'अनारकली अॉफ आरा' बिहार की अनारकली, जिसके जलवे हैं जरा हट के...
आरा जिले की अनारकली जो गांवों-कस्बों में नाच-गाना कर अपनी जीविका चलाती है, लेकिन वक्त आ जाए तो अपने स्वाभिमान से समझौता नहीं करती।
पटना [काजल]। बिहार का आरा जिला वैसे तो मशहूर जिलों में से एक है लेकिन इसकी पृष्ठभूमि पर बनी कहानी अनारकली अॉफ आरा, अन्य फिल्मों से कुछ हटकर है, जिसमें एक नाचने-गाने वाली, नौटंकी और आर्केष्ट्रा में काम करने वाली औरत के संघर्ष की कहानी है। यह फिल्म 24 मार्च को रिलीज हो रही है और इसमें खांटी बिहार की झलक देखने को मिलेगी। इस फिल्म में स्वरा आरा की अनारकली की भूमिका में हैं तो विलेन के रुप में संजय मिश्रा हैं।
अनारकली ऑफ आरा छोटे शहरों में उन महिलाओं की कहानी है जो गाने-बजाने के धंधे में हैं और लोग उन्हें किस नजर से देखते हैं ये भी इस फिल्म में बखूबी दिखाया गया है। इस फिल्म को आप एक सोशल म्यूजिकल ड्रामा कह सकते हैं।
अनारकली बिहार की राजधानी पटना से चालीस किलोमीटर दूर आरा शहर की एक देसी गायिका है, जो मेलो-ठेलों, शादी-ब्याह और स्थानीय आयोजनों में गाती है। यह फिल्म एक ऐसी घटना से जुड़ी है, जिसके बाद अनारकली का जीवन एक उजाड़, डर और विस्थापन के कोलाज में बदल जाता है।
अनारकली के गीत लोगों के मन के दबे हुए तार छेड़ते हैं। उसे सुनने वाले उस पर फिदा हो जाना चाहते हैं और अनारकली अपने प्रति लोगों की दीवानगी को अपनी संगीत यात्रा में भड़काती चलती है। उसके प्रेम का अपना अतीत है और सेक्स पर समझदारी के मामले में रूढ़ीवादी भी नहीं है।
इतनी खुली शख्सियत के बावजूद उसके पास एक आत्मसम्मान है, जिसका एहसास वह कई मौकों पर सामने वाले को कराती भी रहती है। वह एक तेवर रखती है, जिसमें जमाने की परवाह नहीं है, लेकिन रिश्तों के मामले में संवेदनशील भी है।
फिल्म में उसके इर्दगिर्द पांच लोग हैं – जो उसके प्रेम के एक ही धागे में बंधे हैं। सब अपनी अपनी तरह से अनारकली को प्रेम करते हैं। लेकिन आखिर में अनारकली को अकेले ही अपने रास्ते पर जाना है और वही होता है। पूरी कहानी में कठिन से कठिन मौकों पर उसकी आंखें आंसू नहीं बहाती और बाहर की उदासी को वह अपनी हिम्मत से खत्म करने की कोशिश करती है।
अनारकली अॉफ आरा जहां बहुत ही सहज ढंग से सियासत की शिकार होने वाली एक औरत की कहानी दिखाने की कोशिश है, तो वहीं उसके रंग-बिरंगे नाच-गाने के दृश्य और द्विअर्थी गाने, हाव-भाव गांव और कस्बों में होने वाले आर्केष्ट्रा से दर्शकों को रू-ब-रु और मनोरंजन कराने की पहल है। साथ ही इसके पीछे के काले-सफेद पहलू को भी दिखाने की कोशिश करते हैं।
फिल्म में इस्तेमाल की गई भाषा बिल्कुल बिहारी लहजे की हिंदी है। अनारकली के परिचय में ‘देसी तंदूर – विदेशी ओवन ’ जैसे विशेषणों का इस्तेमाल आपको चौंकाता तो है पर साथ ही देसी वर्डप्ले से लबरेज गांव वाली नौटंकियों की याद भी दिलाता ह। फिल्म में द्विअर्थी संवाद और गीत, पात्रों के साथ-साथ कहानी को भी वास्तविकता वाला टच देते नजर आते हैं। अनारकली आॅफ आरा देश भर में 24 मार्च को रीलीज़ हो रही है।