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राज्यपाल से अब राष्ट्रपति, अनुशासन के कठोर कवच में शहद से कोविंद

बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविंद अब राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार हैं। रामनाथ कोविंद में अनुशासन के कठोर कवच में स्नेह, संवेदनशीलता और सरोकारों का असाधारण समन्वय की झलक साफ दिखती है।

By Kajal KumariEdited By: Published: Tue, 20 Jun 2017 09:24 AM (IST)Updated: Tue, 20 Jun 2017 11:08 PM (IST)
राज्यपाल से अब राष्ट्रपति, अनुशासन के कठोर कवच में शहद से कोविंद
राज्यपाल से अब राष्ट्रपति, अनुशासन के कठोर कवच में शहद से कोविंद

पटना [सद्गुरु शरण]। बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविंद से पहली मुलाकात में आपको स्कूल के वो हेडमास्टर याद आ जाएंगे, जिनसे आप सबसे ज्यादा डरते थे। बहरहाल, उनसे कुछ मिनट संवाद के बाद आपके सामने उस शिक्षक का चेहरा नुमायां हो जाएगा जो आपको सबसे ज्यादा प्यार करते थे। उनका व्यक्तित्व कुछ ऐसा ही है।

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अनुशासन के कठोर कवच में स्नेह, संवेदनशीलता और सरोकारों का असाधारण समन्वय। चेहरे पर आत्म-संयम का खिंचाव, पर दिल में सिर्फ मिठास और अपनापन।

कोविंद से मेरी पहचान लखनऊ में मेरे सेवाकाल के समय से है जब प्रदेश भाजपा कार्यालय में उनसे यदा-कदा मिलना-जुलना होता था। अरसे बाद बिहार के राजभवन में नई भूमिका में उनसे मुलाकात हुई। इस बार वह भाजपा नेता नहीं, बिहार के राज्यपाल की भूमिका में थे, इसलिए कुछ मिनट माहौल पर औपचारिकता हावी रही।

हालांकि संवाद शुरू होते ही उनका अपनापन, घर-परिवार से लेकर उप्र-बिहार के सामाजिक सरोकारों से जुड़े सवाल, जागरण परिवार के प्रति उनके अगाध स्नेह के किस्से तथा खासकर शिक्षा के उन्ननय को लेकर छटपटाहट के साथ उनका सरल-सहज व्यक्तित्व प्रकट हो गया।

इसके बाद करीब दर्जन भर अवसरों पर उनसे औपचारिक या अनौपचारिक मुलाकात हुई। हर बार पहले से ज्यादा अपने, सरल, सहज और स्नेही लगे। इसके बावजूद राज्यपाल पद की मर्यादा और हद को लेकर अति-संवेदनशील रहे। इसीलिए बिहार की राजनीति के बारे में चर्चा में रुचि नहीं लेते थे।

उनका संघर्ष उनके व्यक्तित्व की मजबूती में दिखता है। विधिवेत्ता होने के नाते उन्हें स्पष्ट पता है कि राज्यपाल के रूप में उनकी हदें क्या हैं, यद्यपि हदों के भीतर उनकी सक्रियता और संवेदनशीलता किसी भी संवैधानिक पदाधिकारी के लिए ईष्र्या का विषय हो सकती है। महज 22 महीने के कार्यकाल में वह बिहार के अधिकांश जिलों में गए।

कई बार लोग महज औपचारिकता के नाते उन्हें किसी समारोह का आमंत्रण देते हैं और अपने सरोकारी स्वभाव के चलते वह आमंत्रण स्वीकार करके चौंका देते हैं। सच तो यह है कि इतने कम समय में उन्होंने खुद को बिहार की परंपराओं, संस्कृति, त्योहार, लोकजीवन और सुख-दुख से जोड़ लिया था।

अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता को उन्होंने कभी अपने संवैधानिक दायित्व निभाने में आड़े नहीं आने दिया। यही वजह है कि राष्ट्रपति पद के लिए राजग उम्मीदवार बनाए जाने पर उन्हें पहली बधाई मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिली।

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नीतीश के साथ पूरा बिहार इस बात पर गर्वित है कि उसके महामहिम अब देश के महामहिम बनने की प्रक्रिया में हैं, लेकिन उन्हें दिल्ली विदा करते समय राज्यवासियों की आंखें नम भी होंगी।

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