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कोविंद के समर्थन के पीछे जानिए क्या है सीएम नीतीश का गणित

नीतीश कुमार राजनीति के माहिर खिलाड़ी माने जाते हैं, इसबार उन्होंने एनडीए के राष्ट्रपति उम्मीदवार रामनाथ कोविंद को समर्थन देकर चौंका दिया है। कम ही लोग उनके गणित को समझ पाएंगे।

By Kajal KumariEdited By: Published: Fri, 23 Jun 2017 04:37 PM (IST)Updated: Fri, 23 Jun 2017 11:52 PM (IST)
कोविंद के समर्थन के पीछे जानिए क्या है सीएम नीतीश का गणित
कोविंद के समर्थन के पीछे जानिए क्या है सीएम नीतीश का गणित

पटना [जेएनएन]। राष्ट्रपति पद के लिए जब विपक्ष एक साझा उम्मीदवार उतारने की कोशिश में था, उसी बीच बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एनडीए उम्मीदवार रामनाथ कोविंद को समर्थन देकर सबको चौंका दिया। इससे अब विपक्ष के खेमे में ही तूफान मचा है।

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नीतीश के इस फैसले से राजनीतिक गलियारों से लेकर आमजन के बीच इस सवाल का जवाब पाने को बेताबी है कि आखिर नीतीश ने क्यों एनडीए उम्मीदवार में समर्थन का फैसला किया है?

जानिए क्या है नीतीश का गणित....

महादलित वोटबैंक

बिहार में महादलित वोटबैंक निर्णायक है। संयोग से रामनाथ कोविंद महादलित श्रेणी से ही आते हैं। बिहार में लालू प्रसाद यादव के यादव-मुस्लिम गठजोड़ पर नीतीश कुमार के भारी होने की वजह महादलित वोटबैंक का उनके साथ जाना ही रहा है।

नीतीश के लिए महादलित वोटों का महत्व इसी से समझा जा सकता है कि उन्होंने 2014 में अपनी जगह जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री बनाने का दांव चला था। मांझी भी महादलित श्रेणी से ही आते हैं। बाद में जब मांझी की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं हद पार करने लगीं तो नीतीश को उन्हें हटा कर खुद मुख्यमंत्री बनना पड़ा।

मांझी ने इस फैसले को महादलितों का अपमान करार दिया था। 2015 के आम चुनाव में नीतीश कुमार महागठबंधन के जरिए दोबारा सत्ता में तो आ गए लेकिन वह बैसाखी के सहारे अपनी ताकत बनाए रखने के बजाय अकेले अपने दम पर मजबूत दिखना चाहते हैं।

इसके लिए उन्हें महादलित वोट बैंक का साथ चाहिए ही चाहिए। नीतीश को इस बात की शंका थी कि अगर उन्होंने कोविंद का विरोध किया तो महादलितों से उनकी दूरी और बढ़ जाएगी। ऐसे में उन्होंने 'महादलित' कोविंद का साथ देने का एलान कर महादलितों के बीच अपनी साख बढ़ा ली है, जिसका फायदा उन्हें भविष्य में दिखेगा।

कोविंद को समर्थन, रणनीति का हिस्सा

बिहार चुनाव जीतने के बाद गैर बीजेपी दलों के बीच नीतीश कुमार सबसे बड़ा चेहरा बन कर उभरे हैं। उसी के मद्देनजर जब-तब उन्हें 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी के मुकाबले प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित होने की बात चलती रहती है लेकिन कांग्रेस ने अब तक इस मुद्दे पर अपना नजरिया स्पष्ट नहीं किया है।

पॉलिटिकल सर्किल में कहा जा रहा है कि कांग्रेस राहुल का मोह नहीं छोड़ पा रही है, नीतीश को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार मान लेने से एक तरह से राहुल गांधी का हथियार डाल देना ही हुआ। कांग्रेस के इस रवैये से नीतीश आहत हैं और वह खास मौकों पर कांग्रेस से अपनी दूरी बना कर प्रेशर पॉलिटिक्स का काम कर रहे हैं। कोविंद को समर्थन का ऐलान उनकी इसी रणनीति का हिस्सा है।

लालू के सामने समर्पण नहीं, खुद की मुख्तारी कायम

नीतीश के राजनीतिक भविष्य के लिए यह स्थापित होना जरूरी है कि उन्होंने मुख्यमंत्री बने रहने के लिए लालू प्रसाद यादव के सामने समर्पण नहीं कर दिया है बल्कि उनकी खुद मुख्तारी कायम है।

साझा सरकार होने के बावजूद तमाम बड़े मौकों पर अपना अलग रणनीतिक स्टैंड लेकर नीतीश यह स्थापित करना चाहते हैं कि लालू यादव उनके मास्टर नहीं हैं।नोटबंदी से लेकर राष्ट्रपति चुनाव तक पर नीतीश के फैसले इसकी मिसाल हैं।

नीतीश को यह अच्छी तरह मालूम हैं कि लालू यादव और उनका पूरा परिवार इस वक्त जिस तरह से सीबीआई से लेकर आयकर विभाग के घेरे में है उस बीच वह (लालू यादव) सरकार गिराने जैसा कोई जोखिम नहीं लेना चाहेंगे।

रिश्ते बना कर रखना चाहते हैं 

नीतीश कुमार को भी मालूम है कि लालू यादव भी बहुत दिनों तक बिहार में बैसाखी की पॉलिटिक्स नहीं करना चाहेंगे। इस वजह नीतीश एनडीए और खास तौर से मोदी से अपने रिश्ते खराब नहीं रखना चाहते।


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