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दहेज विरोधी नारे लिखे कपड़े पहनता यह पिता, पांच साल से जारी सिलसिला

बिहार के नवादा जिला निवासी गया प्रसाद ने दहेज उत्पीडऩ के खिलाफ लोगों को जगाने का संकल्प लिया है। वे दहेज उत्पीडऩ के खिलाफ नारों से सजे कपड़े पहनकर घूमते हैं।

By Kajal KumariEdited By: Published: Wed, 29 Jun 2016 07:54 AM (IST)Updated: Wed, 29 Jun 2016 02:34 PM (IST)
दहेज विरोधी नारे लिखे कपड़े पहनता यह पिता, पांच साल से जारी सिलसिला
दहेज विरोधी नारे लिखे कपड़े पहनता यह पिता, पांच साल से जारी सिलसिला
पटना [अमित आलोक]। लोग उन्हें पागल समझते हैं। कुछ लोग देखकर हंस पड़ते हैं। वे जिधर निकलते हैं, कौतूहल से देखने वालों की भीड़ लग जाती है। लेकिन, उनको फर्क नहीं पड़ता। गया से लेकर नवादा तक दहेज उत्पीडऩ के खिलाफ नारों से सजे कपड़े पहनकर घूमते हुए वे अपने दम पर अकेले समाज सुधार का बीड़ा उठा चुके हैं। यह सिलसिला 2011 से निरंतर जारी है।
बिहार के नवादा जिला निवासी गया प्रसाद ने दहेज उत्पीडऩ के खिलाफ लोगों को जगाने का संकल्प लिया है। दुनिया के हास-परिहास व विरोध से बेपरवाह वे अपने संकल्प को लेकर गंभीर हैं।
बेटी की प्रताडऩा से मिली प्रेरणा
गया प्रसाद को यह अभियान चलाने की प्रेरणा अपनी बेटी की दहेज प्रताडऩा से मिली। वे बताते हैं कि उन्होंने वर्ष 1998 में बेटी बबीता की शादी नवादा जिले के सीतामढ़ी गांव के रहने वाले जागेश्वर महतो के पुत्र प्रमोद कुमार से की थी।
लेकिन, शादी के कुछ ही दिनों बाद से ही ससुराल वालों ने 20 हजार रुपए और रंगीन टीवी की मांग शुरू कर दी। गया प्रसाद दहेज लोभियों की मांग पूरी करने में असमर्थ थे। इस कारण ससुराल वालों ने बबीता को घर से निकाल दिया और प्रमोद की दूसरी शादी कर दी।
केंद्रीय कैबिनेट ने दिया बिहार को तोहफा, गांधी सेतु होगा फोरलेन इस घटना की एफआइआर दर्ज कराई गई। गया प्रसाद के अनुसार इसके बाद बबीता के ससुराल वालों ने उन्हें और उनकी बेटी को झूठे मुकदमे में फंसा दिया। इसके बाद से गया प्रसाद सरकारी कार्यालयों में जाकर अपनी बेटी के लिए न्याय की मांग करते आ रहे हैं, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है। इस घटना के बाद गया प्रसाद ने दहेज प्रताडऩा के खिलाफ मुहिम चलाने का संकल्प लिया।
2011 में पहली बार पहने ऐसे कपड़े
वर्ष 2011 में उन्होंने पहली बार कपड़ों पर दहेज विरोधी नारे लिखकर पहने। इसके बाद से वे इसी वेशभूषा में सरकारी कार्यालयों में जाकर अपनी बेटी के लिए न्याय की मांग करते हैं। साथ ही समाज की कोई और बेटी दहेज उत्पीडऩ की शिकार न हो, इसके लिए अलख जगाते हैं। विभिन्न स्थानों पर दहेज उत्पीडऩ के खिलाफ मुहिम चलाकर वे लोगों में जागरुकता फैलाने में भी जुटे हैं।
बेटियां सुरक्षित हों, इसलिए शुरू किया अभियान
गया प्रसाद कहते हैं कि सड़कों पर ऐसी वेशभूषा में देखकर लोग उन्हें पागल समझते हैं, लेकिन वास्तविक में पागल कौन है यह जानने की कोशिश कोई नहीं करता। समाज में बेटियां कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं। वे कहते हैं, 'यह सिर्फ मेरी बेटी की बात नहीं है, बल्कि पूरे देश की बेटियों के साथ ऐसा न हो। इसलिए मजबूर होकर सड़कों पर निकलना पड़ा।
एक दिन जरूर सफल होगी मुहिम
गया प्रसाद चाहते हैं कि लोग हास्य में ही सही, उन्हें देखें और कपड़े पर लिखी बातों को पढ़ें। अगर कुछ लोग भी इससे प्रभावित होकर दहेज उत्पीडऩ के खिलाफ जग जाते हैं तो वे आगे और लोगों को जगाएंगे। इससे एक सिलसिला चल पड़ेगा और एक दिन उनकी मुहिम जरूर सफल होगी।

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