सभी को एक कर देती है दिवाली की रोशनी
राजधानी में विभिन्न राज्यों के लोग रहते हैं।
जागरण संवाददाता, पटना : राजधानी में विभिन्न राज्यों के लोग रहते हैं। विविधता के कारण इनकी दिवाली भी अपने-अपने अंदाज में मनती है। बिहार के अलावा इसमें पंजाबी, दक्षिण भारतीय, बंगाली और गुजराती प्रमुख हैं। कोई तीन दिन पहले से तैयारी शुरू कर देता है तो कोई ताश खेलकर मनाता है त्योहार। कैसी होती है पटना में रहने वालों की दिवाली एक रिपोर्ट।
रात भर होती है काली पूजा करते हैं बंगाली
शहर में बंगाली समुदाय के लोगों का हुजूम है। जो पारंपरिक तरीके से दिवाली मनाते हैं। दिवाली में पूरा बंगाली समाज एक साथ पूरी श्रद्धा से माता काली की पूजा करता है। बंगाली अखाड़ा, गुलजार बाग, पटना काली बाड़ी (गर्दनीबाग), पीडब्ल्यूडी (छज्जूबाग), अदालत गंज में काली पूजा धूमधाम से मनाई जाती है। बंगाली अखाड़े में विगत 106 साल से काली पूजा हो रही है। इस बार भी पूरा बंगाली समाज काली पूजा में जुटेगा। सुरोद्यान पूजा सेलिब्रेशन कमेटी के मुख्य सचिव अमित सिन्हा बताते हैं कि रात के दस बजे से जो पूजा शुरू होती है वो देर रात डेढ़ बजे तक चलती है। इसके बाद पुष्पांजलि चढ़ती है। रात भर भोग का वितरण किया जाता है। इस भोग में बंगाली के साथ-साथ विभिन्न संप्रदाय के लोग भी शामिल होते हैं। खिचड़ी, सब्जी, खीर के स्वादिष्ट भोग के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। बंगाल के मूर्तिकार मूर्ति बनाते हैं।
सिंदूर खेला के साथ होता है विसर्जन
भिखना पहाड़ी में एक ऐसा बंगाली समाज है जो काली पूजा बड़े धूमधाम से मनाता है। इस अपार्टमेंट में करीब 40 लोग रहते हैं जो धूमधाम से रात भर पूजा करते हैं। पारंपरिक तरीके से रात भर श्रद्धापूर्वक पूजा होती है। मूर्ति बंगाली कलाकार बनाते हैं और खास तौर से यहां बंगाली ढाकी कालकार यहां आते हैं। विसर्जन के समय पारंपरिक बंगाली परिधान में सभी महिलाए सिंदूर खेला करती हैं। इसमें सभी महिलाएं एक दूसरे को सिंदूर लगाते हुए पैदल चल कर माता का विसर्जन करती हैं। मीनाक्षी झा बनर्जी बताती हैं कि हम सभी बंगाली परिवार वाले पूरी रात दिवाली माता के पूजन से करते हैं। हमारे अपार्टमेंट के अलावा यहां अगल-बगल के लोग भी इसमें शामिल होते हैं।
तीन दिन पहले मराठियों की शुरू हो जाती है तैयारी
मराठियों की दिवाली तीन दिन पहले से शुरू हो जाती है। महाराष्ट्र मंडल के संजय भोंसले बताते हैं कि हमारी दिवाली पारंपरिक तरीके से हर साल मनाई जाती है। तीन दिन पहले घर की महिलाएं तेल और उपटन लगा कर घर के पुरुषों को नहलाती हैं और फिर उनकी आरती करती हैं। इसके बाद शुरू होता है मीठे मराठी व्यंजन बनाने की कवायद। इसमें खोआ औैर ड्राई फ्रूट्स डला हुआ करंजी, चने की शंकरपाली, मीठे चूड़े सहित कई प्रकार के व्यंजन बनाए जाते हैं। दिवाली के दिन सभी मराठी परिवार एकत्रित होकर लक्ष्मी और गणपति की पूजा करते हैं। छोटी दिवाली से लेकर 11 दिन तक हर रोज मुख्य द्वार पर रंग बिरंगी रंगोलियां बनाई जाती है। फूल, दीया, गणेश की प्रतिमा बनाई जाती है। इसके बाद सभी लोग एकसाथ दीये और फुलझड़ियां जलाते हैं।
पक्की रसोई का पंजाबियों को रहता है इंतजार
पंजाबियों के लिए दिवाली का खास महत्व है क्योंकि इसके साथ ही रसोई का नया सीजन शुरू हो जाता है। इस दिन से घर में पक्की रसोई बनने लगती है। इसमें पूरी हलवा, मूली कतरा, आंवले का अचार, अदरक का मीठा बनने लगते हैं। वीणा गुप्ता बताती हैं कि पंजाबियों के लिए दिवाली का बहुत अधिक महत्व इसलिए है। दिवाली के एक महीने पहले खरमास से ही घर की सफाई शुरू हो जाती है। पूजा के दिन घर के जितने भी चांदी के सिक्के होते हैं उनको धोकर उनकी पूजा की जाती है। इस दिन सारे पंजाबी कन्या अपने घर में तिमुखा दीया मुख्य द्वार पर शाम को ही जला देती हैं। इसके बाद घर के कमाने वाले की आरती उतारते हैं। इसके बाद कन्या को नेग भी दिया जाता है।
सहभोज के साथ मनती है दक्षिण भारतियों की दिवाली
शहर में एक तबका दक्षिण भारतीयों का भी है जो केरला के पारंपरिक अंदाज में दिवाली मनाते हैं। भारती मंडपम के राजेन्द्र नैयर बताते हैं कि हमलोग सुबह-सुबह नहा कर ही माता लक्ष्मी की पूजा कर लेते हैं। इसके बाद यह दीप रात तक निखंड पूरी रात जलता रहता है। रात में केरल के स्वादिष्ट व्यंजन के साथ पूरे समाज का सहभोज भी होता है। इसमें केला के पत्ते पर सभी चावल, सांभर, कड़ी, दाल, पापड़, अवियल, तोरैन, कूटवड़ी, पचड़ी, टियल और दो तरह के खीर दूध और चावल का और गुड़ का प्रैफामेन खास तौर से बनाए जाते हैं। फूल की खूबसूरत रंगोली बनाकर महिलाएं अपना घर सजाते हैं।
पत्ते खेलकर त्योहार मनाते हैं मारवाड़ी
माड़वारियों की दिवाली स्पेशल होती है। महिलाएं रात में पत्ते खेलती हैं और आधी रात में झाड़ू निकालती हैं और दीया जलाती हैं। ये लोग रंगोली बनाकर पूरी रात जागते हैं। मूर्ति पर चलनी डालकर काजल बनाती हैं। इसे बहुत शुभ मानते हैं। डांडिया खास तौर से सभी खेलती हैं। सरिता केड़िया बताती हैं कि हमारी दिवाली जश्न वाली होती है। इसमें डांडिया, ताश और काजल बनाने की महत्ता है।