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बेउर जेल : यहां मुर्गे के पेट से निकलता है मोबाइल

आदर्श केन्द्रीय कारा बेउर में बंद अधिकांश कैदियों के पास मोबाइल हैं। भले ही अधिकांश कैदी इसका खुलेआम उपयोग नहीं कर पाते हैं, परंतु दबंग कैदियों के मामले में कारा प्रशासन सख्ती नहीं कर पाता है। ये मोबाइल उनके पास मुर्गे के पेट या कॉस्को बॉल में भेजे जाते हैं।

By Kajal KumariEdited By: Published: Mon, 06 Jul 2015 10:34 AM (IST)Updated: Mon, 06 Jul 2015 12:00 PM (IST)
बेउर जेल : यहां मुर्गे के पेट से निकलता है मोबाइल

पटना [चन्द्रशेखर]। आदर्श केन्द्रीय कारा बेउर में बंद अधिकांश कैदियों के पास मोबाइल हैं। भले ही अधिकांश कैदी इसका खुलेआम उपयोग नहीं कर पाते हैं, परंतु दबंग कैदियों के मामले में कारा प्रशासन सख्ती नहीं कर पाता है। ये मोबाइल उनके पास मुर्गे के पेट या कॉस्को बॉल में भेजे जाते हैं।

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बेउर जेल में आम कैदी जहां घर के लोगों से बात करने के लिए मोबाइल रखते हैं वहीं दबंग कैदी बाहर के व्यापारियों से रंगदारी मांगने व धमकी देने के लिए ही रखते हैं। जेल के अंदर से ठेकेदारी मैनेज करना भी अपराधियों की दिनचर्या बन चुकी है।

यहां दबंग कैदियों द्वारा अक्सर पार्टी देने के बहाने बाहर से मुर्गा मंगवाया जाता है। मुर्गे के पेट में मोबाइल डालकर अंदर भेज दिया जाता है। संयोगवश एक बार पेट में रखा मोबाइल चेकिंग के दौरान ही बज गया। अचानक मोबाइल बजने से सारे सुरक्षाकर्मी सतर्क हो गए। जब मुर्गा को चेक किया तो मोबाइल पकड़ा गया।

जेल के चारों ओर ऊंचे-ऊंचे मकान हैं। कारा प्रशासन की मानें तो इन मकानों के लड़के क्रिकेट खेलने के बहाने छक्का मारते हैं। कॉस्को बाल होने के कारण बाहर का छक्का सीधे जेल की बाउंड्री में गिरता है। जिसके लिए बॉल अंदर भेजा जाता है उसे पता होता है और चुपके से वह उसमें रखा मोबाइल लेकर अंदर आ जाता है। बॉल में केवल मोबाइल ही नहीं, गांजा व स्मैक के पुडिय़े तक भेजे जाते हैं।

जेल के अंदर से मैनेज हो रहा टेंडर

रविवार को जेल के अंदर की गई छापेमारी में बरामद दस्तावेज इस बात का खुलासा कर रहे हैं कि कुख्यात रीतलाल यादव द्वारा रेलवे के बड़े-बड़े टेंडर जेल से ही मोबाइल से मैनेज किए जा रहे थे।

रीतलाल जेल के अंदर से ही वह रेलवे के इंजीनियरों एवं ठेकेदारों को धमकी देता रहा है। वह उन्हें अपने लोगों को काम देने के लिए कहता था। इतना ही नहीं, किस काम में कौन ठेकेदार टेंडर डालेगा, इसका निर्णय भी जेल के अंदर से ही होता रहा है।

काराकर्मियों को मैनेज करते कैदी

जेल के अंदर काराधीक्षक अथवा उपकाराधीक्षक द्वारा लगातार छापेमारी की जाती है। औचक छापेमारी से बचने के लिए कैदी वार्ड में तैनात कक्षपालों अथवा उच्च कक्षपालों को खुश रखते हैं। इसके लिए उन्हें माहवारी राशि देना पड़ता है। यह राशि 500 से लेकर 2000 रुपये तक की होती है। इतना ही नहीं, काराकर्मियों द्वारा पकड़े गए मोबाइल भी वापस कैदियों के हाथ बेच दिए जाते हैं।

कहते हैं काराधीक्षक

काराधीक्षक शिवेन्द्र प्रियदर्शी की मानें तो जेल के बाहर से मोबाइल व गांजा पहुंचाने में सबसे अधिक मदद जेल के आसपास के रहने वाले लोग ही करते हैं। स्थानीय निवासी क्रिकेट खेलने के दौरान छक्का मार बॉल को जेल के अंदर भेज देते हैं। जेल की चहारदीवारी को और ऊंचा करने का प्रस्ताव है। जेल के अंदर सभी वार्डों में नियमित रूप से तलाशी होती है।


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