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विधानसभा चुनाव : स्थानीय क्षत्रपों के हवाले 'मगध'

मगध के सियासी बिसात पर इस बार मोहरों के पाला बदल लेने से राजनीतिक जंग खासी दिलचस्प होगी। पिछले चुनावों में खास गठबंधन के चलते सारे समीकरण ध्वस्त हो गए थे। इस बार चुनाव में किसी को भी हराने और जिताने में स्थानीय क्षत्रपों की खास भूमिका होगी।

By Kajal KumariEdited By: Published: Tue, 04 Aug 2015 08:32 AM (IST)Updated: Tue, 04 Aug 2015 02:55 PM (IST)
विधानसभा चुनाव : स्थानीय क्षत्रपों के हवाले 'मगध'

पटना [अनिल सिंह झा]। मगध के सियासी बिसात पर इस बार मोहरों के पाला बदल लेने से राजनीतिक जंग खासी दिलचस्प होगी। पिछले चुनावों में खास गठबंधन के चलते सारे समीकरण ध्वस्त हो गए थे। इलाके में दमदार उपस्थिति रखने वाले सियासी दिग्गजों को पानी पीना पड़ गया था।

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लेकिन, इस बार स्थितियां अलग हैं। कभी एक-दूसरे के खिलाफ रहे दल गलबहियां डाले हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस बार चुनावों में स्थानीय क्षत्रपों की खास भूमिका होगी। वे किसी को भी हराने और जिताने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेंगे। मांझी को उनके ही क्षेत्र में महागठबंधन से तगड़ी चुनौती मिलने की संभावना है।

पहले कांग्रेस और फिर राजद

मगध की धरती पर कभी कांग्रेस की तूती बोलती थी। वाम दलों को छोड़कर कांग्रेस को कोई और दल चुनौती देने की हैसियत में नहीं था। नब्बे में राजद के उदय होने के साथ ही कांग्रेस के मजबूत किले में सेंध लगने लगी। 2000 के चुनाव में कांग्रेस का किला ध्वस्त हो गया। कांग्रेस की जगह राजद ने ले ली।

पिछले विधानसभा चुनाव में ज्यादातर दल अकेले चुनाव लडऩे के बजाए गठबंधन के साथ उतरे। एक तरफ राजद व लोजपा तो दूसरी तरफ जदयू व भाजपा थी। कांग्रेस अकेले ही जोर आजमाइश करने को खड़ी हुई। जदयू और भाजपा की गठबंधन ने सभी दलों को नेस्तनाबूत कर दिया।

मगध क्षेत्र के 24 विधानसभा सीट पर जदयू और भाजपा ने 22 पर जीत हासिल की। इनमें से 15 पर जदयू और 7 सीट पर भाजपा ने कब्जा जमाया। राजद को मात्र एक सीट से संतोष करना पड़ा। ओबरा सीट निर्दलीय उम्मीदवार के खाते में गया। पिछली बार की तुलना में इस बार चुनाव का समीकरण बदल गया है।

जो पहले दोस्त थे वे दुश्मन और दुश्मन थे, वे दोस्त बन गये हैं। मगध पर परचम लहराने वाले जदयू और भाजपा की दोस्ती टूट गई है और दोनों ने अलग-अलग राह पकड़ ली है। जदयू ने राजद, कांगे्रस और राकांपा के साथ नया गठबंधन बना लिया है। भाजपा ने अपना नया दोस्त लोजपा, रालोसपा और जीतनराम मांझी की हम को बना लिया है। गठबंधन का स्वरूप बदलने से चुनाव में कांटे की टक्कर होने की उम्मीद है।

झेलना पड़ सकता स्थानीय विरोध

सीटों के बंटवारे को लेकर स्थानीय स्तर पर विरोध के स्वर उठने की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता है। इस बार के चुनाव में दोनों गठबंधन को स्थानीय क्षत्रप के विरोध से दो-चार होना पड़ेगा। एनडीए की अपेक्षा जदयू- राजद गठबंधन को कुछ ज्यादा विरोध का सामना करना सकता है।

पिछले चुनाव में दस सीटों पर जदयू पहले स्थान पर रही वहां दूसरी स्थान पर राजद था। एक-एक सीट पर कांग्रेस और लोजपा दूसरी स्थान पर थी। राजद को सिर्फ एक सीट ही मिली थी, वहां पर दूसरे नंबर पर जदयू था। इसी तरह भाजपा की सात सीटों में से चार पर राजद, दो पर लोजपा, एक पर सीपीआइ दूसरे नंबर पर था।

मगध के पचास फीसद सीटों पर पहले और दूसरे स्थान पर रहने वाले प्रत्याशियों में 3 से 5 फीसद वोट का ही अंतर रहा। इस बार गठबंधन का स्वरूप बदल जाने से मतदाता भी निश्चित तौर पर इधर से उधर होंगे। इसमें स्थानीय नेताओं की भूमिका अहम होगी। जो दल स्थानीय क्षत्रपों को साधने में कामयाब होंगे उनके हाथ में जीत की बाजी होगी।


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