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खेल ही है जिनका जुनून : ये हैं बिहार की साक्षी-सिंधू

बिहार की खिलाड़ी बेटियां भी किसी से कम नहीं हैं। उन्होंने अभाव में रहते हुए भी जो अपना मुकाम हासिल किया है वो काबिले तारीफ है। इन्हें भी मौका मिले तो ये भी साक्षी-सिंधू बन सकती हैं

By Kajal KumariEdited By: Published: Mon, 29 Aug 2016 11:46 AM (IST)Updated: Mon, 29 Aug 2016 06:34 PM (IST)
खेल ही है जिनका जुनून : ये हैं बिहार की साक्षी-सिंधू
खेल ही है जिनका जुनून : ये हैं बिहार की साक्षी-सिंधू

पटना [काजल]। प्रतिभा किसी की मुहताज नहीं होती, जरूरत होती है उसे निखारने की। बेटियों ने जिस तरह इस बार रियो ओलंपिक में देश के खिलाड़ी बेटों को पीछे छोड़कर अपनी पहचान बनाई है, उसे देश ने सलाम किया है।भारत की इन दो बेटियों ने जो रियो में अपना जलवा दिखाया है और ओलंपिक पदक जीतकर देश की लाज बचाई है वो काबिले तारीफ है।
लड़कियों ने साबित कर दिया है कि अगर मौका मिले तो वो किसी भी तरह बेटों से कम नहीं हैं।इस बार रियो ओलंपिक्स 2016 में भारत के लिए पदक का खाता खोलने वाली भारत की महिला पहलवान साक्षी मलिक ने अपना परचम लहराया। साक्षी ने 58 किग्रा वर्ग के कांस्य पदक मुक़ाबले में किर्गिस्तान की आइसुलू टीनीबेकोवा को शिकस्त देकर इतिहास रच दिया।

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साक्षी पहली भारतीय महिला पहलवान बनीं हैं, जिन्होंने भारत के लिए ओलंपिक्स में पदक जीता, और इस ऐतिहासिक जीत ने उन्हें देश का असली हीरो बना दिया है।
ताकत, कभी न हार मानने का जच्बा और विरोधियों को उसी की भाषा में जवाब देने का माद्दा, रियो ओलंपिक में किसी खिलाड़ी ने दिखाया तो वो हैं पीवी सिंधू सिल्वर गर्ल सिंधू को रियो ओलंपिक में मिली कामयाबी ने उन्हें देश की गोल्डन गर्ल बना दिया है। आज देश उन्हें सलाम कर रहा है और वो लड़कियों के लिए एक नई प्रेरणा बनकर सामने आईं हैं।
बिहार में भी हैं कई साक्षी-सिंधू
अपना नाम और अपनी पहचान, खुद से बनाने वाली बेटियां बिहार में भी हैं जिन्होंने खेल के क्षेत्र में अपने प्रदेश का मान-सम्मान बढाया है। इन बेटियों पर बिहार को गर्व है। इनमें से कुछ बेटियों ने अभाव की जिंदगी जीते हुए भी अपने सपने को धूमिल नहीं होने दिया और जमाने को दिखा दिया कि सपने पूरे करने के लिए सुविधाएं मिलें ये जरूरी नहीं। एक चाय बेचने वाले की बेटी, एक रेहड़ी का ठेला लगाने वाले की बेटी ने खुद का एक मुकाम बनाया है जिसे आज दुनिया जानती है, जिनकी अपनी पहचान है।
मजदूर की बेटी बनी महिला फुटबॉल टीम की कप्तान
बिहार के पश्चिम चंपारण जिले के नरकटियागंज की रहने वाली सोनी कुमारी जो देश की अंडर 14 महिला फुटबॉल टीम की कप्तान बनीं। सोनी छोटी-सी उम्र में ही कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मैचों में देश का प्रतिनिधित्व कर अपना परचम लहरा चुकी हैं।
दलित परिवार से आने वाली सोनी के पिता पन्ना लाल पासवान और माता बबिता देवी की सोनी दूसरी बेटी हैं। पांच भाई-बहनों को पालने के लिए उनके माता-पिता नेपाल में दिहाड़ी मजदूरी का काम करते हैं। परिवार की बदतर माली हालात के बावजूद छोटी-सी लड़की सोनी ने फुटबॉलर बनने का सपना देखा और अपने सपने को पूरा किया।
सोनी ने जब फुटबॉल खेलना शुरू किया तब उसके पास न जूते थे न ड्रेस। दूसरे बच्चों को खेलते देख उसका मन भी होता था कि ऐसे ही कपड़ों और जूतों को पहनकर वह भी फुटबॉल खेले। एक दिन उसके सपनों को पंख लगे जब प्रशिक्षक सुनील वर्मा की जौहरी आंखों ने उस हीरे को पहचाना और तराशना शुरू किया। उन्होंने अगर उसे खेलने का ऑफर नहीं दिया होता तो वह आज गुमनाम रहती।
फुटबॉल में नाम करने की इच्छा ने उसे अंडर 14 भारतीय महिला फुटबॉल टीम की कप्तान बनाया। खुद कामयाब होने के बाद आज वह दूसरी लडकियों को फुटबॉल की बारीकियां सिखाती है। सोनी बताती हैं कि 2010 में छात्राओं को फुटबॉल का प्रशिक्षण पाते हुए निहारा करती थीं, तभी प्रशिक्षक सुनील वर्मा ने एक दिन उससे पूछा की फुटबॉल खेलोगी तो मानो उसे खुशी का ठिकाना नहीं रहा और उसने फौरन हामी भर दी।
अपने सपने को साकार करने के लिए वह सुनील वर्मा से प्रशिक्षण लेने लगी, उसके बाद जो खेलने का जुनून सवार हुआ वह आज भी बरकरार है। फुटबॉल से जुडऩा और खेलना सोनी के लिए जीवन बन चुका है।
सोनी को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाने में प्रशिक्षण सुनील वर्मा की अहम भूमिका रही है । सुनील वर्मा बताते हैं कि प्रतिभा और लगन के बल पर सोनी ने अपनी पहचान पहले जिला, कमिश्नरी और राज्य स्तर पर बनायी। बाद में नेपाल में बांग्लादेश और श्रीलंका में उसकी टीम को पराजित करने में अहम भूमिका निभाने वाली सोनी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बना चुकी हैं।
सोनी 2015 में यूनीसेफ के कार्यक्रम में शामिल होने अमेरिका जा चुकी है। असाधारण उपलब्धियों के लिए यूनीसेफ ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर सोनी को सम्मानित भी किया है। बिहार की बेटी सोनी ने जिस जच्बे के साथ मुकाम हासिल किया है, उस जच्बे को सभी सलाम करते हैं।
पिता बेचते हैं रेहड़ी, बेटी बनी कप्तान
पलायन और गरीबी का दर्द झेल रहे बिहार के छोटे से शहर सिवान के अति साधारण परिवार से आने वाली अमृता कुमारी ने युवा खिलाडिय़ों के लिए एक मिसाल पेश किया है।
अमृता को भारतीय महिला फ़ुटबॉल टीम की कप्तानी करने का मौका मिला। वे किसी भी भारतीय फ़ुटबॉल टीम की कप्तान बनने वाली बिहार की पहली लड़की हैं।
संघर्ष भरा है मैदान और जीवन का खेल
नौवीं कक्षा की छात्रा अमृता को यूं तो मैरवां, सिवान के हरिराम हाई स्कूल के ग्राउंड में अक्सर गेंद के साथ जूझते देखा जा सकता है।लेकिन, इनका पारिवारिक जीवन भी संघर्षों से भरा है। छह भाई-बहनों में सबसे बड़ी अमृता के पिता शम्भू प्रसाद गुप्ता गुडग़ांव, हरियाणा में रेहड़ी लगाते हैं। अति सीमित संसाधनों के बावजूद अपनी खिलाड़ी बिटिया के शौक़ का ख्य़ाल भी रखते हैं।
शम्भू कहते हैं कि अमृता के भारतीय टीम के कप्तान बनने की ख़बर सुनकर बहुत ख़ुशी हुई। मेरी बेटी खेल और पढ़ाई दोनों में अच्छी है औप मेरा विश्वास है कि एक दिन ये मेरा नाम रोशन करेगी, इसके लिए जितना कर पाते हैं करते हैं। माता-पिता दोनों को अपनी बेटी की योग्यता पर पूरा भरोसा है.
नहीं है प्रतिभा की कमी
अमृता ने जो मुकाम हासिल किया है उससे राज्य के दूसरे खिलाड़ी भी प्रेरित होंगे। पिछले करीब चार साल से अमृता के कोच रहे सिवान के संजय पाठक का मानना है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय फ़ुटबॉल टीम में इलाके की दो और खिलाडिय़ों अर्चना और तारा ख़ातून ने भी हिस्सा लिया है। लेकिन, टीम की कप्तान बनने वालों में अमृता पहली हैं।
संजय कहते हैं कि प्रैक्टिस के लिए यहां कोई अलग ग्राउंड नहीं है। सारे खिलाड़ी स्कूल ग्राउंड में ही प्रैक्टिस करते हैं। बिना किसी सरकारी मदद के अमृता ने जो मुकाम हासिल किया है उससे राज्य के दूसरे खिलाड़ी भी प्रेरित होंगे।
पिता चलाते हैं चाय की दुकान, बेटी है बॉक्सर
पिता बिहार के छपरा में चाय दुकान चलाते हैं, बेटी महिला किक बॉक्सिग की नेशनल चैंपियन है और अब विदेश जाने वाली हैं। इटली में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए प्रियंका को दो लाख रुपए की जरूरत थी जो राजद सुप्रीमो लालू यादव ने दी है और अब प्रियंका इटली जाएगी ।
पैसे की कमी के कारण प्रियंका इस प्रतियोगिता में शामिल ना हो पाने से निराश थी लेकिन लालू यादव की मदद से उसके चेहरे की मुस्कान लौट आई है और उसन वादा किया है कि देश के लिए पदक जीतकर लौटेगी।
दरअसल, बिहार से महिला किक बॉक्सिंग के लिए पांच लड़कियों का चयन हुआ है जिसमें प्रियंका भी शामिल है। प्रियंका महिला किक बॉक्सिंग में राष्ट्रीय चैंपियन का खिताब जीत चुकी है। इसके लिए प्रियंका गोल्ड मेडल मिला है।
श्रेयसी सिंह ने बिहार का नाम किया रौशन
ग्लास्गो में आयोजित कॉमन वेल्थ गेम्स में रजत पदक जीतकर महिला डबल ट्रैप स्पर्धा में बिहार की बेटी श्रेयसी सिंह ने अपनी धरती का मान बढ़ाया ।
श्रेयसी पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय दिग्विजय सिंह और बांका की पूर्व सांसद पुतुल कुमारी की बेटी हैं। कॉमनवेल्थ गेम्स में व्यक्तिगत स्पर्धा में पदक जीतनेवाली वह बिहार की पहली खिलाड़ी हैं।
22 वर्षीय श्रेयसी ने महिला डबल ट्रैप स्पर्धा के फाइनल में 92 अंक के साथ रजत पदक जीता। स्वर्ण पदक विजेता इंगलैंड की चार्लेट केरवुड ने 94 शाट सही निशाने मारे। इंगलैंड की ही रेशेल पारिश 91 अंक के साथ कांस्य पदक जीतने में सफल रहीं।
गोपालगंज की बेटी ने जब थामा क्रिकेट का बैट
बिहार के गोपालगंज में दियारे की बेटी अनिता ने जब नाजुक कलाइयों में बल्ला थामा तो न सिर्फ गांव और जिले का ही नाम रोशन किया, बल्कि बिहार की बेटियों के क्रिकेट में बढ़ते हौसले को भी बुलंद किया।
अनीता को है क्रिकेट का जुनून
बरौली प्रखंड के रुपनछाप गांव के स्व. चंद्रदेव धानुक की बेटी अनीता कुमारी
ने खेल की दुनिया में अपना मुकाम बनाया है एक एथलीट के बाद वेे किक्रेट कप्तान बनीं, लेकिन घुटने में चोट लगने के बाद वो अभी नहीं खेल पा रही हैं।
अनीता ने बताया अपना अबतक का सफर
2009 में अनीता छात्राओं में एथलीट के क्षेत्र में जिला चैंपियन बनी। वर्ष 2013-14 में धावक में प्रथम स्थान लाकर वह उडऩपरी के नाम से प्रसिद्ध हुई। वर्ष 2012 में उसने क्रिकेट की दुनिया में कदम रखा और बेस्ट ऑल राउंडर बन गयी। जिला महिला क्रिकेट टीम के साथ-साथ बिहार महिला क्रिकेट टीम में भी उसने कई बार प्रदर्शन किया।
19 वें सब जूनियर क्रिकेट चैंपियनशिप में भी अपना बेहतर प्रदर्शन किया। उसके बाद उन्होंने दरभंगा में प्रथम टी-20 इंदिरा गांधी क्रिकेट वुमेंस चैंपियनशिप जीता।
इसके साथ ही उन्होंने उत्तर प्रदेश, हरियाणा, नेपाल में अपनी टीम के साथ अच्छा प्रदर्शन कर चुकी हैं।
तीन साल से उन्होंने जिला महिला टीम का नेतृत्व किया है लेकिन आजकल चोटिल होने से अस्पताल में हैं।

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