की जमानत रद करने के मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में होनी है। तेजाब कांड में तीन बेटों को गंवाने वाले चंद्रकेश्वर प्रसाद सिंह की ओर से इस मामले में जहां प्रशांत भूषण सुप्रीम कोर्ट में जमानत रद करने की मांग करेंगे वहीं शहाबुद्दीन की ओर से राजद के राज्य सभा सांसद और प्रख्यात वकील रामजेठमलानी उनका पक्ष रखेंगे। बिहार सरकार भी जमानत रद कराने की याचिका लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंची है।
पिछले दिनों इस मामले में सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने मो.शहाबुद्दीन को नोटिस देकर पूछा है कि क्यों न उनकी जमानत रद कर दी जाए? इसका जवाब उनकी ओर से कल रामजेठमलानी सुप्रीम कोर्ट में देंगे। इस मामले में सरकार के सुप्रीम कोर्ट जाने पर उसका पक्ष गोपाल सिंह ने रखा था लेकिन प्रशांत भूषण और रामजेठमलानी जैसे बड़े वकीलों के साथ अब दिनेश द्विवेदी सरकार का पक्ष रखेंगे।
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भाजपा बिहार सरकार पर आरोप लगाती रही है कि शहाबुद्दीन के मामले में राज्य सरकार ने अपना पक्ष दमदारी से नहीं रखा जिसकारण हाईकोर्ट से उन्हें जमानत मिली। सुप्रीम कोर्ट में भी सरकार ने कमजोर वकील रखा है ताकि शहाबुद्दीन को इसका लाभ मिल जाए। वकील बदलकर सरकार ने भाजपा के साथ इस मुद्दे पर सवाल उछाने वाले अन्य लोगों का मुंह बंद करने की कोशिश की है।
इस फैसले के राजनीतिक निहितार्थ भी तलाशे जाने लगे हैं। जानकारों के मुताबिक सरकार पहले से ही शहाबुद्दीन के प्रति नरमी का आरोप झेल रही है। भाजपा इस मुद्दे पर नीतीश कुमार को भी कठघरे में खड़ा करती रही है। सुशील मोदी ने कल ही मुख्यमंत्री से दस सवाल पूछे थे। इसमें एक सवाल वरीय अधिवक्ता रखने से भी जुड़ा था। सरकार में इसे लेकर मंथन पहले से चलने की सूचना है।
खासकर नीतीश कुमार पर हमले के बाद जदयू के एक तबके में सरकार की ओर से प्रशांत भूषण और रामजेठमलानी के मुकाबले कमजोर वकील रखने की बात पर अंदर-अंदर आपत्ति थी। इसे लेकर सरकार के स्तर पर भी मंथन चल रहा था। इस मामले में राजद और जदयू के बीच वैचारिक मतभेद साफ दिख ही रहा है।
जदयू का एक तबका शहाबुद्दीन पर किसी रूप में नरमी के पक्ष में नहीं है। यूं भी जमानत के बाद नीतीश पर जिस रूप में शहाबुद्दीन बरसे उसके बाद इस मामले में सरकार की ओर से नरमी के संकेत का गलत अर्थ नीतीश की व्यक्तिगत छवि के लिए भी नुकसानदेह हो सकता था। ताजा घटनाक्रम को इसी रूप में देखा जा रहा है।