..ताकि ल्यूकोरिया न बने कैंसर
कार्यालय प्रतिनिधि, पटना : ल्यूकोरिया या श्वेत प्रदर स्वयं में एक आम बीमारी है लेकिन नजरअंदाज करने पर यह गंभीर बीमारी का रूप ले लेती है। यह रोग हर उम्र की महिला को हो सकता है। आज भी जागरूकता के अभाव में महिलाएं इसी तरह की तमाम बीमारियों के चंगुल में फंस जाती हैं। शर्म की वजह से महिलाएं ल्यूकोरिया के बारे में जल्दी किसी को बताती नहीं और एक सामान्य बीमारी इस प्रकार बच्चेदानी के कैंसर तक में बदल जाती है। उपरोक्त बातें महिला स्वास्थ्य जागरूकता मिशन के तत्वाधान में शिवम अस्पताल में ल्यूकोरिया रोग, कारण-निवारण एवं उपचार विषय पर आयोजित सेमिनार में प्रसिद्ध स्त्री रोग विशेषज्ञ डा. सारिका राय ने कहीं।
डा. सारिका ने बताया कि ल्यूकोरिया सामान्यत: पांच प्रकार का होता है। पहला साधारण होता है जो कि माहवारी के साथ आता है और चला जाता है। दूसरा, संसर्ग से पैदा हुए इंफेक्शन के कारण होता है। तीसरा बच्चेदानी के अंदर दाना होने से तथा चौथा बच्चेदानी के कैंसर के कारण होता है। पांचवां बच्चेदानी के निकाले जाने पर इसके मुंह में होनेवाली लाली की वजह से होता है। इसे ग्रैनिलूसन टिश्यू भी कहते हैं। डा. सारिका ने बताया कि ऐसे में महिलाओं को चाहिए कि 30 वर्ष की उम्र पार करने के बाद हर पांच साल में एक बार पैपस्मीयर जांच अवश्य कराएं। ल्यूकोरिया से पीड़ित महिलाएं भी नियमित जांच कराती रहें। जिससे यह सामान्य बीमारी गंभीर रूप न ले सके।
डा. जया झा ने बताया कि ल्यूकोरिया में सामान्यत: बच्चेदानी के आसपास का क्षेत्र प्रभावित होता है। इसकी जांच और इलाज दोनों अतिआवश्यक हैं। डा. अंशू ने बताया कि जांच के बाद यदि बच्चेदानी के कैंसर का पता चलता है तो मरीज व परिजनों को कैंसर विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए।
उद्घाटन अवसर पर प्रख्यात इनफर्टिलिटी विशेषज्ञ डा. हिमांशु राय ने बताया कि बीमारी बताने में शर्म करना अपनी ही जान को खतरे में डालना है। ल्यूकोरिया पोषण की कमी और ताकत से ज्यादा थकाने वाले कामों की वजह से होता है। कई बार इसका कारण दिमागी परेशानी भी हो सकती है। पोषण की कमी दूर कर और लाइफ स्टाइल में सुधार कर काफी हद तक इस बीमारी पर काबू पाया जा सकता है। इस मौके पर शहर की कई स्त्री रोग विशेषज्ञ व बहुत सी सामान्य महिलाएं भी मौजूद थीं।
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ल्यूकोरिया के लक्षण-
जब सफेद पानी अधिक गाढ़ा, मटमैला और लालिमा लिए हुए हो, चिपचिपापन और बदबू आए तो यह बीमारी की गंभीरता बताता है।
- रोगी के हाथ पैर, पिंडलियों, घुटनों और पैर की हड्डियों में दर्द होता है
- हाथ-पैरों में जलन, सिरदर्द, स्मरण शक्ति में कमी या चक्कर आना, शरीर में कमजोरी, पेड़ू में भारीपन, कमर दर्द, शरीर टूटना
- कैल्शियम की कमी, खून की कमी, चेहरे का पीला पडऩा, आखों का काला होना, चेहरा धंस जाना भूख न लगना, चिड़चिड़ापन, किसी काम में मन न लगना, सिर के बालों का अधिक मात्रा में गिरना, आखों की रोशनी कम होना, कब्ज आदि। - बार-बार मूत्र आना, योनि का गीला रहना, योनि में खुजली या जलन होना, योनिगंध, योनिशूल आदि।
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